जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत का शास्त्रीय संगीत विश्व को सत्य, करुणा और पवित्रता की ओर ले जाता है. जहां विश्व में संगीत में मनोरंजन पक्ष पर ध्यान रखा जाता है, जबकि हमारे देश में परंपरा से संगीत को सत्य, करुणा और पवित्रता उत्पन्न करने वाला माना जाता है. सरसंघचालक जी रविवार को वैशाली नगर स्थित चित्रकूट स्टेडियम में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वर गोविन्दम् कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.
संगीत से पैदा होता है समरसता का भाव
सरसंघचालक जी ने कहा कि हमारे संगीत की विशेषता के कारण ही संघ स्थापना के दो-तीन साल में ही कार्य पद्धति में संगीत को स्वीकार कर लिया गया था. गाने वाले और सुनने वालों में संस्कार होते हैं. सामूहिक स्वर में सबके साथ रहने से संस्कार पैदा होता है, समस्वरता से समरसता का भाव पैदा होता है. हम विविधता में एकता को देखें, इसलिए प्रांगणिक संगीत और वादन का चलन संघ में हैं. संगीत के जरिए सभी को साथ जोड़ने का प्रयास है. ये हमारा कर्तव्य है, उपकार नहीं. घोष वादक को संगीत बजाने के लिए कोई मुआवजा नहीं मिलता है. विभिन्न आयु वर्ग और अलग-अलग चाल ढाल के ये वादक पेशेवर वादक नहीं हैं. ये वादन राष्ट्र कार्य के लिए योग्य बनाता है. अपनी जेब से खर्च करके राष्ट्र हित में संघ योजना अनुसार वादन किया जाता है. ये वादक अपने मनोरंजन या बड़प्पन के लिए नहीं, वरन राष्ट्र की सेवा के लिए संगीत रचना करते है. राष्ट्र हमें बहुत कुछ देता है, हमें भी कुछ देना चाहिए. हम जो सीखते हैं उसे देश हित में लगा देते हैं.
उन्होंने कहा कि पहला संस्कार बिना स्वार्थ कुछ देना होता है. दुनिया कहती थी – हम महफ़िल में गा सकते हैं, सामूहिक वादन-गायन कर सकते हैं, लेकिन हमारा संगीत शौर्य, बल, वीर्य पैदा करने वाला नहीं है. ये बात हमें खलती थी कि प्रांगण में जमा हो कर रण संगीत गायन की परंपरा हमारे यहां नहीं है. हमारे पास संचलन के लिए संगीत नहीं था. हमने अंग्रेजों से रचनाएं उधार लीं. प्रांगणिक संगीत की सूक्ष्म बातें तैयार कीं और फिर भारतीय रागों पर आधारित रचनाएं तैयार की. भारतीय राग और ताल में लिपिबद्ध संगीत हमारे द्वारा तैयार किया गया. भारत विश्व में कहीं से भी सभी अच्छी बातों को स्वीकार करता है, लेकिन किसी पर निर्भर नहीं होता. तीसरी बात आत्मसंयम है. जैसा निर्धारित किया जाता है, वैसे सामूहिक रूप से बजाया जाता है. वादक स्वयं की इच्छा से वादन नहीं कर सकता. हमें संयम रखते हुए सामूहिक रूप से संगीत तैयार करना होता है.
सरसंघचालक जी ने कहा कि संगीत समरसता का संस्कार है. सुर और ताल मिल कर चलते हैं, तभी संगीत तैयार होता है. सबके सामूहिक हितों का ध्यान रखते हुए समरसता के साथ संस्कार पैदा किया जाता है. भारत को विश्व गुरु राष्ट्र बनना है. हम सब हिन्दू हैं, हमारा हिन्दू राष्ट्र है. ये नाम किसी जाति के नाम से पैदा नहीं हुआ, वरन् संपूर्ण विश्व का भला करने के वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत पर चलने के कारण हमें हिन्दू नाम मिला है. विश्व में कई राष्ट्रों की एक ही पहचान है, लेकिन एकमात्र अखंड भारत की ही पहचान हिन्दू नाम से है. हमारी संस्कृति संपूर्ण विश्व का कल्याण चाहने वाली संस्कृति है. सभी के प्रति अपनत्व का भाव रखना आवश्यक है.
