धर्म, मनुष्य को भगवान बनने के मार्ग पर ले जाता है – डॉ. मोहन भागवत जी

पुणे (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि ”अध्यात्म के आधार पर हमारे देश का आम आदमी भी विश्व के कई लोगों का गुरु बन सकता है. उसका धर्म उसकी बुद्धि में नहीं, बल्कि उसके आचरण में है. धर्म से जीवन की धारणा होती है. मनुष्य की बुद्धि जैसी हो, उस प्रकार का अच्छा या बुरा कार्य वह करता है. यहां एक धर्म ही है जो मनुष्य को दानव नहीं, बल्कि भगवान बनने के मार्ग पर ले जाता है. धर्म के कारण ही मनुष्य में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना निर्माण होती है.” सरसंघचालक जी वारकरी शिक्षण मंडल संस्था, आलंदी द्वारा आयोजित स्वानंद सुखनिवासी सद्गुरु जोग महाराज के पुण्यतिथि शताब्दी समारोह में संबोधित कर रहे थे.

10 फरवरी को सद्गुरु जोग महाराज जी की 100वीं पुण्यतिथि है. पुण्यतिथि शताब्दी के उपलक्ष्य में आलंदी में भव्य स्तर पर भागवत-कीर्तन सप्ताह जारी है. सप्ताह के पांचवे दिन (07 फरवरी) सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत उपस्थित थे.

सरसंघचालक जी ने कहा कि “भारत एक धर्मनिष्ठ देश है. यदि हमें अपने देश में कुछ करना है, बोलना है तो धर्म का आधार लेना पड़ता है. भौतिक चीजों को देखते हुए अपने अंदर भी देखना हमारे ऋषि मुनियों को जिस दिन ज्ञात हुआ, उसी दिन अध्यात्म का जन्म हुआ. हमारे देश के लिए भी यही हो रहा है. भारत ने कभी भी बाहरी दुनिया को अस्वीकार नहीं किया, लेकिन अपना भी अन्वेषण किया. इस प्रकार अध्यात्म का अन्वेषण कर, उसका विकास कर उसका अनुसरण करने वाला भारत दुनिया का शायद एकमात्र देश होगा.”

‘हम विविधता में एकता कहते हैं, लेकिन हमारे देश ने बहुत पहले साबित कर दिया है कि यह एकता की विविधता है. जीवन को शांति, संतोष और समृद्धि से जीने के लिए हमारे देश ने कुछ नियम निर्धारित किए हैं, जिन्हें हम धर्म कहते हैं. धर्म यानि जीवन जीने का मार्ग है और हर एक का अपना अलग रास्ता है. हालांकि सत्य की ओर जाने वाला मार्ग एक ही है. आप कितना कमाते हैं, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप कितना बांटते हैं. इस प्रकार की शिक्षा देने वाला ही शाश्वत धर्म है. हमारे इसी धर्म का दर्शन हम अपने भाषणों व पुस्तकों से तो दे सकते ही हैं, लेकिन प्रत्यक्ष धर्म जीने वाले और उसके प्रभाव से समृद्ध होने वाले लोग भी हम दिखा सकते हैं. हमारे पास ऐसी कई परंपराएं हैं.”

वारकरी संस्था के अध्यक्ष सांदीपनी महाराज आसेगावकर ने अपेक्षा व्यक्त की कि वारकरी संप्रदाय को संत साहित्य में स्थान मिलना चाहिए तथा सदगुरु जोग महाराज का भी उसमें परिचय होना चाहिए और मराठी भाषा को अभिजात भाषा का दर्जा मिलना चाहिए.

कार्यक्रम के आरंभ में जोग महाराज जी की प्रतिमा सरसंघचालक जी को प्रदान की गई. इसके बाद विवेक साप्ताहिक के सदगुरु जोग महाराज विशेषांक का गणमान्य अतिथियों के हाथों विमोचन किया गया. समारोह में गणमान्यजन उपस्थित थे.

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