**श्रद्धांजलि**
विसंके जयपुर। राजस्थान में संघ कार्य का विस्तार करने वाले श्री मोहन जोशी प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में ब्रह्मलीन हो गये। आज पौष कृष्ण प्रतिपदा, वि.स. 2074 तद्नुसार 4 दिसम्बर 2017, सोमवार को प्रातः 4ः30 बजे ंविश्व हिन्दू परिषद के नई दिल्ली स्थित केन्द्रीय कार्यालय में श्री मोहन जी ने अंतिम श्वाँस ली, वे 83 वर्ष के थे। उनका जन्म 13 दिसम्बर, 1934 (मार्गशीर्ष शुक्ल 8, गुरुवार) को ग्राम खैराबाद, तहसील रामगंज मण्डी, जिला कोटा, राजस्थान में श्री रामगोपाल और श्रीमती रामकन्या बाई के घर में हुआ था। घर में आय का स्रोत खेती के साथ ही पुश्तैनी पूजा-पाठ था।
**बचपन से ही प्रतिभाशाली**
मोहन जी जोशी बचपन से ही प्रतिभाशाली रहे। कक्षा चार तक गांव में तथा कक्षा आठ तक रामगंज मंडी में पढ़कर वे कोटा आ गये। वहां से बी.ए. किया। राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर, रशियन भाषा में डिप्लोमा तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्यरत्न की उपाधि प्राप्त की थी। संस्कृत, गुजराती, मराठी, बांग्ला व उड़िया भाषाएं वे जानते थे। बहुत अच्छे ओजस्वी वक्ता थे। विद्यार्थी जीवन में खेलकूद, अभिनय, भाषण, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में अपने विद्यालय का प्रतिनिधित्व करते रहे।
**सामाजिक, आध्यात्मिक एवं जनसेवा में रुचि**
प्रारंभिक काल से ही सामाजिक, आध्यात्मिक एवं जनसेवा कार्यों में आपकी रुचि रही और सहभागिता भी की। गौरक्षा आन्दोलन तथा आचार्य बिनोवा भावे द्वारा भूदान आन्दोलन में आपने भाग लिया। लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण द्वारा प्रेरित सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन एवं आपातकाल में राजस्थान में विद्यार्थी परिषद के प्रांत संगठन मंत्री के रुप में कार्य किया। विद्यार्थी परिषद के प्रांत संगठन मंत्री रहते हुए त्रैमासिक पत्रिका तरुण शक्ति एवं विद्यार्थी हुंकार पाक्षिक पत्र का सम्पादन अनेक वर्ष किया। सन्् 1978 से 1985 तक जयपुर से प्रकाशित अनन्त मंगल मासिक पत्रिका के वे सम्पादक भी रहे।
**स्वयंसेवक से प्रचारक तक मोहन जी मोहन जी का संघ प्रवेश**
इनके गांव में प्रह्लाद दत्त वैद्य नामक युवक की ननिहाल थी। वह छुट्टियों में वहां आकर बच्चों को शाखा के खेल खिलाता था; पर विधिवत शाखा जाना तब प्रारम्भ हुआ, जब कक्षा पांच में पढ़ते समय चाचा जी इन्हें शाखा ले गये। मोहन जी ने तीनों संघ शिक्षा वर्ग प्रचारक बनने के बाद ही किये। आपने 1954 में प्राथमिक शिक्षा वर्ग तथा 1967 में संघ के तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त किया। 1957 में विस्तारक के नाते इन्हें सर्वप्रथम झालावाड़ जिले में भेजा गया। फिर वहीं जिला प्रचारक तत्पश्चात्् जयपुर प्रांतीय कार्यालय प्रमुख एवं सायं शाखाओं के भाग प्रचारक रहे। 1965 से 1970 तक जयपुर महानगर प्रचारक साथ ही साथ प्रांतीय कार्यालय प्रमुख रहे। 1971 से 1977 तक विद्यार्थी परिषद के प्रांत संगठन मंत्री एवं आदर्श विद्या मंदिर का व्यवस्थापन कार्य साथ ही साथ राजस्थान में युवकों का कार्य किया।
**विभिन्न दायित्वों का किया निर्वहन**
उन्होंने भारतीय जनसंघ कार्यालय की देखभाल से लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रांत संगठन मंत्री, आदर्श विद्या मंदिर के उपाध्यक्ष एवं प्रबन्धक, राजस्थान के सभी विद्यालयों की देखभाल, विवेकानंद केन्द्र, कन्याकुमारी के निर्माण हेतु धन संग्रह एवं उसका हिसाब-किताब, भारतीय मजदूर संघ आदि के कार्य विस्तार आदि में उन्होंने योगदान दिया; पर यह सब करते हुए जयपुर संघ कार्यालय प्रमुख और सायं शाखाओं का काम इनके साथ सदा जुड़ा रहा। आपातकाल में मोहन जी ने जहां एक ओर सत्याग्रह के लिए युवकों को तैयार किया, वहां जेल में बंद लोगों के परिजनों से भी सम्पर्क बनाये रखा।
