रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गाँधी घनिष्ठ मित्र थे; पर एक बार दोनों में बहस हो गयी। कुछ लोग टैगोर के पक्ष में थे, तो कुछ गाँधी के। वहाँ एक युवा चित्रकार चुप बैठा था। पूछने पर उसने कहा कि चित्रकार को तो सभी रंग पसन्द होते हैं। इस कारण मेरे लिए दोनों में से किसी का महत्त्व कम नहीं है।
यह युवा चित्रकार थे नन्दलाल बोस, जिनके प्राण प्रकृति-चित्रण में बसते थे। उनका जन्म तीन दिसम्बर, 1883 को खड़गपुर, बिहार में पूर्णचन्द्र बोस के घर में हुआ था। वहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य की गहरी छाप उनके बाल हृदय पर पड़ी।
जब उनकी माँ क्षेत्रमणि देवी रंगोली या गुडि़या बनातीं, या कपड़ों पर कढ़ाई करतीं, तो वह उसे ध्यान से देखते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि वे पढ़ाई से अधिक रुचि चित्रकला में लेने लगे। जब कक्षा में अध्यापक पढ़ाते थे, तो वे कागजों पर चित्र ही बनाते रहते थे।
उन्हें कला सिखाने वाला जो भी मिलता, वे उसके साथ रम जाते थे। उन्होंने गुडि़या बनाने वालों से यह कला सीखी। एक बार एक पागल ने तीन पैसे लेकर केवल कोयले और पानी से सड़क पर उनका चित्र बना दिया। उन्होंने इसे सीखकर शान्ति निकेतन में इसका प्रयोग किया। 15 वर्ष की अवस्था में वे कोलकाता पढ़ने आ गये; पर फीस के लिए मिला धन वे महान् कलाकारों के चित्र खरीदने में लगा देते थे। अतः कई बार वे अनुत्तीर्ण हुए; पर इससे कला के प्रति उनका अनुराग कम नहीं हुआ।
20 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह हो गया। उनके ससुर ने उनकी पढ़ाई की उचित व्यवस्था की। इस दौरान उन्होंने यूरोपीय चित्रकला का अध्ययन किया। उन्होंने प्रसिद्ध चित्रकार अवनीन्द्रनाथ ठाकुर को अपना गुरू बनाया। वे रवीन्द्रनाथ टैगोर के भाई और राजकीय कला विद्यालय के उपप्राचार्य थे। विद्यालय के प्राचार्य श्री हावेल थे।इन दोनों ने उन्हें भारतीय शैली के चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया।
यहाँ उन्हांेने अपनी कल्पना से भारतीय देवी, देवताओं तथा प्राचीन ऐतिहासिक घटनाओं के चित्र बनाये, जो बहुत प्रसिद्ध हुए। एक बार भगिनी निवेदिता वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु के साथ उनके चित्र देखने आयीं। उन्होंने नन्दलाल जी को अजन्ता गुफाओं के शिल्प के चित्र बनाने हेतु प्रोत्साहित किया तथा उनका परिचय विवेकानन्द और रामकृष्ण परमहंस से कराया।
आगे चलकर देश के बड़े चित्रकारों ने उनकी मौलिक शैली को मान्यता दी। जब‘इण्डियन सोसायटी ऑफ़ ओरिएण्टल आर्ट्स की स्थापना हुई, तो उसकी पहली प्रदर्शिनी में उन्हें 500 रु0 का पुरस्कार मिला। उन्होंने इसका उपयोग देश भ्रमण में किया। शान्ति निकेतन में कला विभाग का पदभार सँभालने के बाद उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर की अनेक रचनाओं के लिए चित्र बनाये। टैगोर जी उन्हें अपने साथ अनेक देशों की यात्रा पर ले गये।
नन्दलाल बोस के स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्धित चित्र भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं। इनमें गाँधी जी की ‘दाण्डी यात्रा’ तो बहुत प्रसिद्ध है। संविधान की मूल प्रति का चित्रांकन प्रधानमंत्री नेहरू जी के आग्रह पर इन्होंने ही किया था। स्वतन्त्रता के बाद जब नागरिकों को सम्मानित करने के लिए पद्म अलंकरण प्रारम्भ हुए, तो इनके प्रतीक चिन्ह भी नन्दलाल जी ने ही बनाये। 1954 में वे स्वयं भी ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किये गये। उन्होंने ‘शिल्प-चर्चा’ नामक एक पुस्तक भी लिखी।
16 अप्रैल 1966 को 83 वर्ष की सुदीर्घ आयु में प्रकृति के अनुपम चितेरे इस कला मनीषी का देहान्त हुआ।