राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पू. सरसंघचालक मा. डॉ. मोहनजी भागवत ने कर्णावती में आयोजित स्वयंसेवको के परिवार मिलन कार्यक्रम को संबोधित करते हुये कहाँ कि स्वयंसेवको को जो कुछ काम संघ में करते है वह जानकारी वह परिवार को भी दे ऐसी पूर्ण अपेक्षा है क्योकि हम जो काम करते है वह कर सके उसके लिए हमारे घर में जो माता बहिने है उनको जो करना पड़ता है वह हमारे कार्य से कई गुना ज्यादा कष्टदायक है. कुछ लोग घर पर संघकार्य के बारे में बताते है कुछ नहीं बताते. जो नहीं बताते उसका कारण हमारे यहाँ पिछले 2000 सालों से जो रिवाज चलते आयें है उसके कारण समाज की यह स्थिति है. हमारे यहाँ जो महिला वर्ग है वो थोडा सा घर में बंद रहा. 2000 साल पहले ऐसा नहीं था. तब हमारे समाज का स्वर्ण युग था.
आज के कार्यक्रम का मुख्य कारण यह है कि जो भी हमको करना है वह मातृशक्ति के बिना हो ही नहीं सकता. हिंदी समाज को गुण संपन्न और संगठित होना चाहिए और जब हम समाज कहते है तो केवल पुरुष नहीं, समाज यानि उसमे आपस में अपनापन होता है उस अपनेपन के कारण उसकी एक समान पहचान होती है. तो समान पहचान के कारण जो लोग एकत्रित आते है वो सब अपने आप को समाज कहते है. जिसमे समाज पहचान बताने वाले आचरण के संस्कार होते है. में हिन्दू हूँ में सभी के श्रद्धा स्थानों का सम्मान करता हूँ लेकिन अपने श्रद्धा स्थान के विषय में एकदम पक्का रहता हूँ. मैंने अपने सभी संस्कार सीखे कहाँ से तो अपने कुटुंब से परिवार से और यह सिखाने का काम हमारी मातृशक्ति करती है.
जन्म से सृष्टि में आगे चलने की जो प्रक्रिया है वह मनुष्यों में कुटुंब से ही होती है वैसे नहीं होती. कुटुंब से साथ रहने के कारण हम सब लोगो के रहना सीखते है. आजकल डिवोर्स का प्रमाण बहुत बढ़ा है बात बात में झगडे हो जाते है लेकिन इसका प्रमाण शिक्षित और संपन्न वर्ग में अधिक है. क्योकि शिक्षा एवं संपन्नता के साथ साथ अहंकार भी आया जिसके परिणामस्वरूप कुटुंब बिखर गया. संस्कार बिखर गए इससे समाज भी बिखर गया क्योकि समाज भी एक कुटुंब है.
हमको समाज का संगठन करना है इसलिए अपना जो काम है उसके विषय में सब कार्यकर्ताओ को अपने अपने घर पर सब बताना चाहिए. गृहस्थ है तभी समाज है, गृहस्थ नहीं है तो समाज नहीं है. क्योकि आखिर समाज को चलाने का काम गृहस्थ ही करता है. अतः शाखा में संघ का काम करो, समाज में संघ का काम करो और अपने घर में भी संघ का काम करो क्योकि आपका घर भी समाज का हिस्सा है. अपने देश के इतिहास में जहाँ जहाँ कोई पराक्रम का, वीरता का, विजय का, वैभव का, सुबुद्धि का पर्व है वहां वहां आप देखेगे कि उन सारे कार्यो को मन, वचन, कर्म से कुटुंब का आशीर्वाद मिला है. समाज संगठित होना यानि कुटुंब इन संस्कारो का पक्का होना.
मातृशक्ति समाज का आधा अंग है इसको अगर प्रबुद्ध नहीं बनाते तो नहीं होगा. इसका प्रारंभ हम अपने घर से करे. हम अपने परिवार के कारण है और परिवार समाज के कारण है. परन्तु हम अपने समाज के लिए क्या करते है. यदि हम समाज की चिंता नहीं करेगे तो न परिवार टिकेगा न हम टिकेगे
में रोज अपने लिए समय देता हूँ, कुटुंब के लिए समय देता हूँ, समाज के लिए कितना देता हूँ? हमें अपने परिवार के लोगो को नई पीढ़ी को समाज के लिए क्या करना चाहिए यह सोचने के लिए संस्कारित करना होगा बताना कुछ नहीं कि ऐसा करो वैसा करो उसे सोचने दो, आज की पीढ़ी सक्षम है. वह प्रश्न करेगी तो प्रेम से अपनी धर्म, संस्कृति के बारे में बताना पड़ेगा. नई पीढ़ी निर्णय करेगी क्योकि वह उचित निर्णय कर सकती है वही बताएँगे कि अपने घर में यह ठीक नहीं है यह होना चाहिए. समाज चलेगा तो देश चलेगा और समाज का घटक परिवार है इसलिये अपने परिवार में रोटी, कपडा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, अतिथि सत्कार और संस्कार ये गृहस्थ जीवन के सात कर्तव्य है. जिन्हें हमें ठीक से करना है. अपने उपभोग को संयमित करके ही हम इस कर्तव्य का पालन कर सकते है और तभी राष्ट्र की उन्नति संभव है.
हमारे व्यक्तिगत जीवन, कौटुम्बिक जीवन, आजीविका का जीवन और सामाजिक जीवन जीवन के चारो आयामो में संघ झलकता है ऐसा अपना कुटुंब चाहिए और कुटुंब के साथ परिवार जब ऐसा होगा तब राष्ट्र परम वैभवशाली बनेगा और तब दुनिया तो भारत के सिवाय चारा नहीं है. और भारत को हिन्दू समाज के सिवाय चारा नहीं है. और हिन्दू समाज को अपने गृहस्थो के कुटुंब के आचरण के सिवाय दूसरा चारा नहीं है. इस पवित्र संकल्प के साथ हमलोग आज से ही सक्रिय हो जाय.
कार्यक्रम में मंच पर सरसंघचालकजी के साथ पश्चिम क्षेत्र संघचालक डॉ. जयंती भाई भाड़ेसिया, गुजरात प्रांत संघचालक डॉ. भरतभाई पटेल सहित अनेक स्वयंसेवक परिवार के साथ उपस्थित रहे.