नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत के पुरातन ज्ञान और परंपरा को नकार कर किया गया विकास न तो पूरी तरह जनहित में होगा और न ही प्रकृति का पोषक होगा. पुरातन ज्ञान और परंपरा को नजरअंदाज कर किये विकास का ही परिणाम आज देखने को मिल रहा है. इस विकास के दुष्परिणामों से चौतरफा चिंता हो रही है और प्रकृति को बचाने की गुहार लगायी जा रही है. इसलिए इन तीनों का समन्वय कर विकास की आधारशिला रखनी चाहिए.
सरसंघचालक जी अखिल भारतीय उत्तराखंड त्रासदी पीड़ित मंच के तत्वाधान में आयोजित श्रद्धांजली कार्यक्रम एवं प्राकृतिक आपदा, पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन विषय पर परिचर्चा में संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब के स्पीकर हॉल में 17 जून को किया गया. परिचर्चा में उपस्थित गणमान्यजनों ने सर्वांगीण विकास के विविध आयामों पर गंभीर मंथन किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी, भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी, सहित केंद्रीय मंत्री व अन्य उपस्थित थे.
सरसंघचालक जी ने कहा कि भारतीय संस्कारों को आत्मसात किये बिना समाज का भला नहीं हो सकता है. संघ भारतीय समाज के संस्कारों को लोगों में दृढ़मूल करने के काम में जुटा है. विकास के बारे में विश्व और भारत के भीतर से उठ रही प्रतिक्रियाओं पर ध्यान देने की बजाय जो विकास सर्वथा समाज और प्रकृति के हित में हो, उसका मार्ग प्रशस्त करना चाहिए. ऐसा होने पर किसी बड़े हादसे से बचा जा सकता है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि अगर यह धरती हमारी माता है तो हिमालय हमारा पिता है. हम सब इन दोनों की संतान हैं. इनकी रक्षा करना हम सभी बच्चों का परम कर्तव्य है. इसलिए आधुनिक परिप्रेक्ष्य में हिमालय को बचाने के बारे में चिंता करने की जरूरत है. हिमालय हमारी सुरक्षा की प्राचीर है. अगर वह हिला तो हम सुरक्षित बैठ नहीं सकते. इसलिए उसका ध्यान रखना हमारी विवशता है, साथ ही कर्तव्य भी. हिमालय की रक्षा के लिए विशेष दृष्टिकोण वाला संस्थान चाहिए.
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि हिमालय आठ देशों की सीमाओं को कवर करता है. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी का ध्यान इस ओर गया और 150 करोड़ की योजना बनी. इस योजना के तहत सभी आठ देशों की बैठक भी हो गयी है. इसमें सभी देशों ने इस बात पर विचार किया कि विकास का खाका बनाते समय हिमालय को कैसे नुकसान न पहुंचे, इस बात पर गंभीरता से मंथन किया गया. इस संबंध में रिपोर्ट आने के बाद ऐसा कार्यक्रम बनाया जाएगा, जिससे हिमालय प्रभावित न हो और 2013 जैसा केदारनाथ हादसा न हो.
केंद्रीय मंत्री वीके सिंह और निर्मला सीतारमन ने भी हिमालय में तीर्थाटन को बढ़ाना देने की बात कही. लेकिन चेतावनी दी कि उसे पर्यटन स्थल न बनने दिया जाए. पर्यटन स्थल बनने के काऱण ही अंधाधुंध विकास हुआ. इसी से केदारनाथ जैसा हादसा हुआ. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने हिमालयी इलाकों के लिए केंद्र सरकार से अलग मंत्रालय गठित करने का आग्रह किया.