भारत में तटरक्षक का आविर्भाव, समुद्र में भारत के राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार के भीतर राष्ट्रीय विधियों को लागू करने तथा जीवन और संपति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक नई सेवा के तौर पर 01 फ़रवरी 1977 को हुआ था। इस बात की आवश्यकता महसूस की गई कि नौसेना को इसके युद्धकालीन कार्यों के लिए अलग रखा जाना चाहिए तथा विधि प्रवर्तन के उत्तरदायित्व के लिए एक अलग सेवा का गठन किया जाए, जोकि पूर्णरूप से सुसज्जित तथा विकसित राष्ट्र जैसे संयुक्त राज्य अमरीका, संयुक्त राज्य इत्यादि के तटरक्षकों के तर्ज पर बनाई गई हो।
इस योजना को मूर्तरूप देने हेतु सितम्बर 1974 में श्री के एफ रूस्तमजी की अध्यक्षता में समुद्र में तस्करी की समस्याओं से निपटने तथा तटरक्षक जैसे संगठन की स्थापना का अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया गया। इस समिति ने एक ऐसी तटरक्षक सेवा की सिफारिश की जोकि रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में नौसेना की तर्ज पर सामान्य तौर पर संचालित हो तथा शांतिकाल में हमारे समुद्र की सुरक्षा करे। 25 अगस्त 1976 को भारत का समुद्री क्षेत्र अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के अधीन भारत ने 2.01 लाख वर्ग किलोमीटर समुद्री क्षेत्र का दावा किया, जिसमें भारत को समुद्र में जीवित तथा अजीवित दोनों ही संसाधनों के अन्वेषण तथा दोहन के लिए अनन्य अधिकार होगा। इसके बाद मंत्रिमंडल द्वारा 01 फ़रवरी 1977 से एक अंतरिम तटरक्षक संगठन के गठन का निर्णय लिया गया। 18 अगस्त 1978 को संघ के एक स्वतंत्र सशस्त्र बल के रूप में भारतीय संसद द्वारा तटरक्षक अधिनियम,1978के तहत भारतीय तटरक्षक का औपचारिक तौर पर उद्घाटन किया गया।
भारतीय तटरक्षक के मिशन का वक्तव्य निम्न है : “हमारे समुद्र तथा तेल, मत्सय एवं खनिज सहित अपतटीय संपत्ति की सुरक्षा : संकटग्रस्त नाविकों की सहायता तथा समुद्र में जान माल की सुरक्षा : समुद्र, पोत-परिवहन, अनाधिकृत मछ्ली शिकार, तस्करी और स्वापक से संबंधित समुद्री विधियों का प्रवर्तन : समुद्री पर्यावरण और पारिस्थितिकी का परिरक्षण तथा दुर्लभ प्रजातियों की सुरक्षा : वैज्ञानिक आंकडे एकत्र करना तथा युद्ध के दौरान नौसेना की सहायता करने सहित हमारे समुद्र तथा अपतटीय परिसम्पत्तियों का संरक्षण करना.