1962 से 1967 वाला हठधर्मी चीन भारत के प्रति 1998 मे सुधरा था और इसे सुधारा था पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी जी ने, जो कि भारत चीन संबन्धो के सच्चे वास्तुकार कहे जाते हैं। वर्तमान मे भारत चीन सम्बंध मे जो भी सत्व है वह 1998 के परमाणु विस्फोट से लेकर 2003 तक के अटलबिहारी शासन की ही देन है। यह बात भारत ही नहीं चीन भी स्वीकारता है। चीन यह भी स्वीकारता है कि यदि चीन के प्रति पंडित नेहरू की गलतियों को सुधारने वाले अटल अभियान का सच्चा उत्तराधिकारी भारत को नरेंद्र मोदी के रूप मे मिल गया है। 2004 से लेकर 2014 तक का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कालखंड पुनः चीन के भारत पर हावी होने का दशक रहा। मनमोहन की कमजोर केंद्र सरकार ने चीन को अनावश्यक ही दसियों अवसरों पर भारत के प्रति आक्रामक होने का अवसर दिया। इस मध्य अनेकों गलतियां हुई जिनसे भारत चीन सम्बन्धों मे चीन के हावी होने का वातावरण बना।
मई 2020 का अंतिम सप्ताह भारत-चीन-नेपाल-पाकिस्तान के चतुष्कोण मे सदैव स्मरणीय रहेगा। मई प्रारंभ से ही लद्दाख सीमा पर चीन ने अपनी नीयत बिगाड़ ली थी। चीन ने कोरोना वायरस को फैलाने के विश्व भर से अपने ऊपर लगते आरोपों के मध्य चीन ने भारत को घेरने की कूटनीति मे नेपाल व पाकिस्तान का सहारा लिया। भारत ने चीन नेपाल पाकिस्तान के इस संयुक्त हमले को अपनी राजनयिक कौशल से छिन्न भिन्न कर दिया है। लद्दाख मे भारत चीन सीमा विवाद मे ये अंततः ये तीनों ही देश अपने कदम वापिस लेते दिखाई दिये। चीन ने भारत स्थित अपने दूतावास से दार्शनिक प्रकार के शांति संदेश दिये। नेपाल ने नक्शा विवाद मामले में विधेयक वापस ले लिया और भारत नेपाल सीमा विवाद पर चुप्पी साध ली। भारत ने अपनी सेना को लद्दाख मोर्चे पर तैनात करना प्रारम्भ करके जो सख्त संदेश व दृढ़ मानस बताया उसे चीन ने तुरंत ही समझ लिया और कहा – चाइनीज ड्रैगन और भारतीय हाथी एक साथ नृत्य कर सकते हैं। सर्वाधिक सुखकर विषय नेपाली संसद मे भारत को मिले समर्थन का दिखना रहा जिसमें अंततः संसद मे प्रस्तुत नक्शा नेपाल सरकार ने वापिस ले लिया। भारत नेपाल मे तब तनाव आ गया था जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आठ मई को उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे को धारचुला से जोड़ने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया था। नेपाल ने इस सड़क के उद्घाटन पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया था कि यह नेपाली सीमा से होकर जाती है। भारत ने नेपाल के दावे को खारिज करते हुए कहा था कि सड़क पूरी तरह से उसकी सीमा में है। नेपाल की इस भूमिका के पीछे चीन का हाथ माना जा रहा था क्योंकि ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी की नेपाल सरकार को चीन का समर्थक माना जाता है। लद्दाख मे भारत चीन तनाव व भारत नेपाल के इस कटुक संवाद के मध्य चीन के पिछलग्गू पाकिस्तान ने भी चीन के संकेत पर अपने बेसुरा आलाप प्रारंभ किया था। पाकिस्तान ने भारत पर सीमावर्ती क्षेत्रों मे अवैध निर्माण का आरोप लगाया। पाकिस्तान प्रमुख इमरान खान ने ट्वीट किया कि हिंदुत्ववादी मोदी सरकार की अभिमानी विस्तारवादी नीतियां नाजी विचारधारा के समान है। पाक ने यह भी कहा कि भारत अपने पड़ोसियों के लिए भी खतरा बन रहा है। भारत के खिलाफ नेपाल को समर्थन देने वाला पाकिस्तान लद्दाख में भी अपने आका चीन के पीछे खड़ा होकर गीदड़ भभकी कर रहा है।
