ज्ञान का तात्पर्य केवल किताबी जानकारी नहीं है – डॉ. मोहन भागवत

नागपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारे देश की भाषा, संस्कृति और समाज में विविधताएं हैं. इसलिए शिक्षा की दिशा एकसमान हो कर भी पद्धतियों में भिन्नता हो सकती है. ऐसे में केंद्र से शिक्षा नीति बनना व्यवहार सम्मत नहीं होगा, इसलिए शिक्षा नीति विकेंद्रित होनी चाहिए. सरसंघचालक नागपुर के सिताबर्डी स्थित सेवासदन शिक्षा संस्थान द्वारा आयोजित रमाबाई रानडे स्मृति शिक्षा प्रबोधन पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि अच्छा कार्य भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिये उसकी प्रशंसा में स्तुति गान गाए जाते है. शिक्षा सभी प्रकार के विकास एवं उन्नति का आधार है. हमारे जीवन में बहुत बार ज्ञान शब्द का प्रयोग होता है. लेकिन ज्ञान का तात्पर्य केवल किताबी बातों से नहीं है. बल्कि हमें प्राप्त शिक्षा का जीवन में उपयोग करने की विधि को ज्ञान कहते हैं. सूचना और ज्ञान में अंतर होता है. सूचनाओं के साथ जब विवेक जुड़ता है तो उसका ज्ञान बन जाता है. हम अपने जीवन में जो कुछ करते हैं, उसका अपना एक महत्त्व होता है. हम जो कुछ भी हैं, उसे स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए. दुनिया में कुछ भी छोटा-बड़ा नहीं होता है. हम जो कुछ भी हैं, उस अस्तित्व के यथार्थ से शर्मसार होने की आवश्यकता नहीं है.

उन्होंने कहा कि समाज में से महिलाओं की उपेक्षा समाप्त होगी तभी देश सही मायनों में प्रगित करेगा. मातृशक्ति में प्रगति एवं विकास की असामान्य शक्तियां मौजूद हैं. उन्हें अपनी प्रतिभा और योग्यता का परिचय देने के लिए केवल उन पर लादी गईं बंदिशों से मुक्त करने की आवश्यकता है. हमारी प्राचीन सभ्यता में महिलाओं पर किसी भी प्रकार की पाबंदियां नहीं थीं. लेकिन मध्ययुगीन काल में घटित घटनाओं के बाद सामाजिक परिवर्तन के दौर में महिलाओं को बेड़ियों में जकड़ा गया. उन्हें इन बेड़ियों से मुक्ति दिलाना बेहद आवश्यक है. महिला सशक्तिकरण यह समय की मांग है.

सरसंघचालक ने कहा कि देश में बन रही नई शिक्षा नीति पर कहा कि देश में नई शिक्षा नीति का सृजन होने की चर्चा है. लेकिन उन नीतियों पर अब तक अमल नहीं हुआ है. आगे चल कर शिक्षा नीति कौन संचालित करेगा, इस पर इन शिक्षा नीतियों का भविष्य निर्भर करता है. शिक्षा प्रणाली के तय ढांचे से बाहर निकल कर कई नए सकारात्मक प्रयोग हो रहे हैं. लेकिन इन प्रयोगों को समाज में ढालने की आवश्यकता है. ऐसा हो पाया तो ही सरकार उस हिसाब से कार्य करेगी.

कार्यक्रम के अध्यक्ष सत्यनारायण नुवाल ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में बहुत तेजी से शिक्षा का प्रचार हो रहा है. जिससे लोगों में शिक्षा को लेकर चेतना बढ़ रही है. लेकिन इस दौर में सामाजिक संवेदनाएं कम होती नजर आ रही हैं. देश, समाज और परिवार के प्रति संवेदना का ना होना चिंता का विषय है. इसलिए शिक्षा से संस्कारो की निर्मिति होना आवश्यक हो जाता है. सेवासदन संस्था की अध्यक्षा कांचन गडकरी ने संस्था का कार्य, प्रवास तथा भूमिका पर जानकारी दी. कार्यक्रम का संचालन आशुतोष अडोनी ने किया.

कार्यक्रम के दौरान अभ्युदय ग्लोबल विलेज स्कूल के सिचन और भाग्यश्री देशपांडे को सरसंघचालक ने सम्मानित किया. शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें रमाबाई रानडे स्मृति शिक्षा प्रबोधन पुरस्कार से नवाजा गया.

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