भारत की प्रकृति के अनुसार भारत का विकास होना चाहिये – श्री अशोकजी मोडक

दिनांक 20 फरवरी को माधव स्मृति न्यास, गुजरात द्वारा कर्णावती मे आयोजित श्री गुरूजी व्यख्यान माला में “एकात्म मानव दर्शन और सामाजिक न्याय”  विषय पर उद्बोधन करते हुए श्री अशोकजी मोडक ( नॅशनल रीसर्च प्रोफेसर, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष-अ. भा. वि. प.) ने कहाँ कि दादा आप्टे ने एकबार पू. गुरूजी से साक्षात्कार में पूछा कि आपके जीवन का सूत्र क्या है? तब पू. गुरूजी ने गीता के श्लोक को उद्धत करते हुए कहाँ कि जिन्हें लोक संग्रह करना है उन्हें सामान्य मानव कि तरह बिना किसी आसक्ति के सतत कार्य करना चाहिये. आज पुरे विश्व में हिंदुत्व का वृक्ष पल्लवन हुआ है. अनगिनत लोग लाभ ले रहे है. परन्तु हमें याद रखना होगा कि जब यह वृक्ष शिशु अवस्था में था तब इसको सिंचने का कार्य पू. गुरूजी और पंडित दीनदयालजी जैसे महापुरुषों ने किया. अतः उनकी पुण्य स्मृति जगाना हमारा कर्तव्य है.

हमें एकात्म मानव दर्शन व् सामाजिक न्याय पर पिछले 26 वर्ष का सिंहावलोकन करने की आवश्यकता है. हम भूल नहीं सकते कि 1991 में रूस का विभाजन हुआ. जिसका अनुमान दीनदयालजी को पहले से ही था उन्होंने 1965 में एकात्म मानव दर्शन पर अपने एक भाषण में यह बात कही थी. सोवियत संघ और 2008 में लेहमेन के कारण अमेरिका का पूंजीवाद भी ध्वस्त होते दिख रहा है. ऐसे समय में भारत प्रजातंत्र की अधिष्ठान को रखते हुए अर्थव्यवस्था को गति दी. भारत केन्द्रित दृष्टीकोण के कारण हम प्रगति कर सके. भारत में परिवार में एक कमाता है लेकिन अधिकार सबका है यानि जो कमायेगा वह खिलायेगा. जबकि पश्चिमी सोच में जो कमायेगा वह खायेगा. पश्चिम में कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर समाज का महत्व है. भारत में संबंधो के आधार पर समाज चलता है. श्री अशोक जी ने एकात्म मानव दर्शन की सात विशेषता बताई

भारतीयता का भाव : भारतीय भाव का 20वी सदी का 19वी सदी में हुये महान आत्माओ जैसे विवेकानंद जी, गाँधी जी, तिलक जी, डॉ. आम्बेडकर जी आदि के विचार का प्रमाणिक अविष्कार यानि एकात्म मानव दर्शन.

  1. भारतीयता का भाव : भारतीय भाव का 20वी सदी का 19वी सदी में हुये महान आत्माओ जैसे विवेकानंद जी, गाँधी जी, तिलक जी, डॉ. आम्बेडकर जी आदि के विचार का प्रमाणिक अविष्कार यानि एकात्म मानव दर्शन.
  2. भावात्मक विचार : भारत की प्रकृति के अनुसार भारत का विकास होना चाहिये
  3. आध्यात्मिकता : विवेकानंदजी एवं दीनदयालजी के आध्यात्म का स्वीकार यानि सामाजिक समरसता.
  4. एकात्मता : व्यक्ति और समाज में कॉन्ट्रैक्ट नहीं बल्कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति सर्वसाधारण व्यक्ति का पुजारी बने.
  5. समग्रता : केवल समाज का विचार नहीं परन्तु संपूर्ण श्रुष्टि का विचार.
  6. मानसिकता में परिवर्तन : जबतक व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन नहीं होता समाज परिवर्तन नहीं हो सकता. केवल संस्थागत परिवर्तन प्रयाप्त नहीं है.
  7. सिधांतवादी समाज : मन शुद्ध हो तो मुक्ति महल हो या जंगल कही भी मिल सकती है.

कार्यकम के प्रारंभ में श्री सुनील भाई बोरिसा ( सह संपर्क प्रमुख, रा.स्व.संघ, गुजरात) ने माधव स्मृति न्यास का परिचय कराया. माधव स्मृति न्यास के न्यासी श्री वल्लभ भाई सांवलिया तथा श्री महेश भाई परीख इस अवसर पर मंच पर उपस्थित रहे. श्री भानु भाई चौहान ( सहकार्यवाह, रा.स्व.संघ, कर्णावती महानगर) ने कार्यक्रम के समापन में आभार विधि संपन्न की.

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