हमें सभी भेदभाव भूलकर समरस समाज का निर्माण करना है – सुरेश सोनी जी

रायसेन (विसंकें). रायसेन के ऐतिहासिक दशहरा मैदान पर आज (21 फरवरी) समरसता कुम्भ ने इतिहास रचा. मैदान पर साधारणत: रावण वध के लिए प्रतिवर्ष दशहरे के दिन रायसेन नगर के लोग एकत्रित होते हैं. किंतु आज रायसेन जिला के हर वर्ग, जाति समाज के महिला और पुरुष सिर्फ एक ही भाव से आ रहे थे कि हम सब जाति भाषा वर्ग भेद छोड़कर सब एकरस हिन्दू समाज हैं, एक भारत माता की सन्तान हैं.

विराट आयोजन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी ने कहा कि कुम्भ शब्द हिन्दू समाज के लिए नया नहीं है. देश में अनेक स्थानों पर कुम्भ का आयोजन होता है. जिसमें सभी जाति, पंथ, बिरादरी के लोग बिना किसी भेदभाव के सम्मिलित होता है. सारा समाज भंडारों में एक साथ बैठकर भोजन करता है. आज रायसेन के दशहरा मैदान का भी यही दृश्य है. जैसा कुम्भ में होता है, वैसा ही हमारे गाँव में हो, हमारे मोहल्ले में हो, हमारे घर में हो, इसी भावना को लेकर यह आयोजन हो रहा है. हमारे यहां संतों की परंपरा ने जो हमको सिखाया कि कण-कण में भगवान है. भगवान ने हर रूप में जन्म लिया है कश्यप, मत्स्य, नरसिंह के रूप में भगवान ने अवतार लिया है.

हमारी परिवार व्यवस्था के कारण हमारी पहचान है. परिवार में कमजोर व्यक्ति की भी चिन्ता होती है. इस परिवार भावना का विस्तार ही वसधैव कुटुम्बकम के रूप में हम मानते हैं. ये मेरा, ये तेरा है, ये छोटी सोच हमारे यहां माना गया. हमने इस परिवार में पशु पक्षियों को भी स्थान दिया है. बिल्ली, चिड़िया, चाँद, सूरज सबसे हमने नाता जोड़ा. इस विराट हिन्दू भावना को भूलने के कारण हमको कष्ट उठाने पड़े. हमारे देश का विभाजन हुआ. हमारे देश की सीमाएं गांधार (अफगानिस्तान) तक थीं.

हिन्दू भाव को जब जब भूले आई विपद महान.

भाई छूटे, धरती खोई, मिटे धर्म संस्थान.

इसलिए हमें हिन्दू भाव को मजबूत करना पड़ेगा. इस देश में रहने वाले सभी लोग हिन्दुओं की संतान हैं. मक्का में गए अब्दुल्ला बुखारी को वहाँ कहा गया कि तुम हिन्दू मुसलमान हो. विश्व में भारत की पहचान हिन्दू है. इंडोनेशिया मुस्लिम देश होते हुए भी वहां रामायण होती है. वहां के मुसलमानों का मानना है कि हमने अपनी पूजा पद्धति बदली है, पूर्वज नहीं बदले. आज अनेक प्रकार की शक्तियां हिन्दू समाज को तोड़ने का दुष्चक्र रच रही हैं. हमारी जनजातियों को कहा जा रहा है कि तुम हिन्दू नहीं हो. लिंगायत को कहा जा रहा है कि तुम हिन्दू नहीं हो. समाज को जातियों में बांटा जा रहा है. अरुणाचल की जनजातियां कृष्ण और रुक्मणि को अपना पूर्वज मानते हैं. मिजो जनजाति के लोग राम और लक्ष्मण की शपथ लेते हैं. नागालैण्ड में सूर्यदेव की उपासना करते हैं. भारत की शेष जनजातियां भगवान बड़ा देव शंकर तथा हनुमान जी को अपना देवता मानते हैं. जनजाति समाज ने इस देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है.

