बिहार चुनाव से पहेले भारत में असहिष्णुता बढ़ रही है ऐसी बाते बार बार उठी I जैसे ही बिहार चुनाव ख़तम हुआ तुरंत ये आवाजे दब गई I कुछ विश्लेषको ने कहेना शुरू कर दिया की बस अब ये असहिष्णुता अगले किसी चुनाव में ही बढ़ेगी I और अचानक आमिर खान का बयान आया की उसकी बीवी किरण को लग रहा है की ये देश अब रहेने लायक रहा नहीं यहाँ ईंटोलरंस बढ़ रही है I फिर से चर्चाए शुरू हो गई I उन विश्लेषकों को थोड़ी हेरानी है की चुनाव तो अभी है नहीं, फिर भी यह असहिष्णुता की बात कहाँ से आ गई ? ये मुद्दा तो राजनैतिक है और अभी चुनाव तो है नहीं ?
बस गलती यही हो जाती है की यह मुद्दा राजनैतिक है ! यह मुददा राजनिति का नहीं है राष्ट्र निति का है I एवोर्ड वापसी गेंग और आमिर शाहरुख जैसे लोगो का निशाना भले मोदी शासन पर रहा पर वो हथोडा राष्ट्र की अक्षुणता पर मार रहे है I यही समजना पड़ेगा यह लोग सिर्फ सत्ता बदलना नहीं चाहते उनको राष्ट्र की पूरी प्रकृति बदलनी है, पूरी संस्कृति बदलना चाहते है I
दर असल दो बातों को भूलना नहीं चाहिए एक तो केंद्र में मोदी सरकार के शपथ लेने के कुछ महीने बाद रोमिला थापर की एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी “ ध पब्लिक इंटेलेक्चुअल इन इंडिया ” I मोदी सरकार के आने के कुछ महीनो बाद ही रोमिला थापर ने एक आलेख लिखा जिसमे उन्होंने भारत के बुद्धिजीविओ को संबोधित कर के बढ़ते हुए ईंटोलरंस का विरोध करने का आवाहन किया था I यह आलेख “ध हिन्दू “ अख़बार में छपा था और अब यही आलेख “ ध पब्लिक इंटेलेक्चुअल इन इंडिया ” नामक पुस्तक की शोभा बढ़ा रहा है I और दूसरी बात जरा पुरानी है, राजेंद्र सच्चर नाम के एक निवृत न्यायमूर्ति ने जो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंग ने बनायीं हुए एक कमिटी के अध्यक्ष थे उसी कमिटी ने एक रिपोर्ट दी थी जो सच्चर समिति की रिपोर्ट के नाम से जानी जाती है I इस दोनो बातो के साथ जब जब भी इंटोलरंस की बात कोई भी व्यक्ति उठाता है तब कौन कौन व्यक्ति तुरंत उस मुद्दे को दोहरा ने लगता है इसका भी विश्लेषण करना चाहिए, और फिर सब को जोड़ने से पता चलता है की यह सोची समजी साजिश है इतना ही नहीं यह साजिश सिर्फ राजनैतिक बदलाव के लिए नहीं है मुल्त: यह साजिश हिन्दू संस्कृति को उखाड फेंकने की है I
रोमिला कहेती है की अब असहिष्णुता बढ़ गई है और कलाकारों और बुद्धिजीविओ को इसका विरोध करना चाहिए I असहिष्णुता की कोई मिसाल उन्हों ने दी नहीं बस कह दिया की असहिष्णुता बढ़ गई है I राजेंद्र सच्चर ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था की देश में मुसलमानों पर अत्याचार और भेदभाव वह मुसलमान है इसी लिए हो रहे है, उन्होंने भी कोई आधार या सबुत नहीं दिए थे I बस कह दिया था I गुजरात के अमदावाद शहर में उन दिनों एक कार्यक्रम में सच्चर साहब आये थे और तभी उनको कुछ युवको ने प्रश्न किए थे जिसका में स्वयं साक्षी हूँ I सच्चर साहब एक भी प्रश्न का ना उत्तर दे पाए थे या ना ही एक भी वारदात मुसलमानों पर मुसलमान होने के कारण हो रही है यह बता पाए थे I उन युवको के प्रश्नों से बचने के लिए एक बार तो इन्हो ने यह भी कह दिया था की उनकी रिपोर्ट में ऐसा कुछ लिखा ही नहीं है I आज भी जब आमिर खान, शाहरुख़ खान, या वृंदा करात ये कहेते है तो उनके आरोपों के समर्थन में कोइ घटना पेश नहीं करते I हा दादरी और कलबुर्गी की हत्या के मामले पर ये लोग रोने बेठ जाते है I और इन दोनों घटनाओ में आर.एस.एस , वि.हि.प. या किसीभी हिन्दू संगठनों का कोई लेना देना नहीं है और मोदी सरकार का भी सीधा कुछ लेंना देना नहीं है I यह दोनों घटनाए सीधी कानून –व्यवस्था से जुडी है और हमारे संघीय ढांचे में कानून व्यवस्था राज्यों के जिम्मे आती है I कलबुर्गी की हत्या कर्णाटक में हुई जहाँ कोंग्रेस का शासन है और दादरी की घटना उत्तर प्रदेश में हुई जहाँ समाजवादी पक्ष की सरकार है I
पर इनका नेक्सस देखो शाहरुख बोलता है तो राज्जा मुराद उसका समर्थन करता है, महेश भट और अरविन्द केजरीवाल उसका साथ देते है , राहुल गाँधी और वृदा करात उसका समर्थन करते है I और आमिर बोलता है तब भी यही कोंग्रेसी और कोम्युनिस्ट लोग उसके समर्थन में आ खड़े हो रहे है I दर असल राजेंद्र सच्चर की रिपोर्ट को सही साबित कर, इस देश में असहिष्णुता मुसलमानों और इसाईओ के खिलाफ बढ़ रही है ऐसा तथाकथित ओपिनियन मेकर्स के ज़रिए प्रस्थापित करने की कोशिश हो रही है I इस तरफ का प्रचार मोड्यूल का उपयोग कोम्युनिस्ट बखूबी करना जानते है I यह पूरी साजिश के पीछे कोंग्रेस, कम्युनिस्ट और कुछ मुस्लिम फंडामेंटालिस्ट छुपे हुए है यह ध्यान में आने लगता है I इन सब के बिच रहेमान का निवेदन सूचक है उन्हों ने कहा की बात सही है वो भी असहिष्णुता के शिकार बन चुके है I याद करिए उनके एक गीत के विरुध्ध में फ़तवा जारी हुआ था I
थोडा एनालिसिस करे ध्यान में आएगा की यह सवाल राजनीति का नहीं है राष्ट्रनीति का है I