कहते हैं कि किसी समय भारत में दूध-दही की नदियां बहती थीं; पर फिर ऐसा समय भी आया कि बच्चों तक को शुद्ध दूध मिलना कठिन हो गया। इस समस्या को चुनौती के रूप में स्वीकार करने वाले श्री वर्गिस कुरियन का जन्म 26 नवम्बर, 1921 को कोझीकोड (केरल) में हुआ था। मैकेनिकल इंजीनियर की पढ़ाई कर वे सेना में भर्ती होना चाहते थे; पर कुछ समय पूर्व ही उनके पिता की मृत्यु हुई थी। अतः मां ने उन्हें अनुमति नहीं दी और चाचा के पास जमशेदपुर भेजकर टाटा उद्योग में काम दिला दिया।
1944 में सरकारी छात्रवृत्ति पाकर उन्होंने अमरीका के मिशिगन वि.वि. से मैकेनिकल तथा डेयरी विज्ञान की पढ़ाई की। इससे पूर्व उन्होंने राष्ट्रीय डेरी शोध संस्थान, बंगलौर में भी प्रशिक्षण लिया था। पढ़ाई पूरी होते ही अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी यूनियन कार्बाइड ने उन्हें बहुत अच्छे वेतन पर कोलकाता में नौकरी का प्रस्ताव दिया; पर सरकारी अनुबन्ध के कारण उन्हें 1949 में गुजरात के एक छोटे से कस्बे आनंद के डेरी संस्थान में नौकरी स्वीकार करनी पड़ी।
श्री कुरियन खाली समय में वहां कार्यरत ‘खेड़ा जिला दूध उत्पादक संघ’ की कार्यशाला में चले जाते थे। यह घाटे में चल रही एक सहकारी समिति थी, जिसकी देखरेख श्री त्रिभुवन दास पटेल करते थे। श्री कुरियन के सुझावों से इसकी स्थिति सुधरने लगी। गांव वालों का विश्वास भी उनके प्रति बढ़ता गया। अतः अनुबंध पूरा होते ही उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर 800 रु. मासिक पर इस समिति में प्रबंधक का पद स्वीकार कर लिया।
श्री कुरियन के प्रयासों से समिति के चुनाव समय पर होने लगे। काम में पारदर्शिता आने से गांव के लोग स्वयं ही इससे जुड़ने लगे। उन्होंने अपनी समिति से लोगों को अच्छी नस्ल की गाय व भैंसों के लिए कर्ज दिलवाया तथा दूध की उत्पादकता के साथ ही उसकी शुद्धता पर भी जोर दिया। कुछ ही समय में उनकी सफलता की चर्चा पूरे देश में होने लगी।
1965 में प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने उन्हें पूरे देश में इसी तरह का काम प्रारम्भ करने को कहा। श्री कुरियन ने दो शर्तें रखी। पहली तो यह कि उनका मुख्यालय आनंद में ही होगा और दूसरी यह कि सरकारी अधिकारी उनके काम में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। शास्त्री जी ने इसे मान लिया। इस प्रकार आनंद और अमूल के उदाहरण के आधार पर पूरे देश में काम प्रारम्भ हो गया।
उनकी कार्यशैली के परिणाम शीघ्र ही दिखाई देने लगे। उन दिनों गर्मियों में दूध की कमी हो जाती थी। अतः महंगे दामों पर विदेश से दूध मंगाना पड़ता था; पर आज वर्ष भर पर्याप्त दूध उपलब्ध रहता है। उन्होंने विश्व में पहली बार भैंस के दूध से पाउडर बनाने की विधि भी विकसित की।
वैश्विक ख्याति के व्यक्ति होने के बाद भी वे टाई या सूट जैसे आडम्बर से दूर रहते थे। उनके प्रयासों से गुजरात और फिर भारत के लाखों दूध उत्पादकों की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ। उनकी उपलब्धियों को देखकर उन्हें राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर के अनेक प्रतिष्ठित सम्मान मिले।
भारत को विश्व में सर्वाधिक दूध उत्पादक देश बनाने वाले दुग्ध क्रांति के पुरोधा श्री कुरियन का 90 वर्ष की आयु में नौ सितम्बर, 2012 को अपनी कर्मभूमि आनंद में ही देहांत हुआ। वे जन्म से ईसाई होते हुए भी अनेक हिन्दू मान्यताओं के समर्थक थे। अतः उनकी इच्छानुसार आनंद के कैलाश धाम में सर्वधर्म प्रार्थना सभा के बीच उनका दाह संस्कार किया गया.
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