सर्वंशदानी गुरु गोविंद सिंह के 350वे प्रकाशवर्ष के अवसर 5 मार्च, रविवार को सूरत (गुजरात) में आयोजित समागम कार्यक्रम में उद्बोधन करते हुए मा. श्री भय्या जी जोशी ( सर कार्यवह रा.स्व.संघ) ने कहाँ कि अपना देश संतो का देश रहा है इस देश ने कई महापुरुषों का सान्निध्य हमें प्राप्त होता रहा है. में सोच रहा था कि हम 350वां प्रकाशवर्ष क्यों मना रहे है, क्या गुरु गोविंद सिंह जी की महिमावर्णन करने के लिए हम कर रहे है? नहीं… उनकी महिमा और उनके जीवन का वर्णन हम जैसे सामान्य लोग क्या करेंगे ? सम्मान तो इस लिए कर रहे है क्योकि इससे हमें भी कुछ उर्जा मिलेगी, कुछ शक्ति मिलेगी, कुछ साहस जुटा पायेंगे और सब प्रकार की प्रतिकूल परिस्थिति में हम डटकर खड़े रहेंगे. इसलिए उनका स्मरण करना है. आज अगर देश को किसी बात की आवश्यकता होगी तो उस पुरुषार्थ की आवश्यकता है, उस साहस की आवश्यकता है, उस त्याग और समर्पण की आवश्यकता है अपना सर्वस्व न्योछावर करने की आवश्यकता है. ये सारी प्रेरणा कहाँ से मिलेंगी और में आज मानता हूँ कि दसमं गुरु गुरु गोविंद सिंह जी से श्रेष्ठ और कौन हो सकता है. कश्मीर में हिन्दुओ पर अत्याचार के समय गुरु तेग बहादुर धर्म की रक्षा करते हुए बलिदान हो गये.
गुरु गोविंद सिंह जी एक बहुमुखी प्रतिभा थे एक श्रेष्ठ कवि थे, आयुर्वेद का अध्ययन किया था, खगोल शास्त्र के ज्ञाता थे, इस प्रकार. ब्रज, अवधि, फारसी, अरबी भाषा के जानकर थे. और जब संघर्ष का अवसर आया तब अपनी तलवार का, अपनी कृपाण का पानी विश्व को दिखा दिया. इसलिए कहाँ क्या है कि जब भक्ति के मार्ग पर चलने कि लोगो को प्रेरणा देना है तो संत बनना पड़ता है जब धर्म कि रक्षा करना है तो सैनिक बनना पड़ता है. ऐसे संत और सैनिक दोनों का समागम जिनके जीवन में दिखायी देता है वो है गुरु गोविंद सिंह.
अपने यहाँ हिन्दू समाज में चार वर्णों की बात कहीं गई है हमने समाज को चार भागो में बाँट दिया. दसमं गुरु कहते है कि जबतक समाज का प्रत्येक व्यक्ति चारवर्णों के गुणों से संम्पन्न नहीं बनेगां तब तक समाज समाज नहीं रहेगा वो समाज टूट जायेंगा. आज सामाजिक समरसता का सबसे अच्छा उदाहरण हमें गुरूद्वारे में देखने को मिलता है जहाँ समाज का श्रेष्ठ व्यक्ति भी श्रधापूर्वक सफाई कार्य करता हुआ हमें देखने को मिलता है.
गुरु गोविंद सिंह ने कहाँ कि भक्ति का रास्ता अपने अंदर की शक्ति को जगाने के लिए है, कायर समाज कभी सम्मान के साथ नहीं जी सकता. समाज जीता है तो शक्ति के बलपर ऐसे पुरुषार्थी समाज की रचना गुरु गोविंद सिंह जी ने की. अपने परिवार का बलिदान कर दिया लेकिन इस्लाम नहीं स्वीकारा.
खालसा पंथ में दो शब्द चलते है संगत और पंगत. संगत में व्यक्ति आता है गुरुवाणी सुनकर भावविभोर हो जाता है भक्ति से अंत:करण भर जाता है और पंगत में बैठता है तो सब प्रकार के भेदों को भूलकर में हमसब एक ही ईश्वर की संतान है एक ही ईश्वर के अंश है इस भाव के साथ सब एक साथ भोजन करते है वहां कोई उंच नीच का भेद नहीं होता. क्या आज 350 वर्ष के बाद भी ये सारे संदेश प्रासंगिक नहीं है, क्या आज देश को उनके बताएं मार्ग पर चलने की आवश्यकता नहीं है. आज उनके बताएं मार्ग पर चलने की आवश्यकता है. आज अन्याय, अत्याचारों को सहन करने वाला समाज नहीं चाहियें. आज भारत को अगर दुनियां के सामने खड़ा रहना है. तो गुरु गोविंद सिंह के संदेशो का स्मरण करते हुए अंत:करण मे उन भावनाओ को प्रखर करने की आवश्यकता है.