**विश्व हिन्दू परिषद में आपका कार्य**
आपातकाल समाप्ति के पश्चात्् जुलाई 1977 में इन्हें राजस्थान राज्य का विश्व हिन्दू परिषद का प्रांत संगठन मंत्री बनाया गया। इस कालखण्ड में उन्होंने अजमेर जिले के ब्यावर क्षेत्र में अपनी शक्तियों का केन्द्रीयकरण किया और सतत्् दस वर्षों तक प्रयत्न करके चौहानवंशीय मुस्लिमों के साथ निकट सम्पर्क स्थापित किए, परिणामस्वरूप हजारों मुस्लिम परिवारों ने अपने पूर्वजों की मूल परम्परा को स्वीकार किया और पुनः आशापुरा माता के उपासक बन गए, घरों में पृथ्वीराज चौहान के चित्र लगा लिए। इस कार्य से जोशी जी विख्यात हो गये और कई पत्रों ने इस बारे में इनके साक्षात्कार तथा लेख प्रकाशित किये।
वर्ष 1984 में विश्व हिन्दू परिषद में परावर्तन विभाग प्रारम्भ कर मोहन जी को अखिल भारतीय प्रमुख बनाया गया। यही कार्य विश्व हिंदू परिषद में धर्मप्रसार के रूप में जाना जाता है। मोहन जी ने देश में भ्रमण कर हजारों लोगों को वापस हिन्दू धर्म में आने को प्रेरित किया।
भारत में जो भी मुसलमान या ईसाई हैं, वे यहीं के मूल निवासी हैं। उन्हें हिन्दू धर्म में वापस लाने का जो कार्य कभी स्वामी श्रद्धानंद ने किया था, श्री मोहन जोशी ने उसे ही संगठित रूप से आगे बढ़ाया। इस कार्य के लिए हर प्रांत में उन्होंने समिति तथा सैकड़ों जिलों में संयोजक बनाये।राममंदिर आंदोलन तीव्र होने पर इन्हें बंगाल, असम और उड़ीसा में शिलापूजन का दायित्व भी दिया गया।
**साहित्यकार और कवि मोहन जी**
मोहन जी साहित्यिक रुचि के व्यक्ति थे। छात्र जीवन में स्थानीय कवि सम्मेलनों में वे प्रायः भाग लेते थे; पर प्रचारक बनने पर इधर से ध्यान हट गया। फिर भी चीन और पाकिस्तान के युद्ध के बाद इनकी कविताओं की पुस्तक ‘भारत की पुकार’ छपी, जिसके लिए काका हाथरसी और रक्षामंत्री श्री जगजीवन राम ने भी संदेश भेजे। दीनदयाल जी के देहांत पर इन्होंने व्यथित होकर एक ही रात में 51 कविताएं लिखीं। वे दीपावली और वर्ष प्रतिपदा पर एक नई कविता लिखकर अपने परिचितों को भेजा करते थे।
वर्ष 2012 में उन्होंने ‘‘भारत जागरण संस्थान’’ गठित किया और उसके माध्यम से ‘‘भारत जागरण’’ नामक पाक्षिक बुलेटिन प्रकाशित किया जो अप्रैल, 2017 तक प्रकाशित कराते रहे। धर्मप्रसार कार्यवृद्धि के लिए उन्होंने भारतीय जनसेवा संस्थान नाम से एक समिति पंजीकृत कराई। धर्मप्रसार कार्य के लिए अखिल भारतीय धर्मप्रसार समिति उन्होंने श्री धर्मनारायण शर्मा जी के माध्यम से बनवाई।
**कलम के पुरोधा मोहन जोशी**
सादगी की प्रतिमूर्ति मोहन जी ने समाज को जागरूक करने हेतु देश की पुकार (कविता संग्रह), सफल जीवन की कहानियां, धर्मप्रसार एक राष्ट्रीय कर्तव्य, रमण गीतामृत, पूज्य देवराहा बाबा की अमृतवाणी, परावर्तन राष्ट्र रक्षा का महामंत्र, सफेद चोला काला दिल, संसद में धर्मान्तरण पर बहस, धर्मान्तरण राष्ट्रद्रोह का षडयन्त्र, भारत में ईसाई साम्राज्य स्थापना हेतु पोप एवं अमेरिका का षडयन्त्र, चर्च का चक्रव्यूह, ईसाई मायाजाल से सावधान, मुस्लिम आरक्षण राष्ट्रघाती विषवृक्ष, बारूद के ढ़ेर पर हिन्दुस्थान, उत्तिष्ठित जाग्रत, हिंदुओं के सीने पर कानूनी रायफल, जागो जगाओ देश बचाओ, पाप का गढ़ और बच्चों के शिकारी, वेटिकन के भेड़िए, विजय भवः, चैतन्य प्रवाह (कविता संग्रह), जीवन प्रवाह (कविता संग्रह), स्वतंत्र भारत के शूरवीर सेनानी, कारगिल युद्ध के बलिदानी वीरों की गाथा, उपनिषद कथामृत। अंतिम पुस्तक महाभारत की दिव्य आत्माएं का प्रकाशन अगस्त, 2013 में हुआ।
राष्ट्रीय महत्व के समाचारों का, विशेष रुप से चर्च और इस्लाम की भारतविरोधी गतिविधियों के समाचारों का संकलन उनकी रुचि का विषय था। इसका एक विशाल संग्रह उन्होंने किया। वे अध्ययन करते थे, विषयवस्तु का चयन करते थे और स्वयं टाइप कराते थे। टाइप कराना, सम्पादन करना, छपवाना वे स्वयं करते थे।