भारत भूमि पर विकसित सभी दर्शनों में सबके कल्याण का विचार – जे नंदकुमार जी

भोपाल (विसंकें). प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंदकुमार जी ने कहा कि भारतीय दृष्टि समूची सृष्टि को ईश्वर ही मानती है. मनुष्य मात्र में ही नहीं, अपितु प्रकृति के प्रत्येक तत्व- पेड़-पौधे, पक्षी, ग्रह-नक्षत्र, पृथ्वी, समुद्र एवं पहाड़, सबमें ईश्वर का ही अंश है. सबमें एक ही ब्रह्म है. इसलिए भारतीय ज्ञान परंपरा में सबके साथ आत्मीय संबंध देखे गए हैं. अन्यत्र किसी विचार-संस्कृति में प्रकृति के प्रति ऐसा दृष्टिकोण नहीं है. वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘ज्ञान संगम’ में व्यक्त किए. ज्ञान संगम का उद्घाटन प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री डॉ. नरेन्द्र कोहली जी, उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह जी पवैया, कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला जी ने किया.

‘जीवन की भारतीय दृष्टि’ विषय पर जे. नंदकुमार जी ने कहा कि हम अपने भीतर जिस प्रकाश को देखते हैं, दूसरे के भीतर भी उसी प्रकाश के अस्तित्व को स्वीकारते हैं. भृतहरि ने अपने वैराग्य शतक में प्रकृति की ओर संकेत करते हुए लिखा है कि आकाश मेरा भाई है. पृथ्वी मेरी माता है. वायु मेरे पिता हैं और अग्नि मेरा मित्र है. उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में प्रकृति को आनंद का बगीचा नहीं माना, बल्कि इसके साथ आत्मीय संबंध बनाए हैं. भारतीय दर्शन के आधार पर सभी विषयों के प्रति हमारी मौलिक मान्यताएं हैं. उन मौलिक मान्यताओं के आधार पर आज विमर्श करने की आवश्यकता है.

भारत भूमि पर विकसित सभी दर्शनों में सबके कल्याण का विचार

नंदकुमार जी ने कहा कि भारत में विकसित वैदिक, जैन, सिख एवं बौद्ध सहित अन्य सभी दर्शन कहते हैं कि – ‘सबका कल्याण हो’. भारतीय परंपरा में ही सर्वे भवंतु सुखिन: का विचार किया गया है. भारतीय जीवन दृष्टि विभिन्न आधारों पर भेद करके विनाश की बात नहीं करती, बल्कि इसमें सबके कल्याण का विचार है. भारतीय दृष्टि ईश्वर के संबंध में कहती है कि किसी भी रूप में, किसी भी समय, किसी भी नाम से मुझे बुलाओ, मैं उसी रूप में आपके सामने आऊंगा. स्वामी विवेकानंद ने इसी बात को अपने शिकागो व्याख्यान में कहा था. भारत में सभी विषयों को देखने का एक सर्वसमावेशी दृष्टिकोण है. यह दर्शन है. नंदकुमार जी ने कहा कि विश्व में भारतीय जीवन दृष्टि है, जहाँ स्त्री-पुरुष की रचना एवं कल्पना एकसाथ एक ही तत्व से मानी जाती है. यहाँ स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं माना गया है. दोनों को एक-दूसरे के समान एवं पूरक माना गया है. हमारे शक्ति के बिना शिव को शव मानते हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन दृष्टि की वैचारिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक प्रासंगिकता बनी हुई है. विश्व शांति के लिए भारतीय दर्शन को जानना महत्वपूर्ण है.

जोड़ने  वाला ऋषि और बांटने वाला राक्षस

डॉ. कोहली ने बताया कि भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु से पहले पश्चिम के विद्वान यह मानते ही नहीं थे कि वनस्पति में भी जीवन होता है. जबकि भारतीय ज्ञान परंपरा में माना गया है कि जो कुछ भी इस सृष्टि में है, वह सब प्राणवान है. जिस प्रकार चैतन्य मनुष्य व्यवहार करता है, ठीक उसी प्रकार प्रकृति के तत्व भी व्यवहार करते हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन दृष्टि में सबको समान माना गया है, जब तक कि वह धर्म की राह पर चले.

लोक मंगल की परंपरा है ज्ञान

उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि एवं उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह जी ने कहा कि सभ्यताएं युग के अनुसार बदलती रहती हैं, किंतु संस्कृति कभी नहीं बदलती. संस्कृति का अर्थ है – जीवन मूल्य. ज्ञान-संगम ज्ञानियों का संगम है, जिसमें अगला क्रम एक दूसरे में समाहित हो जाना है. हमारी भारतीय जीवन दृष्टि में ज्ञान संगम एवं मंथन विशिष्ट है. यह परंपरा महाकुम्भ से चली आ रही है. लोक मंगल की परंपरा ही ज्ञान है. स्वामी विवेकानंद कहते थे कि – अतीत को पढ़ो, वर्तमान को गढ़ो और आगे बढ़ो. जो समाज अपने इतिहास एवं वांग्मय की मूल्यवान चीजों को नष्ट कर देता है, वह निष्प्राण हो जाते हैं और यह भी सत्य है कि जो समाज इतिहास में ही डूबे रहते हैं, वह भी निष्प्राण हो जाते हैं.

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला जी ने कहा कि भारतीय ज्ञान-दर्शन के प्रति दुनिया में जिज्ञासा बढ़ रही है. यूरोप के लगभग प्रत्येक विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान का अध्ययन किया जा रहा है. भारतीय ज्ञान का अध्ययन करते समय यूरोप के विद्वानों का दृष्टिकोण यूरोपीय ही होगा, इसलिए भारतीय ज्ञान अपने मूल रूप में सामने आएगा, इसकी संभावना अधिक नहीं है. ऐसे में हमारे सामने चुनौती है कि हम अपने ज्ञान को भारतीय दृष्टिकोण से दुनिया के सामने लाएं. अपने विषय के क्षेत्र में भारतीय दृष्टि से शोध एवं अध्यापन कराएं और उसे पाठ्यक्रम में शामिल कराने के प्रयत्न करें.

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