नागपुर के विजयादशमी उत्सव 2024 में प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवतजी का प्रतिपादन 

12-10-2024

पंचपरिवर्तन के लिए सम्पूर्ण समाज की सक्रिय सहभागिता का आह्वान  

दृश्य-श्रव्य सामग्री पर कानूनी नियंत्रण की आवश्यकता

 संघ शताब्दी वर्ष के अवसर पर सामाजिक समरसता, पर्यावरण, नागरिक कर्तव्य, कुटुम्ब प्रबोधन और स्व-आधारित व्यवस्था के विषय को संघ का  स्वयंसेवक समाज तक पहुंचाएगा और पंच परिवर्तन के लिए पूरा समाज सक्रिय रूप से सहभागी हो, ऐसा  आह्वान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने किया ।  नागपुर के रेशिमबाग मैदान पर आयोजित संघ के विजयादशमी उत्सव में  वे उपस्थितों को सम्बोधित कर रहे थे।  

विभिन्न माध्यमों एवं संस्थाओं द्वारा फैलाए जा रहे विकृत प्रचार एवं कुसंस्कार भारत की नई पीढ़ी के विचारों, शब्दों एवं कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। मोबाइल फोन  बड़ों के साथ-साथ बच्चों के हाथों में भी पहुँच चुका है, वहाँ क्या दिखाया जा रहा है, बच्चे क्या देख रहे हैं, इस पर उनका पर्याप्त नियंत्रण नहीं  है। मोबाइल में परोसी जा रही सामग्री का उल्लेख करना भी शालीनता का उल्लंघन जैसा है, यह बहुत घृणित है। सरसंघचालकजी ने इस बात पर जोर दिया कि हमारे अपने घरों, परिवारों और समाज में विकृत विज्ञापनों और विकृत दृश्य-श्रव्य सामग्री पर कानूनी नियंत्रण की तत्काल आवश्यकता है।

इस दौरान मंच पर कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि के रूप में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व अध्यक्ष   डॉ. कोपिलिल राधाकृष्णन, विदर्भ प्रान्त के मा. संघचालक श्री दीपक तामशेट्टीवार, विदर्भ प्रान्त के मा. सह संघचालक श्रीधरराव गाडगे तथा नागपुर महानगर मा. संघचालक श्री राजेश लोया उपस्थित थे।

सांस्कृतिक प्रदूषण फैलानेवाले षड्यंत्रों से समाज को सुरक्षित रखने की आवश्यकता

 ‘डीप स्टेट’, ‘वोकिज्म’, ‘कल्चरल मार्क्सिस्ट’ जैसे शब्द इस समय चर्चा में है। उनका काम सांस्कृतिक-मूल्यों, परम्पराओं को नष्ट करना है। उनकी कार्यप्रणाली शिक्षा व्यवस्था, संचार माध्यम, बौद्धिक संचार आदि को अपने प्रभाव में लाना और उसके माध्यम से समाज के विचारों, मूल्यों और श्रद्धाओं को नष्ट करना है। इस पृष्ठभूमि में, सरसंघचालकजी ने कानून, व्यवस्था, शासन, प्रशासन में अविश्वास और घृणा बढ़ाकर अराजकता और भय का वातावरण बनानेवालों से सावधान रहने की आवश्यकता पर जोर दिया।

हिन्दुओं के शील-सम्पन्न शक्ति साधना का नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

सरसंघचालकजी ने कहा कि ‘विश्व बलहीनों कों नहीं, बलवानों को पूजता है’

आज दुनिया की यही रीत है। अतः सज्जनों को उपरोक्त सद्भाव एवं संयमित वातावरण स्थापित करने के लिए सशक्त बनाना होगा। शक्ति जब सद्गुणों से युक्त होती है तो वह शान्ति का आधार बन जाती है। दुष्ट लोग स्वार्थ के लिए इकट्ठे होते हैं और सतर्क रहते हैं। केवल बल ही उन्हें नियंत्रित कर सकता है। सज्जन सभी के साथ सद्भावना रखते हैं किन्तु सज्जनों को यह नहीं पता होता कि एकत्रित  कैसे आना  है। इससे वे कमजोर दिखते हैं। संगठित शक्ति के निर्माण के लिए सज्जनों को एकसाथ रहने की क्षमता आत्मसात करनी होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू समाज की इस सात्विक शक्ति के साधना का नाम है।

सरसंघचालकजी ने आगे कहा कि बांग्लादेश में क्रूर यातना की परम्परा फिर से सामने आयी है। हिन्दू समाज इसलिए बच गया क्योंकि उसने स्वयं को संगठित किया और खुद को बचाने के लिए घर से बाहर निकल आया। लेकिन जब तक वहाँ अत्याचारी जिहादी स्वभाव का रहेगा, तब तक हिन्दुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों के सिर पर खतरे की तलवार लटकती रहेगी। इसलिए अवैध घुसपैठ और जनसंख्या असंतुलन को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। 

इसके लिए मानवता और सद्भावना के मूल्यों के सभी समर्थकों को, विशेषकर भारत सरकार और विश्वभर के हिन्दुओं के समर्थन की आवश्यकता है।

बल संपन्न समाज ही सद्भाव और सहिष्णुता का रक्षण कर सकता है।  साथ ही, दुर्बलता घातक है और भारतीयोंको शक्ति जागरण की आवश्यकता है यह बात उन्होंने स्पष्ट की।

सरसंघचालकजी ने आगे कहा कि इजराइल के साथ हमास का संघर्ष मध्य-पूर्व में कितना फैलेगा, कहा नहीं जा सकता। सारा विश्व इससे चिन्तित है। अपने देश में भी ऐसी चुनौतियाँ और समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जिन पर कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। कोलकाता की घटना अत्यन्त लज्जास्पद है। ऐसी घटनाओं को रोकने के प्रयास किए जाने चाहिए। महिलाओं को सुरक्षा देने की आवश्यकता है।  अपराध और राजनीति के  गठबंधन से ऐसे दुराचार संभव हुए हैं। 

