इंदौर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय जी ने कहा कि हमारे देश में धर्म कट्टरता का प्रतीक नहीं हैं. भारत का धर्म जीवनशैली में व्याप्त है, जो व्यापक अर्थ में परिभाषित होता है. इसी प्रकार हिंदुत्व हमारी परंपराओं में निहित शक्ति है. भारत त्याग, बलिदान और निर्माण सिखाता है, जबकि इंडिया स्वयं के लिए जीना सिखाता है. वह ‘एकात्म मानव दर्शन, धर्म एवं मोक्ष’ विषय पर खंडवा रोड स्थित ऑडिटोरियम में आयोजित संगोष्ठी में संबोधित कर रहे थे. संगोष्ठी का आयोजन दीनदयाल शोध संस्थान मित्र मंडल द्वारा किया गया. सह सरकार्यवाह जी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय के बारे में कहा – भारतीय संस्कृति और सभ्यता में व्याप्त दर्शन को दीनदयाल जी ने पुन: नए स्वरूप में समाज के सामने रखा.
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने कहा – पं. दीनदयाल जी का मूल उद्देश्य भारत की जनता की आत्म जागृति था. उन्होंने कहा लोकतंत्र में जनता को भी राजनीतिक कार्यकर्ताओं और जनता को भी समझाने की आवश्यकता होती है. जैसे बिजली के बिल माफ करना, खुश करने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए. भारत वह देश है, जहां राजा जनता के बीच जाकर उसकी सहमति से कल्याण के कार्य कर सकता है. आज भी जनता जागृति के लिए तैयार है. दीनदयाल जैसे विचार दर्शन ही राजनीति और समाज को नई दिशा दे सकता है.
संगोष्ठी के दूसरे दिन गुजरात के राज्यपाल ओम प्रकाश कोहली जी ने कहा कि हम आजाद तो हैं, लेकिन मानसिक गुलामी हम पर अब भी हावी है. वैसे ही जैसे इस समय मशीनरी और टेक्नोलॉजी हिंदुस्तान पर हावी हो गई है. आधुनिक यंत्र हमारी जरूरत बन गए हैं. एक तरह से हम इनके गुलाम हो गए हैं. गांधीजी और पं. दीनदयाल की सोच करीब-करीब एक जैसी थी. दोनों भारतीय नीति को बनाए रखने और मजबूत करने पर जोर देते थे. क्या हम आजादी को ही स्वराज मानते हैं. असल में स्वराज को समझने के लिए ‘स्व’ शब्द को समझना होगा. हिंदुस्तान बुनियाद है, चाहे वह गिरा-टूटा कैसा भी हो. पश्चिमी सभ्यता दिखावटी है, जो विलासिता के साधनों से हमें जकड़े रखना चाहती है. धर्म और नीति से ही तो हिंदुस्तान की सभ्यता जुड़ी हुई है. धर्म को किसी भी तरह अलग नहीं कर सकते. इसका हमारी सभ्यता पर सीधा-सीधा असर है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र के संघचालक एवं अर्थशास्त्री डॉ बजरंग लाल गुप्त जी ने कहा कि नकल ही हमारी सबसे बड़ी परेशानी बन गई है. पंचवर्षीय योजना सहित कई मामलों में नकल से हमें नुकसान हुआ है. प्रकृति को ध्यान में रखकर ही उत्पादन बढ़ाना चाहिए, जबकि प्रकृति का ध्यान रखे बिना कई बड़े फैसले हो जाते हैं. कई मामलों में जरूरी नीतियों को ध्यान में न रखने से इसका असर जीडीपी पर हो रहा है.