उन्होंने कहा कि संघ का मानना है कि समानता आनी चाहिए. दुर्भाग्य से हमारे यहां जातिभेद और अस्पृश्यता का कलंक रहा है. इस कारण एक बड़ा हिस्सा पिछड़ गया. इस बुराई को जड़मूल से बाहर फैंकने की जरूरत है. बाबा साहेब का मानना था कि देश में स्वतंत्रता और समता लानी है तो समानता रखनी होगी. हमारा भी मानना है कि बंधुता, समरसता मानवता का रूप है. संघ ने भारत के संगीत का सामर्थ्य जानते हुए ही रणसंगीत को अपने से जोड़ा है.
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि देश की उन्नति का काम करने का ठेका किसी ने भी नहीं लिया है. ये काम सभी का है. हम सभी को इसके लिए प्रयास करने होंगे. हमें संस्कारों को ग्रहण कर सबल, सुरक्षित और सामर्थ्यवान देश बनाने के प्रयास करने होंगे. जहां संस्कार नहीं, वहां शक्ति का दुरुपयोग होता है. लेकिन संस्कार युक्त शीलवान पुरुष पीड़ा हरने का काम करते हैं, सुरक्षा का काम करते हैं. उन्होंने स्वयंसेवकों और आमजन से संपूर्ण दुनिया को सुख संपन्न बनाने और भारत को विश्व गुरु बनाने का प्रयास करने का आह्वान किया.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी बी.एल. नवल जी ने कहा कि संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर जी की सामाजिक न्याय की सोच को अपना कर ही भेदभाव रहित एवं समरस भारत का निर्माण किया जा सकता है.
विशिष्ट अतिथि उद्योगपति किशोर रूंगटा जी ने कहा कि भारत एक प्राचीन राष्ट्र है, जिसकी नींव विविधता में एकता के सांस्कृतिक आधार पर बनी है. हिन्दू जीवन पद्धति ही देश को विकास के मार्ग पर ले जा सकती है और हिन्दू समाज जागरण का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बखूबी कर रहा है.
कार्यक्रम को देखने के लिए स्वयंसेवकों सहित हजारों जयपुरवासी मौजूद रहे.
वीरांगनाओं का किया सम्मान
कार्यक्रम में सरसंघचालक जी ने वीरांगना श्रीमती कान्ता यादव, श्रीमती सुमित्रा देवी, श्रीमती निशा लाल एवं श्रीमती संपत कंवर और वीर माताओं श्रीमती मेरी कुट्टी थॉमस एवं श्रीमती लक्ष्मी देवी बुंदेला को भारत माता का चित्र, शॉल और श्रीफल प्रदान कर सम्मानित किया और उनको नमन किया.
दो अलग-अलग मार्गों से निकला पथ संचलन
पथसंचलन में जयपुर प्रांत से आए 1276 घोष वादक स्वयंसेवक सम्मिलित हुए. दो अलग – अलग मार्गों से पाञ्चजन्य नाद और देवदत्त नाद पथ संचलन निकले और चित्रकूट स्टेडियम पहुंचे. पाञ्चजन्य नाद का संचलन राजेन्द्र नगर से शुरू होकर वैशाली पुलिस थाना, नेशनल हैंडलूम, नर्सरी सर्किल, भारत अपार्टमेंट और आईसीआईसीआई बैंक होते हुए कार्यक्रम स्थल पहुंचा. जबकि दूसरा संचलन निर्माण नगर से शुरू होकर विश्वकर्मा मार्ग, टैगोर नगर चौराहा, एसबीबीजे बैंक चौराहा, इन्द्रलोक साड़ीज और स्वामीनारायण चौक होते हुए चित्रकूट स्टेडियम पहुंचा. मार्ग में हजारों नगर वासियों ने संचलन का पुष्पवर्षा कर स्वागत किया.
स्वर गोविंदम कार्यक्रम स्थल पर पणव (बेस ड्रम) के आकार का विशाल मंच बनाया गया था. ध्वज मंडल को संघ के घोष में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न वाद्य यंत्रों से सजाया गया. करीब छह किलोमीटर के पथ संचलन मार्ग में आकर्षक और भव्य रंगोली बनाई गई थी.