सरसंघचालक डॉ. भागवतजी ने जोर देकर कहा कि सभी समाज के लोगों के लिए मन्दिर, पानी और श्मशान एक होने चाहिए। सभी जातियों को अपने संतों और महापुरुषों के त्योहार मिल-जुलकर मनाने चाहिए। देश-विदेश में क्या चल रहा है इसकी जानकारी समाज के लोगों को देनी चाहिए। सरसंघचालक ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सभी को अपने क्षेत्र में सम्पूर्ण समाज की समस्या के समाधान के लिए मिलकर काम करना चाहिए।

इस वर्ष आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयन्ती है।   भारत के नवोत्थान की प्रेरक शक्तियों में उनका प्रमुख स्थान है। साथ ही,  भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयन्ती है,  यह सार्धशती हमें, जनजातीय बंधुओं की गुलामी तथा शोषण से, स्वदेश पर विदेशी वर्चस्व से मुक्ति, अस्तित्व व अस्मिता की रक्षा एवं स्वधर्म रक्षा के लिए भगवान बिरसा मुंडा के द्वारा प्रवर्तित उलगुलान की प्रेरणा का स्मरण करा देगी, इस ओर पूजनीय सर संघचालक जी ने ध्यान आकर्षित किया।

दुनियाभर में जैसे-जैसे भारत की साख बढ़ रही है, उसे कमजोर करनेवाली प्रवृत्तियां भी सिर उठा रही हैं। यह महत्त्वपूर्ण है कि जो देश विश्व शान्ति के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा करते हैं, वे उस समय अपने प्रतिबद्ध होने की नीति से भटक जाते हैं जब उनकी सुरक्षा और स्वार्थ खतरे में होते हैं। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि ऐसे देश, दूसरे देशों पर हमला करने के लिए अवैध या हिंसक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं या उनकी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को उखाड़ फेंकने की साजिश रचते हैं, यह बात उन्होंने अधोरेखित की।

सरसंघचालक ने  कहा कि देश में अनावश्यक कट्टरता भड़काने की घटनाओं में भी अचानक बढ़ोतरी देखी जा रही है। डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर ने ऐसे व्यवहार को ‘अराजकता का व्याकरण ‘(Grammar of Anarchy)’ कहा है। अभी बीत गए गणेशोत्सवों के समय श्रीगणपति विसर्जन की शोभायात्राओं पर अकारण पथराव की तथा तदुपरान्त बनी तनावपूर्ण परिस्थिति की घटनाएं उसी व्याकरण का उदाहरण है । ऐसी घटनाओं को होने नहीं देना, वो होती हैं तो तुरंत नियंत्रित करना, उपद्रवियों को त्वरित दण्डित करना यह प्रशासन का काम है । परन्तु उनके पहुँचने तक तो समाज को ही अपने तथा अपनों के प्राणों की व सम्पत्ती की रक्षा करनी पड़ती है । इसलिए समाज ने भी सदैव पूर्ण सतर्क व सन्नद्ध रहने की तथा इन कुप्रवृत्तियों को, उन्हें प्रश्रय देने वालों को पहचानने की आवश्यकता उत्पन्न हो गयी है, इस ओर भी सरसंघचालक जी ने ध्यान आकर्षित किया।

डॉ. कोपिल्लिल राधाकृष्णन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राधाकृष्णन ने कहा कि अंतरिक्ष अनुसंधान निःस्वार्थ राष्ट्रीय सेवा की कहानी है। भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान  के कार्यक्रम का स्वरूप सामाजिक है, साथ ही किसानों तथा मछुआरों के जीवन में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। टेक्नोलॉजी के मामले में भारत पूर्णता की ओर बढ़ रहा है। हालांकि हम आगामी सातवीं औद्योगिक क्रान्ति के बारे में आशान्वित हैं, फिर भी प्रौद्योगिकी को  मानवी चेहरा चाहिए। प्रौद्योगिकी मानव जीवन को कैसे बदल सकता है, इसपर और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति सराहनीय है। हमारी उच्च शिक्षा अब सकारात्मक बदलाव की ओर बढ़ रही है। हमारे शैक्षणिक परिसर विदेशों में खुल रहे हैं।  उन्होंने यह भी कहा कि हमारा लक्ष्य 2040 तक चन्द्रमा पर मानव मिशन स्थापित करना है। उस हेतु से अंतरिक्ष अनुसंधानकर्ताओं की पुरानी  पीढ़ी नई पीढ़ी को प्रशिक्षित कर रही है, ऐसा प्रतिपादन उन्होंने किया।

गीता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कोपिल्लिल राधाकृष्णन ने कहा कि गीता का सोलहवाँ अध्याय निर्भयता, त्याग, सत्य-निष्ठा,स्वाध्याय जैसे दिव्य-मूल्यों को अपनाने में हमारे लिए सहायक है। इसी तरह, गीता के अठारहवां अध्याय बताता है कि विजय के लिए योगेश्वर कृष्ण के साथ धनुर्धारी अर्जुन दोनों की आवश्यकता होती है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला, कि जिस प्रकार हमें हथियारों की आवश्यकता है,  उसी प्रकार हमें नैतिक मूल्यों की भी आवश्यकता है।

कार्यक्रम के पूर्व नागपूर महानगर के स्वयंसेवकों का पथसंचलन हुआ । इस अवसर पर पूजनीय सरसंघचालकजी तथा माननीय मुख्य अतिथी जी ने पथ संचलन का अवलोकन भी किया

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