कुशक बकुला महात्मा बुद्ध की संकल्प परम्परा के वाहक रहे

17.5.2018

लेह. कुशक बकुला जी के जीवन की साधना और भूमि का केवल जम्मू कश्मीर लद्दाख की सेवा करने, भारत की अखंडता बनाए रखने में ही नहीं अपितु दुनिया को महात्मा बुद्ध के शांति और करुणा का संदेश से अवगत कराने में भी महत्वपूर्ण मानी जाती है. लेह में 16 मई को आयोजित कुशक बकुला जन्म शताब्दी समारोह के समापन अवसर पर मंच पर उपस्थित वक्ताओं ने ये विचार व्यक्त किए.

कुशक बकुला महात्मा बुद्ध के उस संकल्प, परम्परा के 19वें वाहक हैं, जिसमें बुद्ध ने कहा था – जब तक प्राणीमात्र कष्ट में है, तब तक मैं निर्वाण प्राप्त नहीं करूँगा. सर्वसमावेशी व्यक्तित्व के धनी कुशक बकुला संत, अध्यापक, देशभक्त, लोकप्रिय जननेता, सच्चे बौद्ध थे. सन् 1988 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया था. सन् 1989 में मंगोलिया में भारत के राजदूत रहते हुए मंगोलिया में लोकतंत्र बहाली के लिये कुशक बकुला का विशेष योगदान रहा. उन्होंने सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच के टकराव को शांत करते हुए भारी रक्तपात होने से बचाया. 10 वर्षों तक वे मंगोलिया में राजदूत रहे और बौद्ध धर्म पुनरुथान के लिए कार्य किया. राजदूत पद छोड़ने के बाद मंगोलिया ने उन्हें वहां का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पोलर स्टार’ प्रदान किया.

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राज्य विधानसभा के सभापति डॉ. निर्मल सिंह जी ने कहा कि छोटे से समाज से उठकर आए एक अवतरित पुरुष के रूप में दुनियाभर में उनका बड़ा सम्मान था. उनकी बात को बड़ा महत्व दिया जाता था. उन्होंने सामाजिक कुरितियों के प्रति भी समाज को जागृत किया.

कुशक बकुला के विचारों का जो दीप जलाया गया है, उसे मशाल का रूप देकर आगे बढ़ने का संकल्प सभा ने लिया. तीन दिन तक चलने वाले इस सेमीनार में देशभर से 100 से अधिक विद्वान व शोधार्थी आए हैं. बड़ी संख्या में लेह के स्थानीय प्रबुद्धजन कार्यक्रम में उपस्थित रहे.

वर्ष भर चले समारोह समिति के कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने में भारत तिब्बत सहयोग मंच, हिमालय परिवार, सीमा जागरण मंच, जम्मू कश्मीर अध्ययन मण्डल, धर्म संस्कृति संगम आदि संगठनों का विशेष सहयोग रहा.

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