जुनून शायद इसी को कहते हैं..

लॉक डाउन के दौर में अपने घर की चार दिवारी को वर्ली आर्ट से सजा दिया।

लॉकडाउन के करीब 2 महीने के दौर में आपने कई तरह के तामझाम करते हुए लोगों को देखा होगा। कोई सेलिब्रिटी झाड़ू और बर्तन साफ करते हुए तस्वीरें साझा कर रहा था, कोई बल्ले से बॉल को ठोक बजा रहा था, कई मित्र एक दूसरे को अलग-अलग चैलेंजेस दे रहे थे और कुछ मेरी तरह वेबिनार, लाइव चैट्स और इधर इधर की पंचायत में व्यस्त रहे। सबके अपने-अपने जुनून रहे होंगे। असली जुनून का काम तो गुजरात के तापी जिले के पाठकवाड़ी गाँव के एक शिक्षक महोदय ने कर दिखाया।

तापी जिले के यात्राधाम उनई से करीब 2 किमी दूर स्थित पाठकवाड़ी गाँव के निवासी श्री तुलसीदासभाई पटेल ने अपनी पत्नी प्रीति बेन के साथ मिलकर लॉक डाउन के दौर में अपने घर की चार दिवारी को वर्ली आर्ट से सजा दिया। मेहनत भी इतनी जबरदस्त की गई कि आंखें भी निहार निहार का थक जाएं। ये सिर्फ और सिर्फ एक जुनून था जो इन तस्वीरों पर निखर कर दिखायी दे रहा है। ये जुनून सिर्फ इस कला को अपने घर की चार दिवारी को चित्रित करने तक का नहीं था,इसे पूरा करने के लिए इन्होंने बाकायदा पूरी तैयारी भी की।

तुलसीदास भाई ने मिट्टी, पेड़ पौधों की छाल और धान की फुसकी (चूरा/ बुरादा) और पानी से गारा तैयार किया, जिसे कठिन परिश्रम से घर की चार दिवारी पर लगाया गया। इसके सूख जाने के बाद मिट्टी के गेरू रंग और चूने की मदद से वर्ली कलाकृतियों को दीवार पर उकेरा गया। आदिवासी पारंपरिक कलाकृति के जरिए इन्होंने कोविड महामारी को भी चित्रित कर दिया है। कोरोना आपदा से प्रभावित मुद्दों और कोरोना वारियर्स का भी वर्ली आर्ट के जरिए इन्होंने चित्रण किया है।

आमतौर पर वर्ली कला में खेत खिलहान, तीज त्योहार और वनवासियों की जीवनशैली का चित्रण ही होता है। हिंदुस्तानी पारंपरिक कला और कोरोना परिदृश्य को बड़े ही नायाब तरीके से तुलसीदास भाई ने अपने घर की चार दिवारी पर उतारा है। आज आसपास के लोग पाठकवाड़ी गाँव सिर्फ इस लिए पहुँच रहे हैं ताकि तुलसीदास भाई के जुनून को निहार पाएं।

तुलसीदास भाई की इस जानकारी को साझा करते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है। मोबाइल, कम्प्यूटर और डिजिटल क्रांति के दौर में एक कलाकार और शिक्षक ऐसा ही भी है जो वर्ली जैसी खूबसूरत कला को जिंदा रखना चाहता है। उसे बचाने की पूरी कवायद करता है, फिर परिस्थितियां चाहे जैसी भी क्यों न हो।

आप मिसाल हैं तुलसीदास भाई, आपने जो कर दिखाया, जुनून शायद इसी को कहते हैं।

साभार : बौद्धिक विभाग, फेसबुक पेज 


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