जूनागढ़ (गुजरात) : हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी राज्य में प्रसिद्ध चार दिवसीय गिरनार परिक्रमा यात्रा विधिवत रूप से सोमवार मध्यरात्रि से शुरु हुई है, लेकिन लगभग 2 लाख भक्तो ने दो दिन पूर्व ही यह यात्रा पूरी कर ली है। जूनागढ़ में गिरनार की 36 किलोमीटर लम्बा परिक्रमा का रास्ता अंधकारमय, पथरीला और कंटीला होने के बावजूद इसमें हर वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है।इस वर्ष 8 लाख भक्तो के जुड़ने का अनुमान है। भक्ति, भोजन तथा भजन के लिए प्रसिद्ध इस यात्रा को लीली (हरी) परिक्रमा के नाम से जाना जाता है।
गिरनार परिक्रमा का पूरा मार्ग वन विभाग में हैं। मार्ग में ठहरने के लिए न धर्मशाला है, न ही सोने के लिए बिस्तर। पानी के लिए नल और खाने के लिए होटल नहीं। चहुं ओर घना जंगल, ऊंचे पेड़, झाडियां, घटादार वृक्षों के बीच होकर श्रद्धालु परिक्रमा कर रहे हैं।आदि काल से यह परिक्रमा हर वर्ष दीपावली के ग्यारह दिन बाद शुरू होती है। घने जंगलों से हो कर निकलने वाला मार्ग पथरीला, कंटीला और झाडियों से घिरा है। परिक्रमा के समूचे मार्ग में बिजली व सुविधाओं के अभाव के बावजूद श्रद्धालुओं में भारी उत्साह और श्रद्धा इस कठिन रास्ते को भी आसान कर देती है। राज्य सरकार की ओर से भी अतिरिक्त एसटी बसें चलाई गई हैं तो निजी संस्थाओं ने श्रद्धालुओं की सेवा के लिए सेवा केन्द्र खोले हैं।
सोमवार को गिरनार परिक्रमा शुरू होने के बाद 12 किलोमीटर की यात्रा कर शाम तक श्रद्धालु झीणा बावा की मढी पहुंचे और वहां रात्रि विश्राम किया। श्रद्धालु रास्ते में भजन-धुन-प्रार्थना जैसे भक्तिपूर्ण कार्यक्रम करते हैं। श्रद्धालु अपने साथ रसोई का सामान भी ले जाते हैं। तीसरे दिन यानी त्रयोदशी को तड़के श्रद्धालु सरनो नदी में स्नान करके फिर परिक्रमा के लिए चलना शुरू करते हैं। झीणा बावा की मढी से निकल कर श्रद्धालु 8 किलोमीटर चलते हैं और शाम होने तक मालवेला पहुंचते हैं।
मालवेला में आम के अनेक पेड़ हैं। गिरनार पर्वत का यह मध्य भाग है। मालवेला में रात्रि विश्राम के बाद चतुर्दशी को सुबह श्रद्धालु फिर परिक्रमा शुरू करते हैं। 8 किलोमीटर चलने के बाद श्रद्धालु बोरदेवी पहुंचते हैं। बोरदेवी अति रमणीय स्थल है। यहां बोरदेवी माताजी का मंदिर है। यहां रात्रि विश्राम के बाद श्रद्धालु पूर्णिमा की सुबह यहां से फिर चलना शुरू करते हैं।
परिक्रमा के अंतिम पड़ाव बोरदेवी से तलहटी तक का यह मार्ग परिक्रमा श्रद्धालुओं के लिए कम परेशानी वाला होता है। पूर्णिमा की शाम तक श्रद्धालु बोरदेवी से तलहटी लौट आते हैं और इसके साथ ही गिरनार परिक्रमा पूरी होती है।