महात्मा ज्योतिबा फुले इनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा ज़िले में हुआ था. उनका असली नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था. वह 19वी सदी की एक बड़े समाज सुधारक, सक्रिय प्रतिभागी तथा विचारक थे. ज्योतिबा फुले भारतीय समाज में प्रचलित जाति आधारित विभाजन और भेदभाव के खिलाफ थे
उन्होंने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए काफी काम किया. उन्होंने इसके साथ ही किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये. स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1854 में एक स्कूल खोला. यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था. लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया. उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए.
२४ सितंबर १८७३ को दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया. उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली. वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे.
उनके आयुष्य में महत्वपूर्ण बदलाव तब आया जब उनके मुस्लिम तथा इसाईं पडोसीयो ने उनकी अपार बुद्धिमत्ता को पहचानते हुए ज्योतिराव के पिता को ज्योतिराव को वहां के स्थानिक ‘ स्कोटीश मिशुनस हाई स्कूल ‘ में भर्ती करने के लिए राजी किया | थोमस पैन के ‘राइटस ऑफ़ माँन ‘ इस पुस्तक से प्रभावित होते हुए फुलेजी ने सामाजिक न्याय के लिए और भारतीय जातीवाद के खिलाफ अपना एक दृढ़ दृष्टिकोण बना लिया.
महात्मा फुले ने अपने जीवन में हमेशा बड़ी ही प्रबलता तथा तीव्रता से विधवा विवाह की वकालत की | दुसरो के सामने आदर्श रखने के लिए उन्होंने अपने खुद के घर के दरवाजे सभी जाती तथा वर्गों के लोगो के लिए हमेशा खुले रखे , इतना ही नहीं उन्होंने अपने कुए का पानी बिना किसी पक्षपात के सभी के लिए उपलब्ध किया. महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी. 28 नवम्बर सन 1890 को उनका देहावसान हो गया.
#vskgujarat.com