बाबा साहेब ने राष्ट्र की एकता बरकरार रखते हुए शोषित समाज को उनके अधिकार दिलवाए. – डॉ. कृष्ण गोपाल जी

नई दिल्ली (इंविसंकें). बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए भिन्न-भिन्न तरह की घोष रचनाओं का वादन कर पथ संचलन निकाला. सदर बाजार के नबी करीम स्थित हरिमंदिर विद्यालय, मंदिर मार्ग स्थित बाल्मीकि मंदिर तथा पहाड़ गंज स्थित अम्बेडकर भवन से स्वयंसेवकों ने समता सद्भावना घोष पथ संचलन निकाला. तीनों घोष सञ्चलन नई दिल्ली के करनैल सिंह स्टेडियम में एकत्र हुए, जहां लगभग 1600 घोष वादकों ने अनेक रचनाओं का प्रदर्शन कर हजारों की संख्या में सभी समुदायों से आये गण्यमान नागरिकों को हर्षित कर दिया.

इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि आम्बेडकर जी के जन्म के समय देश 700-800 वर्षों की पराधीनता से स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहा था. दूसरी ओर अपने ही समाज के अन्दर एक लम्बे संघर्ष और पराधीनता के कारण अनेक प्रकार की कुरीतियां आ गईं. अनेक अच्छी बातें छूट गईं और जो अनुपयोगी था, वह हमारे साथ में आ गया. संघर्ष लम्बा था, देश एक बड़ी कालरात्रि को देख कर आगे बढ़ा था. बाहरी आक्रमणों के समय प्राणों की रक्षा मूल्यवान थी. किसी भी तरह से प्राण बच जाएं, इस कारण हमारे देश में महिलाओं में पर्दा व्यवस्था, जातिप्रथा तथा छुआ-छूत जो पहले नहीं थी, वह भी आ गई. वेद उपनिषदों में अस्पृश्यता का उल्लेख नहीं है, भगवान बुद्ध के समय भी अस्पृश्यता नहीं थी, ऊंच नीच की भावना थी और इसके विरुद्ध भगवान बुद्ध ने संघर्ष किया. बुद्ध ने कहा था कि जन्म के आधार पर कोई व्यक्ति छोटा-बड़ा नहीं होता. लेकिन जब देश विदेशियों का गुलाम हो गया तो सामाजिक व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो गईं, टूट गईं. लोग अपने आपको बचाने की फिक्र में छोटे-छोटे दायरे में सिकुड़ने लगे और जातियां और उपजातियां बढ़ने लगीं. पड़ोस में रहने वाले व्यक्ति को छूने से भी पाप लगता है, ऐसी धारणाएं समाज में बन गईं. यह वो काल था, जब लोग दूसरे लोगों की परछाइयों के छूने से भी डरते थे कि पाप न लग जाए.

उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था के खिलाफ समाज में संघर्ष भी चले, जब ऐसी दुर्व्यवस्थाएं आती हैं तो हिन्दू समाज में कोई न कोई समाज सुधारक पैदा होता है. वह समाज को कुरीति से दूर निकालकर ले आता है. मौलिक सिद्धान्त, दर्शन को सम्भालकर समाज को फिर उस खूंटे में लाकर बांधता है. भगवान बुद्ध ने भी ऐसा काम किया था. कबीर, रैदास, गुरुनानक, महात्मा फुले ने भी यही काम किया और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने भी यही काम किया. डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि बाबा साहेब ने बचपन से उस अव्यवस्था के कारण बहुत दुख झेले व स्थान-स्थान पर अपमानित हुए. आंबेडकर जी ने समाज से भेदभाव दूर करने के लिए पश्चिमी देशों की तरह कभी वर्ग संघर्ष को नहीं अपनाया, जिसमें लाखों लोग मारे गए थे. उन्होंने बुद्ध के बताए शांति और प्रेम के मार्ग पर चलते हुए जो दर्शन महात्मा फुले ने दिया, गुरुनानक, कबीर, रैदास ने दिया, उसी दर्शन को आगे ले जाते हुए राष्ट्र की एकता बरकरार रखते हुए शोषित समाज को उनके अधिकार दिलवाए.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत न्यूक्लीयर फिजिक्स के प्रोफेसर प्रो. पीडी सहारे (भौतिकी एवं खगोल भौतिकी विभाग) ने भी आंबेडकर जी के जीवन पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि बाबा साहेब इतने महान व्यक्ति थे कि उनको किसी एक विषय में बांधा नहीं जा सकता. वो एक सोशल रिफार्मर थे, पॉलिटिशियन थे, इकॉनोमिस्ट थे और अभी तो वह एक ग्लोबल आइकॉन बन गए हैं. यूएन ने भी उनको अभी एक ग्लोबल आइकॉन मानकर उनका सम्मान किया है. लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स के भी वो एक मोस्ट इलेस्ट्रेटेड एलुमिनाई हैं. हर कोई उनसे अपने आपको रिलेट कर सकता है, मैं उनको बाबा साहेब ही कहना पसंद करूंगा. यह इसलिए भी कि एक तो हम जाति विशेष की बात नहीं करेंगे, पर मैं उन्हीं की कम्युनिटी का या जाति का हूं. हमारे पिताजी और बाकी लोग जिन्होंने उनके साथ काम किया है वो उनके बारे में जो बताते हैं, उनसे जो हमने प्रेरणा पाई है, उसके नाते हर एक के खून में बाबा साहेब का अंश है और वही प्रेरणा हमें आगे बढ़ने की दिशा देती है. बाबा साहेब ने जितना सहा होगा, इसका पता इससे भी लग जाता है कि हम जब छोटे थे तो यह सारी छुआछूत और यह सारी बातें हमने भी वहां पर सही हैं. आज का जो विषय है, समाज की समरसता, तो इसमें यह जो बातें और संघ ने इसका जो उत्तरदायित्व लिया है कि छुआछूत से सम्बद्ध बातें सारी नष्ट होनी चाहिए. समाज एक होना चाहिए, इसके साथ-साथ इकॉनोमिकल, सोशल, पॉलिटिकल इक्वैलिटी समाज में आनी चाहिए जो यह बाबा साहब ने भी बहुत पहले बताया था. लेकिन उनके जाने के बाद यह जो कारवां है, यह जो उनका संघर्ष है यह थोड़ा रुक सा गया था. मुझे लगता है कि संघ इसे प्रयास करके आगे बढ़ाने का कार्य कर रहा है.

प्रो. सहारे ने कहा कि बाबा साहेब को पोट्रेट किया जाता है कि वह दलितों के ही मसीहा थे, पर यह बात गलत है. वो इसलिए कि बाबा साहेब ने हर किसी के लिए कार्य किया है. हिन्दू कोड बिल बहुत पहले यदि आ जाता तो महिलाओं की जो स्थिति है यह बहुत अलग होती, कुछ और होती. उसमें महिलाओं को जो सक्सेशन एक्ट में पिता के घर से जो सम्पति है, उसमें भी उनकी हिस्सेदारी होती. अगर आप कहें कि उन्होंने सवर्णों के लिए काम नहीं किया तो यह भी गलत होगा. वो सिर्फ दलितों के मसीहा या किसी वर्ग विशेष के लीडर नहीं थे, वो सभी के थे. वो नौ भाषाओं के ज्ञाता थे, और उनमें दूरदृश्टि थी. उन्होंने हमेशा कहा कि कोई भी समाज या राष्ट्र तब तक तरक्की नहीं कर सकता, जब तक हर वर्ग का उसमें सहभाग न हो.

उन्होंने बताया कि अभी जो आरक्षण का बहुत सेंसिटिव मुद्दा है, पर क्या आरक्षण के बारे में हम यह नहीं कह सकते कि जो 25 पर्सेंट या 50 पर्सेंट भारत का नागरिक है या जो तबका है क्या उसको भी हम मेनस्ट्रीम में नहीं ला सकते. तो वो लाने के लिए आरक्षण एक रास्ता भर है. इसीलिए उनका भी पार्टीसिपेशन हो, तो यह एक पार्टिसिपेशन है इसको अन्यथा न देखें. इस अवसर पर दिल्ली प्रान्त संघचालक कुलभूषण आहूजा जी ने कार्यक्रम में आए हुए सभी गणमान्य नागरिकों का धन्यवाद किया. दिल्ली प्रान्त सह संघचालक आलोक कुमार जी ने कार्यक्रम का विषय प्रस्तुत करते हुए बताया कि हिमालय से कन्याकुमारी तक, कच्छ से कामरूप तक अपना यह एक देश है, यहां रहने वाले सभी  एक जन है. बिना किसी भेदभाव के एक समरस समाज हम खड़ा करें, यह इस कार्यक्रम का संकल्प है.

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