मुंबई (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने कहा कि अपने देश के बारे में जिनके मन में लगाव है, ऐसे नागरिक भारत माता की जय कहने में परहेज नहीं करते. लेकिन जो अपने ही देश का उपयोग सिर्फ निजी स्वार्थ के लिए करते हैं, ऐसे लोगों को इसमें आपत्ति होती है.
भय्या जी जोशी दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा नानाजी देशमुख की स्मृति में आयोजित व्याख्यान माला में प्रमुख वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने वर्तमान स्थिति में राजधर्म व राष्ट्रधर्म विषय पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि खुद को राजा न समझते हुए जनता का सेवक समझना ही राष्ट्रधर्म है.
उन्होंने भारत माता की जय का विरोध करने वालों या इस विवाद खड़ा करने वालों की निंदा करते हुए कहा कि जो इस भूमि को माँ मानते हैं वे ‘भारत माता की जय’ कहते है जो इस भूमि को भोगभूमि मानते हैं वे ही ‘भारत माता की जय’ कहने से इनकार करते हैं.
देश तथा राष्ट्र की कल्पना को विस्तार से रखते हुए भय्या जी जोशी ने कहा कि अपने पुरखों ने इस राष्ट्र को माता के रूप में समझा. अपनी माता का वर्णन करने वाला वंदेमातरम् गीत सही में राष्ट्रगीत की अहमीयत रखता है.
भगवा ध्वज भी इस राष्ट्र की संस्कृति का प्रतीक है. भगवा ध्वज प्राचीन काल से इस राष्ट्र के प्रतीक के रूप में श्रद्धा का स्थान रखता है। इसलिए अपने राष्ट्रध्वज तिरंगे के साथ भगवे ध्वज का भी सम्मान रखना आवश्यक है. हमारे लिए तिरंगा और भगवा ध्वज समान रूप से वंदनीय है। राष्ट्रध्वज तिरंगे को 1947 में संविधान द्वारा राजकीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया। तिरंगे का सम्मान करना प्रत्येक नागरिक का दायित्व है।
भैयाजी ने कहा- देश-राज्य-राष्ट्र तीनों का अलग-अलग अर्थ है, परंतु अंग्रेज़ों ने इसमें भ्रम उत्पन्न किया। देश भौगोलिक इकाई होने के कारण इसकी सीमा छोटी-बड़ी होती रहती हैं। राज्य आवश्यक सुविधा और सुरक्षा प्रदान करने वाली राजनीतिक इकाई है जो समय के अनुरूप बदलती रहती है। राष्ट्र हजारों वर्षों में स्वयं विकसित हुई एक सांस्कृतिक जीवनशैली होती है,जो कभी नहीं बदलती।