अविरत पथिक हो.वे. शेषाद्रि जी / जन्म दिवस – 26 मई

आज तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का साहित्य हर भाषा में प्रचुर मात्रा में निर्माण हो रहा है; पर इस कार्य के प्रारम्भ में जिन कार्यकर्ताओं की प्रमुख भूमिका रही, उनमें हो.वे. शेषाद्रि जी (श्री होंगसन्द्र वेंकटरमैया शेषाद्रि) नाम शीर्ष पर है।

26 मई, 1926 को बंगलौर में जन्मे शेषाद्रि जी 1943 में स्वयंसेवक बने। 1946 में मैसूर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्वर्ण पदक पाकर उन्होंने एम.एस-सी. किया और अपना जीवन प्रचारक के नाते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हेतु समर्पित कर दिया।

प्रारम्भ में उनका कार्यक्षेत्र मंगलौर विभाग, फिर कर्नाटक प्रान्त और फिर पूरा दक्षिण भारत रहा। 1986 तक वे दक्षिण में ही सक्रिय रहे। वे श्री यादवराव जोशी से बहुत प्रभावित थे। 1987 से 2000 तक वे संघ के सरकार्यवाह रहे। इस नाते उन्होंने पूरे भारत तथा विश्व के कुछ देशों में भी प्रवास किया।

कार्य की व्यस्तता के बाद भी वे प्रतिदिन लिखने के लिए समय निकाल लेते थे। वे दक्षिण के विक्रम साप्ताहिक, उत्थान मासिक, दिल्ली के पांचजन्य और आर्गनाइजर साप्ताहिक तथा लखनऊ के राष्ट्रधर्म मासिक के लिए प्रायः लिखते रहते थे। उनके लेखों की पाठक उत्सुकता से प्रतीक्षा करते थे। उन्होंने संघ तथा अन्य हिन्दू साहित्य के प्रकाशन के लिए श्री यादवराव के निर्देशन में बंगलौर में ‘राष्ट्रोत्थान परिषद्’ की स्थापना की। सेवा कार्यों के विस्तार एवं संस्कृत के उत्थान के लिए भी उन्होंने सघन कार्य किया।

शेषाद्रि जी ने यों तो सौ से अधिक छोटी-बड़ी पुस्तकंे लिखीं; पर उन्होंने ही सर्वप्रथम द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के भाषणों को ‘बंच ऑफ थॉट्स’  के रूप में संकलित किया। आज भी इसके संस्करण प्रतिवर्ष छपते हैं। इसके अतिरिक्त कृतिरूप संघ दर्शन, युगावतार, और देश बँट गया, नान्यः पन्था, मूल्यांकन, द वे, हिन्दूज अब्रोड डाइलेमा, उजाले की ओर.. आदि उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। इन सबके कई भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। ‘तोरबेरलु’ को 1982 में कन्नड़ साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया।

शेषाद्रि जी की भाषण शैली भी अद्भुत थी। वे सरल एवं रोचक उदाहरण देकर अपनी बात श्रोताओं के मन में उतार देते थे। 1984 में न्यूयार्क (अमरीका) के विश्व हिन्दू सम्मेलन तथा ब्रेडफोर्ड (ब्रिटेन) के हिन्दू संगम में उन्हें विशेष रूप से आमन्त्रित किया गया था। उनके भाषणों से वहां लोग बहुत प्रभावित हुए।

अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक श्रम के कारण उनका शरीर अनेक रोगों का घर बन गया। जब चैथे सरसंघचालक रज्जू भैया अपने खराब स्वास्थ्य के कारण अवकाश लेना चाहते थे, तो सब कार्यकर्ता चाहते थे कि शेषाद्रि जी यह दायित्व संभालें; पर वे इसके लिए तैयार नहीं हुए। उनका कहना था कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, अतः किसी युवा कार्यकर्ता को यह काम दिया जाये। अन्ततः सह सरकार्यवाह श्री सुदर्शन जी को यह दायित्व दिया गया। शेषाद्रि जी निरहंकार भाव से सह सरकार्यवाह और फिर प्रचारक प्रमुख के नाते कार्य करते रहे।

अन्तिम दिनों में वे बंगलौर कार्यालय पर रह रहे थे। वहाँ सायं शाखा पर फिसलने से उनके पैर की हड्डी टूट गयी। एक बार पहले भी उनकी कूल्हे की हड्डी टूट चुकी थी। इस बार इलाज के दौरान उनके शरीर में संक्रमण फैल गया। इससे उनके सब अंग क्रमशः निष्क्रिय होते चले गये।

कुछ दिन उन्हें चिकित्सालय में रखा गया। जब उन्हें लगा कि अब इस शरीर से संघ-कार्य सम्भव नहीं रह गया है, तो उन्होंने सब जीवन-रक्षक उपकरण हटवा दिये। उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें संघ कार्यालय ले आया गया। वहीं 14 अगस्त, 2005 की शाम को उनका देहान्त हो गया।

#RSS

Saptrang ShortFest - All Info