अपने इतिहास और मानबिंदुओ का गौरव होना आज के समय की आवश्यकता है – अनिरुद्धजी देशपांडे

राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ, मेहसाणा विभाग, गुजरात द्वारा “सांप्रत वैश्विक परिदृश्य में भारत” विषय पर आयोजित प्रबुद्ध नागरिक विचार गोष्ठी का रविवार को मेहसाणा मे आयोजन किया गया. विचार गोष्ठी के समापन सत्र में उद्बोधन करते हए श्री अनिरुद्धजी देशपांडे ( अ.भा. संपर्क प्रमुख, रा.स्व.संघ) ने कहाँ कि आप सब समाज के चिंतक वर्ग से है और एक गंभीर विषय पर साथ मिलकर चिंतन किया.

संघ स्थापक प.पू. डॉ. साहब कहाँ करते थे कि संघ की रजत जयंती मनाने की उत्सुक्ता नहीं है क्योकि संघ कोई संप्रदाय, इंस्टिट्यूट या संस्था नहीं है संघ यानि समाज और समाज यानि संघ. संघ समाज मे जागृति लाने का और समाज उत्थान का कार्य करता है. स्वतंत्रता के बाद समाज स्वच्छ रहे और भेदभाव रहित रहे इसी के लिए संघ प्रयासरत है. राष्ट्र की चिंता करने वाले लोगो से संघ बना है. संघ सिर्फ संगठन करेगा. स्वयं प्रेरणा से आपदा के समय समाज के साथ खड़ा रहे वह संघ है. संघ समाज को एकरस रखने के लिए सतत प्रयत्नशील है.

लेकिन स्वराज्य से सुराज्य में परिवर्तन करने का आधार क्या है ? स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद दुनिया में पूंजीवाद की चर्चा थी हमने उसको स्वीकार किया जिसमे से समाजवाद और साम्यवाद का जन्म हुआ और साथ ही साथ अनेक समस्याओ का जन्म भी हुआ. वास्तव में भौतिकवाद समाज की एकता के लिए उपयुक्त नहीं है. यह समाज के बीच असमानता बढ़ाने का काम ही करता है. हमारे देश की व्यक्तिमत्ता ही आध्यात्मिक है और इसीलिए समाज के दुख के साथ दुखी और सुख के साथ सुखी इस भाव से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति हिन्दू है.

हमारा राष्ट्र सांस्कृतिक राष्ट्र है. अन्य देशो की तुलना में यहाँ अनेक विविधता होने पर भी यह एक राष्ट्र है और सर्वसमावेशक है. प.पू. डॉ. साहब को किसी ने पूछा कि आपके अनुसार हिन्दू की व्यख्या क्या है ? तब डॉ. साहब ने उत्तर दिया कि जो भी इस भूमि को माता माने वो सभी हिन्दू है. इसीलिए हमारा चिंतन भी भावात्मक (Emotional ) है सैद्धान्तिक (Academic) नहीं. इसीलिए भारत माता का चित्र एकात्म समाज का चित्र है.

लेकिन आज कई समस्याये भी है सूचि तो लंबी है. जैसे कि गाँव टूट रहे है, युवाधन शहरो की और बढ़ रहा है, बुद्धिधन विदेश को पलायन हो रहा है., आतंकवाद, नक्सलवाद, जेहादी जनून, भ्रष्टाचार, गो-संरक्षण, कृषि संरक्षण, प्रयावरण, प्रदुषण (Global Warming ), विदेशी चिंतन के सामने स्वदेशी चिंतन आदि अनेक समस्याओं का एकमात्र उपाय हिन्दू दर्शन में है जिसका आधार आध्यात्म है. और जिसके लिए हमें व्यक्तिगत प्रयासों से परिवार प्रबोधन करना होंगा, संस्कारो का सिंचन अपनी संतानों में करना होंगा, अपने इतिहास और मानबिंदुओ का गौरव होना आदि आज के समय की आवश्यकता है.

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