देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा – अतुल कोठारी जी

नई दिल्ली. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय छात्र कार्यशाला का सोमवार 12 अक्तूबर को समापन हो गया. कार्यशाला का आयोजन सरस्वती बाल मंदिर नेहरु नगर में किया गया था. कार्यशाला के मुख्य ध्येय वाक्य – “देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा” पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव एवं शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के राष्ट्रीय सह संयोजक अतुल कोठारी जी ने प्रकाश डाला. कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयीन शिक्षा के अध्यक्ष चंद्रभूषण शर्मा, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अतिरिक्त सचिव पंकज मित्तल जी का सानिध्य देश भर से आए 200 छात्रों को प्राप्त हुआ.

अतुल कोठारी जी ने कहा कि मौजूदा समय में जो शिक्षा हमें दी जा रही है, उसका उद्देश्य ही स्पष्ट नहीं है और जब शिक्षा का उद्देश्य ही स्पष्ट नहीं होगा तो वह शिक्षा हमारे जीवन में बदलाव कैसे ला सकती है. यही कारण है कि जीवन में उद्देश्यपरक शिक्षा की बहुत ज्यादा जरूरत है. जब तक शिक्षा में उचित बदलाव नहीं होगा, तब तक शिक्षा को बचाने के लिए उनकी लड़ाई जारी रहेगी. अतुल कोठारी मानते हैं कि देश का मुख्य एजेंडा शिक्षा होना चाहिए. इसके साथ ही हमें दी जाने वाली शिक्षा प्रणाली हमारी संस्कृति और विचारों के अनुरूप होनी चाहिए.

उन्होंने शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति की उपब्धियों के बारे में बताया कि शिक्षा को बचाने के मद्देनजर जिला न्यायालयों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक के 11 फैसले हमारे पक्ष में आए हैं, जो हमारे आंदोलन के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. शिक्षा में बदलाव के लिए पाठ्यक्रम की बहुत बड़ी भूमिका होती है और हमारे आंदोलन के कारण आज मौजूदा शिक्षा के पाठ्यक्रम पर चर्चा शुरू हो गई है. उन्होंने कहा कि शिक्षा का मूल्य आधारित होना बेहद जरूरी है. इसके अलावा शिक्षा मातृ भाषा में होनी चाहिए, शिक्षा स्वायत्त होनी चाहिए, शिक्षा का व्यावसायीकरण नहीं होना चाहिए, क्योंकि जब शिक्षा का व्यावसायीकरण हो जाता है तो वह मूल्य आधारित नहीं रह जाती है. यही वजह है कि मौजूदा शिक्षा में बदलाव के साथ-साथ उसे पढ़ाने की पद्धति में भी बदलाव बेहद ही जरूरी है. क्योंकि अब तक जो इतिहास हमें पढ़ाया जाता रहा है उसमें बहुत खामियां हैं. बच्चों को अगर भारत का सही इतिहास नहीं पढ़ाया जाएगा तो वह भारत को कैसे जानेंगे.

अतुल जी ने कहा कि दिन पर दिन शिक्षा का स्तर इतना संकुचित होता जा रहा है कि हमारी मातृ भाषा हिन्दी भी उससे अछूती नहीं रही है. जिस हिन्दी भाषा को अमूल्य बताते हुए हम विश्व हिन्दी सम्मेलन मनाते हैं, उसको न्याय प्रक्रिया, उच्च शिक्षा, सरकारी कामकाज, प्रतियोगात्मक परीक्षाओं आदि में इस्तेमाल नहीं किया जाता है. असल में अगर देखा जाए तो देशभर में भ्रम के एक वातावरण का निर्माण किया जा रहा है जो यह बताता है कि अंग्रेजी के बिना कुछ नहीं हो सकता है. जबकि दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जिन्होंने अंग्रेजी को तो अपनाया, लेकिन अपनी मातृ भाषा को सबसे ऊपर रखा है. अन्य देशों की तरह हमें भी अपनी मातृ भाषा को बचाने के लिए अंग्रेजी की अनिर्वायता को समाप्त करना होगा. हमें पढ़ाई जाने वाली किताबों में ऐसी-ऐसी बातें हैं, जिनका हकीकत से दूर-दूर तक नाता नहीं है. इस प्रकार की शिक्षा पर रोक लगाने के लिए सभी प्रकाशन विभागों की मॉनीट्रिंग होनी चाहिए. संकुचित विचारधारा वाली किताबों को सिलेबस से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए. स्कूलों में सेक्स एजुकेशन पर कहा कि सेक्स एजुकेशन की जगह स्कूलों में चरित्र निर्माण की शिक्षा दी जानी चाहिए. बच्चों को सदाचार और जीवन मूल्यों के बारे में बताना चाहिए. जिन लोगों को सदाचार का पाठ पढ़ाया जाता है, उनकी इंद्रियां हमेशा ही उनके वश में रही हैं. लिहाजा, सेक्स एजुकेशन की जगह सदाचार को सिलेबस बनाना चाहिए. अतुल कोठारी ने बताया कि शिक्षा पद्धति में बदलाव लाने के लिए वह देशभर में संगोष्ठियों को आयोजन कर रहे हैं. इन संगोष्ठियों में मौजूदा शिक्षा नीति में क्या बदलाव होना चाहिए जैसे विषयों पर चर्चा की जा रही है. संगोष्ठियों के माध्यम से जो सुझाव आएंगे, उन सुझाव पर एक रिपोर्ट तैयार कर उसे केन्द्र सरकार को सौंपेंगे.

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