कर्णावती (गुजरात) माधव स्मृति न्यास द्वारा श्री गुरुजी व्याख्यान माला का आयोजन किया गया. दो दिवसीय व्याख्यान माला के प्रथम दिवस 19 फरवरी, शुक्रवार को राष्ट्र महानायक डॉ. आंबेडकर जी विषय पर अपने उद्बोधन में श्री मिलिंद जी ओक ( प्रचारक, केंद्रीय अभिलेखागार, रा.स्व.संघ) ने कहाँ कि किसी भी राष्ट्रीय महापुरुष का आकलन करने मे एक बहुत महत्वपूर्ण समस्या सामने आती है समस्या यह कि जिसको उस महापुरुष का आकलन करना होता है हमे उसके रूप मे जीना पडता है जो मेरे जैसे साधारण व्यक्ति के लिये संभव नहि है. राष्ट्र महापुरुषो का चिन्तन मात्र उनके जन्म से मृत्यु तक के कालखण्ड का नहि होता वरन भविष्य के लिये दिशा देने वाला दीर्घकालीन चिन्तन होता है. ऐसे महापुरुषो का आचरण एवं चिन्तन का मूल्यांकन करना कठिन होता है.
शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के बाद लोग यह सोचते थे कि अब शिवाजी महाराज औरंगजेब का वध करेगे और हिन्दु राज्य स्थापना करेगे. लेकिन शिवाजी ने अपने जीवन के बाकी छ वर्षो मे ऐसा कुछ नहि किया उन्होने पीछे हटते हुए महाराष्ट्र स्थित अपने 300 किलो को सुरक्षित और सुद्र्दः किया. ऐसा करते करते 6 वर्ष के बाद शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई. तब प्रजा को लगने लगा की अब औरंगज़ेब आक्रमण करेगा और मराठा शासन का अंत आ जायेगा औरंगजेब ने चढ़ाई भी की लेकिन महाराष्ट्र मे वह एक किला जीतता जिसमे 2-3 साल लग जाते थे फिर आगे बढ़ता तबतक वह किला मराठा फिर से जीत लेते थे इस तरह 27 सालो तक वह मराठाओ से लड़ता रहा लेकिन अपना साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाया और अंततः महाराष्ट्र मे ही वह मर गया. यह शिवजी की दीर्घदृष्टी का परिणाम था .
डॉ. आंबेडकर का वांचन बहुत गहन था. विविध विषय पर खूब पढ़ते थे. मूक नायक, बहिस्कृत भारत, जनता, प्रबुद्ध भारत जैसे अनेक सामायिक, दैनिक पत्र पत्रिका उन्होंने निकाले, बहिस्कृत हितकारी सभा, समता समाज संघ, संस्थाए उन्होंने अलग-अलग लोगो का साथ लेकर बनाई। 1925 से उन्होंने दलित विधर्थीओ के लिए स्कूल, छात्रावास आदि चलाये। 1945 में उन्होंने पीपल एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की जो आज महाराष्ट्र में 40 शिक्षण संस्थान चला रही है। शिक्षा संस्थान, सामाजिक आंदोलन और राजनीती एक साथ चलने वाले उस 50-60 साल के कालखंड जो गिनेचुने राजनेता हुए ऐसे असाधरण क्षमता के राजनेताओ में डॉ. आंबेडकर जी की गणना की जाती है.
1920 से यदि उनके सार्वजनिक जीवन का प्रारंभ हम माने तो प्रारंभ में उनकी सभाए खाली रहती थी. लेकिन 12 सालो के भीतर ही पुणे करार के समय डॉ. आंबेडकर दलित समाज के सर्वमान्य नेता बन गए. 10 वर्ष बाद उनकी 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए देशभर में 70 सभाए हुई जिनमे से 4 सभाओ में एक लाख से ज्यादा संख्या थी. डॉ. आंबेडकर की एक और विशेषता है कि उस समय महात्मा गांधी का विरोध करके कोई भी राजनेता सफल नहीं हो सके एकमात्र डॉ. आंबेडकर ऐसे नेता है जो गांधी जी का विरोध करते हुए भी अपना स्तर ऊँचा ले जा सके. वे एक स्पष्ट वक्त थे अंग्रेज भी उनके क्षमता का सम्मान करते थे.
डॉ. आंबेडकर दीर्घदृस्ता थे 1942 से 1945 में उन्होंने भारत की नदियों को जोड़ने के प्रोजेक्ट पर काम किया। जिसको बाद में एकमात्र वाजपेयी जी ने क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया आंबेडकर जी जानते थे की यह कुछ होने वाला नहीं है लेकिन महापुरष हमेशां भविष्य के बारे में ही सोचते है. राजनीती मे आने वाले लोगो के लिए संसदीय संचालन की पार्टी की ओर से ट्रैनिंग देने के लिए उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी का पार्लिअमेंटल डेमोक्रसी ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की.