पाकिस्तान ने कहा कि भारत लद्दाख में जो कर रहा है, उसे चीन बर्दाश्त नहीं कर सकता, और यह भी कहा कि चीन से वर्तमान संघर्ष के लिए भारत जिम्मेदार है, क्योंकि लद्दाख में उसकी ओर से शुरू किए गए अवैध निर्माण कार्य के बाद ही इस विवाद की जड़ हैं। वस्तुतः नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की बड़ी दीर्घ दृष्टि से सीमावर्ती क्षेत्रों मे चल रहे निर्माण कार्यों को चीन स्वाभाविक ही गंभीरता से ले रहा है व इस संघर्ष मे पाकिस्तान व नेपाल को मोहरा बना रहा है। मोहरा बने पाकिस्तान ने भारत को पड़ोसियों के प्रति खतरा बताते हुये नेपाल को भारत से नाराज करने का अभियान चला रखा है। नागरिकता कानून व कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर भी पाकिस्तान बड़ी बयानबाजी करता रहा है व बांग्लादेश को भी भड़काते रहा है। मोदी सरकार ने सीमावर्ती भारतीय भूमि के प्रति जिस प्रकार का गंभीर, आक्रामक व हठी आचरण अपना रखा है चीन को उसकी आशा तो थी किंतु उसे मोदी सरकार से इस कोरोना कालखंड मे इतनी बलशाली प्रतिक्रिया की आशा संभवतः कम ही थी। चीन का अपने कदम वापिस लेना प्रदर्शित करता है कि वह यह समझ चुका है कि यह नरेंद्र मोदी का भारत है। भारत अपनी सीमाओं के प्रति अपनी चैतन्य व जागृत है व समय आने पर आक्रामक भी हो सकता है यह संदेश चीन को मिल गया है जो स्वाभाविक ही उसे रास नहीं आया है।
वस्तुतः नेपाल ने उत्तराखंड में धारचूला से चीन सीमा पर स्थित लिपुलेख तक रोड लिंक बनाये जाने के विरोध में नेपाल स्थित भारतीय राजदूत को समन जारी किया था और भारतीय राजूदत को राजनयिक पत्र सौंपा। नेपाल सरकार का कहना है कि उत्तराखंड में जो सड़क बनायी गयी है, वह उसके क्षेत्र में है। दूसरी तरफ भारतीय विदेश मंत्रालय ने नेपाल के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में हाल ही जिस रोड का उद्घाटन किया गया है वह पूरी तरह से भारत की सीमा में है। इस मार्ग पर आवागमन आसान हो जाने से तीर्थयात्रियों के साथ-साथ स्थानीय लोगों और व्यापारियों को बहुत सहूलियत मिलेगी। दूसरी तरफ भारत ने पाकिस्तान द्वारा एक बांध निर्माण के लिए चीन के साथ समझौता किये जाने पर विरोध प्रदर्शित किया है। नेपाल द्वारा सीमाओं पर हाल ही मे तैनात की गई सेना व नेपाली रक्षामंत्री रक्षा मंत्री का राइजिंग नेपाल को दिया साक्षात्कार भी भारत के लिए असहजता बनाने वाला विषय रहा है। हाल ही के भारत नेपाल विवाद के मूल मे वह नक्शा है जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लाम्पियाधुरा को नेपाल के हिस्से के रूप में दिखाया गया है। इस विषय मे भारत का मानना है कि कालापानी उसका हिस्सा है। उत्तराखंड स्थित इस घाटी में ब्रिटिश काल से ही भारतीय चौकी रही है और इस पर भारत का नियंत्रण रहा है। अंततः सुखद यही रहा कि इस समूचे विषय मे नेपाल ने विवादित व भारत विरोधी अपना नया नक्शा वापिस ले लिया है, चीन ने भारतीय हाथी संग अपने ड्रेगन के संयुक्त नृत्य का सुखद व्यक्तव्य जारी कर दिया है और पाकिस्तान की स्थिति बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना की हो गई है।
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