पानीपत (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारतीय मनीषियों का चिंतन व जीवन दर्शन संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए है. जिसमें मानव ही नहीं समस्त प्राणी वर्ग के लिए संदेश दिया है. सनातन संस्कृति में पुनर्जन्म और कर्मफल की अवधारणा से परिभाषित होता है कि जो हम कर्म करते हैं उनसे कर्मानुसार पुण्य और पाप एकत्रित होता है. मानव जन्म ही ऐसा है, जिसमें व्यक्ति स्वेच्छानुसार कर्म कर जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है. इसमें भी अहंकार से बचते हुए निःस्वार्थ सेवा और परोपकार करना महापुण्य फलदायी होता है.
सरसंघचालक जी ने शनिवार को समालखा के गांव पट्टीकल्याणा में श्री माधव जन सेवा न्यास द्वारा बनाए जा रहे सेवा साधना एवं ग्राम विकास केंद्र का शिलान्यास किया. डॉ. मोहन भागवत व जैन मुनि उपाध्याय गुपती सागर जी ने शिलान्यास एवं भूमि पूजन से पूर्व पौधा रोपण भी किया. इस अवसर पर उनके साथ गीता मनीषी ज्ञानानंद जी महाराज, रवि शाह महाराज जी गन्नौर आश्रम, स्वामी मोलड़ नाथ मडलौडा आश्रम तथा श्री माधव जन सेवा न्यास के अध्यक्ष पवन जिंदल भी उपस्थित रहे. ‘देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें’ गीत के साथ कार्यक्रम की शुरूआत हुई.
उन्होंने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति ही हमारी मार्गदर्शक है और हिन्दुत्व जीवन पद्धति सर्वजन के लिए हितकर है. ‘‘सर्वे भवंतु सुिखनः’’ और ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’का ऋषि चिंतन सम्पूर्ण विश्व को एक सूत्र में पिरोता है. हमें इसी मार्ग पर चलते हुए अहंकार से बचना चाहिए और निःस्वार्थ सेवा करनी चाहिए. सामर्थ्यवान लोगों को जरुरतमंदों की मदद के लिए आगे आना चाहिए, इससे समाज में समरसता बढ़ेगी और भेदभाव मिट जाएगा. सेवा करने से जन्म जन्मांतर के पाप कर्म कमतर होते जाते हैं और पुण्य का एकत्रिकरण होता है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति भी संभव है. सेवा हमारे पूर्वजन्म के पापों को धोने का साधन है. इसलिए सेवा करने वाले को मन में अहंकार नहीं करना चाहिए, बल्कि मन में अपनत्व को रखकर सेवा कार्य करने चाहिएं.
सरसंघचालक जी ने कहा कि गांव पट्टीकल्याण में बनने वाले इस सेवा साधना एवं ग्राम विकास केंद्र को लेकर काफी पहले से विचार चल रहा था और आज इसका शुभारंभ हो गया है. यह समाज का समाज के लिए चलने वाला एक प्रकल्प है. इस प्रकल्प को खड़ा करने में यहां काम करने वाले एक मजदूर से लेकर इसकी देखरेख करने वाले संघ के अखिल भारतीय अधिकारी तक का इसमें योगदान है. उन्होंने कहा कि जरूरतमंद को आगे बढ़ाना ही सेवा है. सामर्थ्यवान को समाज को देने की प्रवृति बनानी चाहिए. मन में अपनत्व लेकर जो कार्य किया जाता है, उसे ही सेवा कहा जाता है. पाश्चात्य संस्कृति में सेवा को सर्विस कहा जाता है और जब हम किसी से सर्विस (सेवा) लेते हैं तो उसके बदले में हमें उसे मानधन वगैरह देना पड़ता है. लेकिन भारतीय संस्कृति में सेवा कार्य की कल्पना केवल देने की है, लेने की नहीं. हमें किसी को कुछ देते समय मन में किसी प्रकार का अहम नहीं रखना चाहिए. बल्कि हमें यह सोचना चाहिए कि हमें जो कुछ मिला, यहीं से मिला और जो कुछ भी दिया, यहीं पर दिया.
कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत जी, अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख अनिल ओक जी सहित समाज के गणमान्य लोग मौजूद रहे.
गांव पट्टीकल्याण में बनने वाले सेवा साधना केंद्र के अंदर एक साथ दो हजार कार्यकर्ताओं के बैठने की व्यवस्था रहेगी. इसके अलावा इसमें पुस्तकालय, चिकित्सालय, ध्यान लगाने के लिए मेडिटेशन हॉल, मंदिर, गौशाला भी बनाई जाएगी.