हरिद्वार (विसंकें). दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा अर्धकुम्भ मंथन के अन्तर्गत आयोजित व्याख्यान माला की चतुर्थ श्रृंखला में भारतीय संस्कृति के विकास में गंगा का महत्व विषय पर चर्चा की गई. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि गंगा हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति का पुण्य प्रवाह है जो भारत को धार्मिक, सांस्कृतिक, वैचारिक एकता के सूत्र में बांधती है. उन्होंने गंगाजल के विषय में कहा कि अकबर से लेकर औरंगजेब जैसे मुगल बादशाह गंगाजल का उपयोग करते थे, जो इसकी पवित्रता को सिद्ध करते हैं. भारत में आने वाले विश्व के दार्शनिकों, लेखकों ने गंगाजल को अमृत के समान बताया है. रहीम ने गंगा की स्तुति बड़े ही भावपूर्ण रूप से की है. जो गंगा को धर्म सम्प्रदाय तथा संकीर्ण मानसिकता से सर्वोपरि सिद्ध करती है. गंगा अविरल प्रवाह के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का संदेश सुनाती है. गंगा जीवंतता और निरतंर गतिशील रहने का विचार देती है.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बिहार के राज्यपाल महामहिम रामनाथ कोविन्द ने कहा कि प्रत्येक मंथन से अच्छी बुरी दोनों वस्तुएं निकलती हैं. मानव जीवन की सफलता इसी में है कि हम अच्छी बातों को अंगीकार करें. अर्धकुम्भ मंथन ऐसा मंच है, जिससे देश को नई दिशा विद्वानों के विचारों से मिल रही है. उन्होंने गंगा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गंगा मुक्तिदायिनी है, इस पर तो किन्तु परन्तु हो सकती है. लेकिन गंगा जीवनदायिनी है, इस पर कोई संशय नहीं है. गंगा जीवन में निरंतर प्रवाह का संदेश देती है, जो भारत की जीवन रेखा है. जिसके तट पर अनगिनत संस्कृतियों, सभ्यताओं का सृजन और पतन हुआ है. भारतीय संस्कृति के विकास में गंगा जहां पाप नाशिनी है, वहीं अर्थव्यवस्था और आजीविका का साधन भी है, इसमें कोई सन्देह नहीं है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि गंगा राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्र की सांस्कृतिक प्रवाह, दर्शन का विषय है. भारत गंगा के विषय पर एक मत है. गंगा का प्रवाह अविरल और निर्मल रहे, यही गंगा की आकांक्षा है. उन्होंने सरकार की योजना बताते हुए गंगा की निर्मलता के लिए किए जा रहे कार्यों, योजनाओं का विवरण भी प्रस्तुत किया. साथ ही एक वर्ष में विभिन्न पर्वों पर गंगा स्नान करने वाले साठ करोड़ श्रद्धालुओं से गंगा को स्वच्छ रखने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि भगवान राम और गंगा जी दोनों को शाश्वत बनाए रखने के लिए जहां रामकथाओं की आवश्यकता है, वहीं गंगा जी का अस्तित्व बचाने के लिए सवा सौ करोड़ भारतीयों को प्रयास करना होगा. बिना जन सहभागिता के गंगा कार्य असम्भव है. संत विजय कौशल जी महाराज ने गंगा जी का धार्मिक महत्व बताते कहा कि जन्म से मरण तक गंगा हमारी साक्षी रहती है. भारत में गंगा के बिना तीर्थ स्थलों का अस्तित्व ही नहीं है.
व्याख्यान माला के चतुर्थ दिवस में पधारे विशिष्ट महानुभावों का स्वागत दिव्य प्रेम सेवा मिशन के अध्यक्ष आशीष गौतम, संयोजक संजय चतुर्वेदी ने किया. संचालन विद्याभारती के प्रदेश निरीक्षक विजयपाल सिंह ने किया. इस अवसर सिने कलाकार मनोज जोशी, हरिद्वार के सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.