घरवापसी से उठा निष्कारण विवाद – ​-मा. गो. वैद्य

उत्तर प्रदेश के आग्रा नगर में 57 मुस्लिम परिवारोंने फिरसे अपने मूल हिन्दू धर्म में प्रवेश किया। इस घटना को लेकर संसद में तथा प्रसार माध्यमों में विनाकारण एक विवाद खड़ा किया गया है। अनेकोंने इस विधि को धर्मान्तरणधर्म परिवर्तनअंग्रेजी में कन्व्हर्शन’ कहा है। किन्तु यह धर्मपरिवर्तन नहीं है। यह अपने ही घर में यानी समाज में परावर्तन यानी पुनरागमन है। यहघरवापसी’ है। उनका धर्म परिवर्तन तो पहले ही हो चुका था।

इस्लाम का भारत मेंसारे विश्‍व में कहिएप्रसार किस तरह हुआ यह सर्वविदित है। इस्लाम का अर्थ शान्ति’ हैऐसा बताया जाता है। किन्तु कहीं पर भी इस्लाम का फैलाव शान्ति के मार्ग से नहीं हुआ है। अधिकतर मात्रा में तलवार की नोंकपर ही वह फैला है। सोचने की बात है कि पारसीयों को अपनी जन्मभूमि छोड़कर क्यों भागना पड़ा। राजपूत महिलाओं को जौहर की ज्वाला में अपना बलिदान क्यों करना पड़ा। कश्मीर घाटी की 50 लाख की मुस्लिम आबादी में 4लाख हिन्दू पण्डित क्यों नहीं रह पाएये सारे यदि इस्लाम को कबूल करते तो बच जाते। यह इतिहास है। जैसा प्राचीन वैसा आधुनिक भी।

कहने का मतलब यह है कि आग्रा में जिन मुस्लिम परिवारों ने घरवापसी कीउनका धर्म परिवर्तन पहले ही हो गया था। किस रीति से हुआ होगाइसकी चर्चा करने में अब कोई अर्थ नहीं। वे परिवार पहले हिंदू ही थे। भारत में आज मुसलमानों की संख्या करीब 15 करोड़ है। उन में से प्रतिशत भी बाहर से यानी अरबस्थान सेया तुर्कस्थान सेया इराण हे आये नहीं होेंगे। यहाँ जो हिन्दू थे उन में से ही 15 करोड़ मुसलमान बने हैं। उनमें से कुछ अब अपने पूर्वजों के घर में वापस आना चाहते हैंउनकी घरवापसी हो रही है तो यह सभी केकम से कम हिन्दुओं के आनन्द का विषय होना चाहिएन कि आलोचना का।

हिन्दुओं ने कभी भी बलात् धर्म परिवर्तन नहीं किया है। हिन्दुओं की यह नीति-रीति नहीं होती तो इराण से भागकर आए पारसी हिन्दुस्थान में अपने धर्म और उपासना के साथ नहीं रह पाते। एक हजार से भी अधिक वर्ष बीत गएकिन्तु पारसी अपनी आस्था और परम्परा के साथ आज भी विद्यमान हैं। ड़ेढ़ हजार साल से भी अधिक काल से अपने मातृभूमि से बिछ़ुड़े गए यहुदियों (ज्यू) ईसाई देशों में अनेक अपमान और यातनाएँ झेलनी पड़ी। किन्तु भारत में वे बाइज्जत सुरक्षित रह सके। इसका कारण भारत में हिन्दू बहुसंख्या में थे और हैयह है।

हिन्दुओं की एक मौलिक मान्यता है कि परमात्मा एक होने के बावजूद उसके अनेक नाम हो सकते हैंउसकी उपासना के अनेक प्रकार हो सकते हैं। विविधता का सम्मान (Appreciation of plurality) यह हिन्दुओं की संस्कृति की अविभाज्य धारणा है। अत: बलप्रयोग से या लालच से अपनी संख्या बढ़ाने में हिन्दुओं को पहले भी रुचि नहीं थी और न आज है।

हाँएक परिवर्तन अवश्य हुआ है। पहले कुछ रूढ़ियों के कारण हिन्दू समाज से बाहर जानेका ही दरवाजा खुला था। जो अपने हिन्दू धर्म को छोड़कर गया वह उसकी इच्छा के बावजूद भी नहीं लौट सकता था। अब हिन्दू समाज ने अपना प्रवेशद्वार भी खोला है। जो गया वह वापस आ सकता है। पूर्व में आर्य समाज ने यह कार्य किया। आज जिनको सनातनी कहते हैउन्होंने भी अपने में बदलाव किया है और जो बिछुड़ गएउन को फिरसे लौटने की सुविधा निर्माण की है।

बात 1964 या 1965 की होगीसब शंकराचार्यधर्माचार्यमहन्तपीठाधीश और साधु-सन्त कर्नाटक के उडुपी में मिले थे और उन्होंने जाहीर किया कि जो गए हैं वे वापस आ सकते हैं। उनका उद्घोष है-

हिन्दव: सोदरा: सर्वे

न हिन्दु: पतितो भवेत्।

भारत हिन्दुबहुल देश हैइसलिए यहाँ का राज्य

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पंथनिरपेक्ष (Secular) है। पाकिस्तानबांगला देशइराणइराकसौदी अरेबियालीबिया यहाँ के राज्य क्यों सेक्युलर नहीं हैंइसका खुले दिल से विचार करना चाहिए। इसलिए हिन्दू समाज से जोकिसी भी कारण से अलग हो गए हैं,वे यदि अपने समाज में फिरसे आते हैंतो उनका स्वागत करना चाहिए। घरवापसी का स्वागत करना चाहिएन कि उसकी निन्दा।

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मा. गो. वैद्य

11-12-2014

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