गोलियों की बौछार में फौलाद सा अडग
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान बुरी तरह पराजित हुआ था। उसके 94 हजार युद्धबन्दी बकरियों की तरह से मिमियाते हुए हमारे वीर जवानों के सामने सर झुकाए खड़े थे। इस शानदार जीत का श्रेय हमारे उन रणबांकुरों को जाता है, जिन्होंने युद्ध क्षेत्र में अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन को मार भगाना ही अपना परम ध्येय समझा। 1971 के युद्ध के एक ऐसे ही रणबांकुरे थे लांसनायक अल्बर्ट एक्का। बीस वर्ष की अवस्था में 27 दिसम्बर, 1962 को बिहार रेजीमेन्ट में भर्ती होने वाले इस वीर सेनानी को 1968 में ब्रिगेड आफ द गाड्र्स की 14वीं बटालियन में भेज दिया गया था। 14 गार्ड्स को पूर्वी सेक्टर में अगरतल्ला से 6.5 किलोमीटर पश्चिम में गंगासागर में पाकिस्तान की रक्षा पंक्ति पर कब्जा करने का आदेश मिला। दुश्मन ने इस पोजीशन की मजबूत मोर्चाबन्दी कर रखी थी। भारत के लिए इस पोजीशन पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक था, क्योंकि अखौरा पर कब्जा करने के लिए इसका काफी महत्व था। लांस नायक अल्बर्ट एक्का पूर्वी मोर्चे पर गंगासागर में दुश्मन की रक्षा पंक्ति पर हमले के दौरान “बिग्रेड आफ द गार्ड्स बटालियन’ की बाईं अग्रवर्ती कम्पनी में तैनात थे।
इन्होंने देखा कि पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सैनिकों पर लाइट मशीनगन से गोलियों की बौछार कर रहे हैं। इनका धैर्य जवाब दे गया तो इन्होंने अकेले ही पाकिस्तानी बंकर पर धावा बोल दिया। उन्होंने बन्दूक से दो पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया, इसके बाद पाकिस्तानी मशीनगनें खामोश हो गयीं।
यद्यपि इस कार्रवाई में वह गम्भीर रूप से घायल हो गए थे। किन्तु उन्होंने इसकी चिन्ता नहीं की और अपने साथियों सहित आगे बढ़ने लगे। शत्रु के अनेक बंकर नष्ट करते हुए वह पाकिस्तानी पोजीशन पर कब्जा करते हुए आगे बढ़ते चले गए। किन्तु हमारे सैनिक अपने लक्ष्य के अनुसार उत्तरी किनारे पर पहुंचे ही थे कि पाकिस्तानी सैनिकों ने एक सुरक्षित भवन की दूसरी मंजिल से गोलियों की बौछार शुरू कर दी। इस गोलीबारी में हमारे कुछ सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए और बाकी आगे नहीं बढ़ सके। एक बार फिर से अल्बर्ट एक्का ने साहसिक कार्रवाई करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने घावों और दर्द की चिन्ता नहीं की और रेंगते हुए उस भवन तक जा पहुंचे। और धीरे से उसके पास बने बंकर के एक छेद से हथगोला दाग दिया, जिससे एक पाकिस्तानी सैनिक मर गया और दूसरा घायल हो गया। परन्तु इतना ही पर्याप्त नहीं था, क्योंकि पाकिस्तानी मशीनगन गोलियों की बौछार कर ही रही थी। अल्बर्ट एक्का के शरीर से रक्त बह रहा था फिर भी वह सांप की तरह पेट के बल रेंगते-रेंगते एक बंकर में घुस गए और अपनी बन्दूक से एक पाकिस्तानी तोपची को मार डाला। उसके बाद हमारे सैनिक निर्भय होकर आगे बढ़ने लगे। युद्ध क्षेत्र में 3 दिसम्बर, 1971 को इस वीर योद्धा की आंखें सदा के लिए मूंद गयीं। इस परम योद्धा का जन्म 27 दिसम्बर, 1942 को बिहार के रांची जिले के जारी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम जूलियस एक्का और माता का नाम मरियम एक्का था.
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