भारतीय राष्ट्र दर्शन भेद नहीं करता, एकात्मता की बात करता है – डॉ. कृष्ण गोपाल जी

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि नेशन और राष्ट्र एक नहीं है. नेशन बात करता है आपकी और हमारी, पर राष्ट्र धार्मिक एकात्मता पर बात करता और चलता है. भारतीय राष्ट्र दर्शन भेद नहीं करता. हमें राष्ट्र और नेशन में अंतर करना होगा. पश्चिमी देशों की कल्पना उनके द्वन्द और भिन्नता पर आधारित है. भारत ने कभी न किसी का शोषण किया और न ही किसी को दास (उपनिवेश, गुलाम) बनाया. पश्चिम राजनीतिक व व्यापारिक लाभ को महत्व देता है. भद्र इच्छ हमारे राष्ट्र निर्माण का मूल सिद्धांत है. हमारे जीवन का लक्ष्य विश्व शांति और विश्व कल्याण का है. राष्ट्र का गठन राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति या व्यापारिक लालच के आधार पर नहीं किया गया था. डॉ. कृष्ण गोपाल जी ग्रुप ऑफ इंटलेक्चुअल्स एंड एकेडमिशियन की स्थापना का एक वर्ष पूर्ण होने पर दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में आयोजित कार्यक्रम में नेशनलिज्म विषय पर संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि मुझे नेशनलिज्म विषय से आपत्ति है, भारत की किसी भी भाषा में इसका अनुवाद नहीं है. पाश्चात्य देश हमारा राष्ट्र दर्शन नहीं हो सकते. नेशनलिज्म विषय पर पश्चिमी विद्वानों की अपनी अपनी राय है. पश्चिमी विद्वान यह मानते थे कि भारत में नेशनलिज्म नहीं था. मैं भी मानता हूं कि जिसे वह नेशनलिज्म मानते थे, वह भारत में नहीं था. क्योंकि पाश्चात्य मानक भारत में नहीं थे.

डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि पश्चिम ने एक तरफ विस्तारवाद किया और दूसरी तरफ शोषण. आज विश्व व्यापार संघ और बहुराष्ट्रीय कंपनियां उसी शोषण का एक रूप हैं. हमारी दार्शनिक एकता ने भौगोलिक एकता को बांधे रखा. यह अचानक नहीं हुआ, इसके लिए ऋषियों- मुनियों ने तपस्या की. भारत में जितने आक्रमणकारी आए, वे यहां के विचार में घुलमिल गए, भारत में विलीन हो गए. जबकि मिस्र, रोम, यूनान, बेबीलोन में उल्टा होता था. उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्र की आत्मा नेशन की तरह राजनीति, राजा, सेना, या प्रशासन में नहीं, बल्कि अध्यात्म परंपरा में थी. नेशन अंग्रेजों का था इसलिए टूटा, लेकिन राष्ट्र की आत्मा उनके हाथ में नहीं थी. यह विवेकानंद, महर्षि दयानंद,मालवीय, स्वामी श्रद्धानंद, लाला लाजपत राय के हाथ में थी, जिनके साथ करोड़ों लोग थे. वंदेमातरम लाखों, करोड़ों लोग त्याग के लिए आगे आए, इस देशभक्ति के पीछे एक आध्यात्मिक आह्वान था.

जीआईए एवं कार्यक्रम की संयोजक सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा जी ने कहा कि जेएनयू में 9 फरवरी की घटना के बाद वहां नेशनलिज्म की कक्षाएं लगीं, लेकिन वहां के शिक्षकों ने पढ़ाया कि हिन्दुस्तान में केवल 200 वर्ष पूर्व ही राष्ट्र की अवधारणा आई. उन्होंने 1600 वर्ष पूर्व कालीदास रे मेघदूत व अन्य प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा कि राष्ट्र तब भी था. आज लोग आजादी के नाम पर नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल की आजादी की बात कर रहे हैं, लेकिन ये भारत के अभिन्न अंग हैं, उनका भारत से आध्यात्मिक संबंध है. मोनिका अरोड़ा जी ने कहा कि मार्क्सवादी जब विपक्ष में होते हैं, तब उनका आंकलन मत कीजिए, जब सत्ता में होते हैं तब आंकलन कीजिए. विपक्ष में वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं, और सत्ता में आने पर जीने का अधिकार ही समाप्त कर देते हैं. कार्यक्रम में समाज सेवी व चिंतक गीता गुंडे, शिक्षाविद् दीनानाथ बत्रा, डूटा के पूर्व अध्यक्ष इंद्रमोहन कपाही, हंसराज कालेज प्राचार्या डॉ. रमा सहित अन्य उपस्थित थे.

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