दलित समस्या का भारत के स्वाधीनता आंदोलन में स्थान क्या है ? जॉन मालटन नामक ब्रिटिश राजनीतिज्ञ ने कहाँ ईस्ट इंडिया कम्पनी यदि तीन बाते करेगी तो भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज दीर्घकाल तक चलेगा. पहली बात डायरेक्ट रुल न करके संस्थानों के माध्यम से रुल करना चाहिए. दूसरे बात उसने कही कि भारत मे जातिभेद को नहीं छेड़ना चाहिए उसने कहाँ जबतक आप जातिभेद रखते हो तबतक भारत ब्रिटिशो के चंगुल से मुक्त नहीं होगा और दलित समस्या को सुलझाये बिना भारत का स्वाधीनता आंदोलन यशश्वी नहीं हो सकता ऐसा जॉन मालटन का दृष्टिकोण था और ऐसी दलित समस्या संयोग से दलित समाज मे जन्मे इसलिए डॉ. आंबेडकर के कार्य का हिस्सा बनी.
लेकिन दलित समस्या को समझने के लिए उनसे पहले दलित समस्या पर क्या हुआ यह जानना आवश्यक है. स्वर्णो में यदि सबसे ज्यादा दलित समस्या पर किसी संस्था ने कार्य किया तो वो है आर्यसमाज. स्वामी दयानंद सरस्वती जी मानते थे कि वेदो में जाती व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था नहीं है. स्वामी श्रद्धानंदजी ने जितना काम शुद्धि के लिए किया है उतना ही काम दलित समस्या पर भी किया है. नारायण गुरु ने दक्षिण मे इस दिशा में प्रयास किये. गुजरात में वडोदरा के महाराजा गायकवाड़ ने जब दलितों के लिए स्कूल खोलने का निर्णय किया तो दुर्भाग्य से कोई सुवर्ण शिक्षक वहां जाने के लिए तैयार नहीं था. तब उन्हें भी आर्यसमाज से शिक्षको को बुलाना पड़ा था. लेकिन सुवर्ण समाज ने उनसब का सामाजिक बहिष्कार किया गया.ऐसी एक दुर्देव स्थिति हिन्दू समाज की उस समय थी. पहले के सभी दलित आंदोलन में दलित नेताओ ने यह कहाँ कि मूलरूप से हम क्षत्रिय थे किसी न किसी कारण से हम गिर गए और इस तरह सारा का सारा दलित समाज उस समय अपने को हिन्दू साबित करने पर लगा रहा. और इसलिए मंदिर प्रवेश के आंदोलन चले. तो आंबेडकर जिस समय सक्रिय हुए उस समय हिन्दू समाज किसी भी तरह दलितों को स्वीकारने को तैयार नहीं था.
आंबेडकर जी के महानायक बनने की शुरुआत में उन्होंने कहाँ की ब्रिटिश राज में दलितों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है उन्होंने बताया कि पिछले दिनों ब्रिटिश राज के समय जो अकाल पड़े जिसमे 3 करोड़ लोग मरे जीने सर्वाधिक दलित थे यह ब्रिटिश राज का परिणाम है। दूसरे ब्रिटिशो ने सुवर्णो को नाराज न करने के लिए दलितों को शिक्षा नहीं दी. डॉ. आंबेडकर कहते है की दलितों को शिक्षा से वंचित रखने वाला अगर कोई है तो वह ब्रिटिश राज है.
उस समय आंबेडकर जी के सामने तीन प्रकार की समस्याए थी
एक तो दलित समस्या का निदान क्या करना?
दूसरा दलितों को ब्रिटिशो के प्रभाव में लाये बिना उनका अधिकार दिलाना और
तीसरी समस्या यदि हिन्दू बहुत प्रयास करने के बाद भी दलितों को स्वीकार नहीं करते है मंदिरो में प्रवेश नहीं देते है तो इनका धर्म क्या होगा?
नाशिक की मंदिर प्रवेश घटना में हुए घर्षण के बाद कुछ युवको ने आंबेडकर जी से मिलकर धर्म परिवर्तन करने तथा मुस्लिम बनने की बात की. आंबेडकर जी ने उन्हें कुछ समय रुकने को कहाँ और इस समस्या पर गंभीरता से विचार करने के बाद उन्होंने घोषणा की में हिन्दू बनकर जन्मा हूँ लेकिन हिन्दू बनकर मरूंगा नहीं। उन्होंने सोचा यदि दलित बंधू मुस्लिम या ईसाई बनते है तो वो अराष्ट्रीय हो जायेंगे. अतः उन्होंने अपने अनुयायिओं के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया। तो आंबेडकर जी के सामने जो तीन प्रश्न थे जिसका उत्तर आम्बेडकरजी ने निकाला वह पूर्ण रूप से राष्ट्रवादी है. आज भारत की एकता रहने के प्रमुख कारणों में से एक कारण डॉ. आंबेडकर जी है. आज समता बंधुता का संदेश लेकर जो कोई भी समाज मे कार्यरत है, जो व्यक्ति पूजा में नहीं मानते वो लोग ही आंबेडकर जी के सच्चे वारिस है.