अंत में श्री भय्या जी ने कहाँ कि देश को श्रेष्ठ सिधांतो पर चलाये न कि व्यक्तिओ के बलपर, व्यक्ति आता है चला जाता है. व्यक्ति के प्रति निष्ठा रखना जीवन का अधूरापन है क्योकि व्यक्ति की अपनी एक सीमा है और इस संदर्भ में जब हम गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन को देखते है तो पाते है कि उन्होंने हमें जीवन का मार्गदर्शन, त्याग समर्पण बलिदान का संदेश देने लिये हम सब के सामने गुरु ग्रंथ साहब को रखकर गये. हम उस पर माथा टेकते है और यही कामना करते है कि उसमें जो लिखा हुआ है वह हमारे मन मस्तिष्क में उतरे और मन मस्तिष्क में उतरा हुआ वह विचार आचरण के धरातल पर सारा समाज, सारा विश्व अनुभव करे यही उनके जीवन का श्रेष्ठ संदेश है. और इसलिए गुरुग्रंथ साहब को गुरु स्थान पर विराजमान किया. गुरुग्रंथ साहब हमसब के लिए वन्दनीय है,
गुरु गोविंद सिंह जी ने भारत के इतिहास को एक नई दिशा दी. उस नई दिशा को समझने वाला समाज उनके स्मरण से खड़ा होता रहे इसी के आधार पर भारत फिर एकबार सारे विश्व के मंच पर मार्गदर्शक करने की क्षमता रखने वाला और सारे विश्व को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाला बनेगा.
इस अवसर गुजरात के मा. मुख्यमंत्री श्री विजयभाई रूपाणि ने कहाँ सर्वंशदानी गुरु गोविंद सिंह के 350वां प्रकाश वर्ष सारा देश मना रहा है. प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसकी घोषणा भी भारत सरकार ने की है. गुरु गोविंद सिंह जी की वीरता, शोर्य, उनके परिवार का बलिदान भी इतिहास में अमर है. भाग्यशाली है क्योकि गुरु गोविंद सिंह जी के पंच प्यारो में गुजरात के द्वारका से मोहकम चंद भी चुने गए थे. गुरु गोविंद सिंह जी मुग़ल सल्तनत का सामना करने के लिए समाज जो शक्ति दी थी वह आज भी प्रेरणाश्रोत है. हमारी सेना में सिख रेजिमेंट हमारे लिए गौरव की बात है. गुरु गोविंद सिंह जी केवल सिख समाज के आदर्श नहीं है वरन संपूर्ण हिन्दू समाज के लिए आदर्श है. उन्होंने कहाँ कि गुरु गोविंद सिंह जी के 150वें प्रकाशवर्ष के अवसर पर गुजरात सरकार एक कार्यक्रम करने जा रही है जिसमे सिख समुदाय के साथ लगभग 50 हजार लोग सहभागी होंगे. इस कार्यक्रम में गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन की संपूर्ण कथा का मंचन किया जायेगा.
इस अवसर पर राष्ट्रीय सिख संगत उदघोष (गुजरात विशेषांक) का विमोचन गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजयभाई रुपानी, सिख संगत के राष्ट्रीय महामंत्री श्री अविनाश जयसवाल, राष्ट्रीय महासचिव श्री डॉ. अवतार सिंह तथा गुजरात के पदाधिकारियो की उपस्थिति में किया गया.
कार्यक्रम के प्रारंभ में प.पू. शाह गुरविंदर शाह सिंह जी द्वारा आशीर्वचन दिया गया. कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री मनोहर सिंह एम. नारंग ( वाईस प्रेसिडेंट, सोनीपत समाज), सम्मानीय अतिथि श्रीमति अस्मिता बहन शिरोय( मा. मेयर, सूरत महानगर पालिका), श्री गुरुबचन सिंघ गिल (राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय सिख संगत), श्री अविनाश जायसवाल (राष्ट्रीय संरक्षक, संगत उदघोष पत्रिका), श्री बलजीत सिंह संधू (राष्ट्रीय महामंत्री, राष्ट्रीय सिख संगत-कर्णावती ), डॉ. अवतार सिंह शास्त्री (राष्ट्रीय सदस्य, श्री गोविंद सिंह जी महाराज के 350वीं जन्म शताब्दी कमेटी, भारत सरकार) सहित अनेक गणमान्य महानुभाव इस अवसर पर उपस्थित रहे.