हमारा तत्व ज्ञान महान है – किंतु हमने उसका व्यावहार भुला दिया. हम प्रण करें कि हमारे गांव में एक कुआं, एक मन्दिर और एक श्मशान हो. जाति के आधार पर भेदभाव समाप्त हो. समाज में आज नशे की प्रवृत्ति है, जिसके कारण पारिवारिक झगड़े व आर्थिक विपन्नता आती है. इसे समाप्त करना होगा. इसके लिए मातृशक्ति को आगे आना होगा. व्यसन की मुक्ति से समृद्धि आएगी. दहेज जैसी कुप्रथा आज भी समाज में है. बेटी की ससुराल वाले गांव में पानी भी नहीं पीने वाला समाज आज कुरीतियों में जकड़ा है. आज की पीढ़ी को इसे तोड़ना है. अगर संस्कार शून्य साक्षर हुआ तो पढ़ने वाला साक्षर का उल्टा राक्षस हो जाएगा. संस्कार नहीं होने से आदमी जानवर से भी बदतर हो रहा है. सभी स्त्रियाँ तुम्हारी माँ हैं, यह पहले बच्चे को बताया जाता था. दूसरे का धन मिट्टी है, यह बताया गया. परन्तु शिक्षा में बदलाव आने के कारण संस्कार शून्यता आई. शिक्षा में जीवन मूल्य कम होने से अनेक दोष आए.

आज सब प्रकार के भेदभाव भूलकर समाज एकजुट होकर अपने कौशल का विकास करे, अपने गाँव का जल संरक्षण करे, पर्यावरण के लिए कार्य करे. समाज के धनवान लोग समाज के गरीब वर्ग की भलाई के लिए आगे आएं. समरसता कुम्भ का यह कार्य ओर अधिक आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. परमात्मा इसके लिए हमें सामर्थ्य दे.

इसके पूर्व अतिथियों साधु संतों ने भारत माता व भगवान शिव की विधि विधान से पूजा अर्चना की. आयोजन समिति की ओर से अतिथियों का स्वागत किया गया. समरसता आयोजन की अध्यक्षता कर रहे पूज्य श्रीराम महाराज जी ने कहा कि पहली बार मैं अपने सम्मुख इतना बड़ा आयोजन देख रहा हूँ. उन्होंने समाज को संगठित कर सबसे सत्य मार्ग पर चलने का आह्वान किया. आयोजन समिति के अध्यक्ष भागचंद उइके जी ने कहा कि हमारे समाज में जब तक सुमति रही, समाज में समरसता और सम्पन्नता रही. हमें पुनः समाज में समरसता और मानव मूल्यों का निर्माण करना होगा.

आयोजन समिति के सचिव नीलम चन्द साहू जी ने वर्ष भर चले आयोजन के संबंध में बताया कि हम छह आयामों को लेकर समाज के बीच गए थे. जिसमें पर्यावरण संरक्षण, मातृशक्ति सम्मान, युवाशक्ति जागरण, ग्राम स्वालंबन, धर्म जागरण के माध्यम से समरस समाज का निर्माण करना. रायसेन जिले को 154 मंडलों में विभाजित कर मंडल केंद्र बनाए गए. हर मंडल में 10 गांव शामिल किए गए. इसके बाद 44 उपखंड बनाए गए, हर उपखंड में 50 गांवों को शामिल किया गया. 10 नगरीय केंद्र तहसील मुख्यालय पर बनाए गए. इस तरह जिले की 495 पंचायतों के 1474 गांवों तक समिति ने पहुंच बनाई.

आयोजन के प्रचार प्रसार के लिए भी संगठित ढंग से काम किया गया. इस दौरान 21 स्थानों पर रामकथा का आयोजन किया. जिनमें 35 हजार से अधिक लोग शामिल हुए. 400 केंद्रों पर भारत माता की आरती का आयोजन किया गया. 32 केंद्रों पर स्वास्थ्य शिविर लगाए गए, जिनमें रक्तदान और रक्त परीक्षण भी किया गया. 400 गांवों में गौ पूजन के कार्यक्रम किए गए. इन सब कार्यक्रमों का परिणाम 92 हजार लोगों के पंजीयन के रूप में सामने आया.

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