घर, विद्यालय और समाज में हो एक जैसी शिक्षा – डॉ. मोहन भागवत जी

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि कोई भी ग्रन्थ अंतिम शब्द नहीं होता. ग्रन्थ पोथी बद्धता को बढ़ाने वाले नहीं होने चाहिए, जबकि हम सभी पोथीबद्ध हो जाते हैं. औपनिवेशिक काल में स्वामी विवेकानंद, रविन्द्र नाथ ठाकुर, महात्मा गांधी जैसे हमारे महापुरुषों ने हालांकि मैकाले की शिक्षा पद्धति से शिक्षा प्राप्त की, लेकिन वे इससे अप्रभावित रहे और भारतीय शिक्षा पद्धति पर ही ध्यानाकर्षित किया. सरसंघचालक जी भारतीय पुनरूत्थान विद्यापीठ द्वारा आयोजित भारतीय शिक्षा ग्रंथमाला के लोकार्पण समारोह में संबोधित कर रहे थे.

सरसंघचालक ने कहा कि भारतीय शिक्षा को पुनर्जीवित करने के लिए हमारे यहाँ प्रयास किया जा रहा है. हमारे यहाँ बीती कुछ शताब्दियों में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य धीमा हो गया है. विश्व में बहुत सी अच्छी अपनाने योग्य बातें हैं, लेकिन उन्हें हम किस रूप में कैसे लेते हैं, वह हमारे ऊपर है. शिक्षा में सुधार के लिए बेहद आवश्यक है कि हमारे महापुरुषों ने क्या कहा, कहाँ कहा, इन सबको समझने के लिए महापुरुषों के बारे में अध्ययन करना पड़ता है. घर में भी, विद्यालय में भी, समाज में भी एक जैसी शिक्षा जब-तक नहीं मिलेगी, तब-तक अच्छी शिक्षा संभव नहीं है.

उन्होंने कहा कि प्रायः विकास के सन्दर्भ के लिए अमेरिका और इंग्लैंड की ओर देखा जाता है, जबकि शिक्षा के क्षेत्र में फिनलैंड की शिक्षा पद्धति इस समय विश्व में श्रेष्ठ है. वहां की शिक्षा पद्धति भारत की गुरुकुल परंपरा से मिलती जुलती है. वहां शिक्षक विद्यार्थियों को अधिक अंक लाने के बजाए, अच्छे नागरिक बनने के लिए प्रेरित करते हैं. उन्होंने कहा कि हमारा तर्क अकाट्य होता है, लेकिन जमीन पर उस पर काम हो रहा है कि नहीं यह अधिक महत्वपूर्ण है.

राष्ट्र सेविका समिति की पूर्व संचालिका प्रमिला ताई ने कहा कि अच्छी बात है कि हम शिक्षा की मजबूती के बारे में सोचते हैं. शिक्षा का सुधार केवल शासन से नहीं हो सकता. माँ की भूमिका में आकर शिक्षा देने वाले की शिक्षा उत्तम होती है, इसीलिये हम माँ सरस्वती कहते हैं. शिक्षा हमारे देश में मानव बनाने की प्रक्रिया है. इसलिए मानव बनाने वाली ही शिक्षा होनी चाहिए. भारत देश में शिक्षा न सिर्फ पुस्तकीय ज्ञानभर है, बल्कि व्यवहारिक स्तर भी दिशासूचक का काम करती है, समय समय पर इसके उदाहरण हम देखते रहे हैं. हमारी शिक्षा पद्धति संस्कार देने को प्राथमिकता देती है. घर, विद्यालय, समाज एक से संस्कार यहां मिलते आए हैं. हमारी विशेषता है कि हम माँ को अपना आदर्श मानते आए हैं, इसलिए गुरुकुल में भी हमने गुरु माँ ही कहा है.

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