मदर टेरेसा और उनका धन्य पद
डॉ. श्रीरंग गोडबोले द्वारा मराठी साप्ताहिक विवेक के 7 दिसम्बर 2003 के अंक में छपे हुए लेख का हिंदी अनुवाद .
वर्तमान पोप को संत निर्माण करने की अत्यधिक शीघ्रता आ गई हैं. 1978-1999 के दौरान उन्होंने 283 संत पद और 819 धन्य पद निर्माण किये. उसके बाद मात्र चार वर्ष में यह संख्या 477 संत पद और 1318 धन्य पद तक पहुँच गयी. अभी तक सभी पोपों द्वार निर्माण गये संत पद और धन्य पदों की संख्या की तुलना में इन चार वर्षों की संख्या अधिक है. (इंडियन एक्सप्रेस 14 ओक्टोबर2003) सिल्वियो ओद्दी नामक 86 वर्षीय वयोवृद्ध कार्डिनल ने भी स्वयं के संस्मरणों में ‘संत बनाने का कारखाना” जैसी टिपण्णी की है.मदर टेरेसा को धन्य पद प्रदान करने का समारंभ 19 अक्टूबर को द्वितीय जॉन पॉल के कर कमलों द्वारा वैटिकन में संपन्न हुआ. टेरेसा को संत पद प्रदान करने का यह एक महत्व पूर्ण आयाम हैं. हिन्दू परम्परा में प्रेममयी जीवन, उपदेश और कार्य के आधार कोई भी व्यक्ति सहज रूप से संत कहलाने लगता है. रोमन केथोलिक परम्परा में किसी भी व्यक्ति को संत कहलाने के लिए विशेष प्रक्रिया से गुजरना होता है.
सम्बंधित व्यक्ति की मृत्य के कम से कम पांच वर्ष पश्चात ही यह प्रक्रिया प्रारम्भ की जाती है और कई वर्षों पश्चात ही उसे धन्य पद प्रदान प्राप्त होता है उस व्यक्ति के द्वारा अतिश्योक्तिपूर्ण दावों की सच्चाई की जाँच हेतु एडवोकेट्स दायबोली ( शैतान का वकील ) की नियुक्ति होती है. इसके बाद उस व्यक्ति के नाम से किये गये सभी चमत्कारों के झूठ सच की जाँच होती है. कई दशकों तक चलने वाली इस प्रक्रिया के बाद ही उसे धन्य पद दिया जाता है. इसके बाद एक और चमत्कार के सबूत मिलने के पश्चात् ही उसे संत पद प्रदान किया जाता है. संत पद प्राप्त व्यक्ति की मर्यादित रूप से पूजा की जा सकती है.
टेरेसा के सम्बन्ध में वर्तमान पोप ने इस पूरी प्रक्रिया की अनदेखी की है 1997 में टेरेसा के मृत्यु के एक वर्ष पश्चात ही यह प्रक्रिया प्रारम्भ कर ली गयी टेरेसा के मामले में वकील दायबोसी की नियुक्ति नहीं हुई ऐसा दावा किया गया की मोनिका बेसरा नाम की एक महिला के पेट में कर्क रोग (केंसर) की एक गांठ थी. ननों ने उस महिला को टेरेसा के कमरे में ले जाकर टेरेसा की प्रतिमा के कमर से बांध दिया और प्रार्थना की उस दिन टेरेसा का प्रथम स्मृति दिवस था. इसके पश्चात अद्भुत चमत्कार हुआ. मोनिका बेसरा के पेट में स्थित केंसर की गांठ दूसरे दिन अदृश्य हो गयी. पोप ने पिछले वर्ष इस चमत्कार को मान्यता दी.
मोनिका बेसरा का इलाज कर रहे और संभाल रखने वाले डॉ.रंजन मुस्तकी के अनुसार वह गांठ कर्क रोग (केंसर) की नहीं होकर क्षय रोग (टी. बी.) की थी और डाक्टरी चिकित्सा तथा दवाओं की वजह से यह गांठ ठीक हुई. मोनिका बसेरा के पति ने अक्टूबर 2002. में स्वयं “टाइम” मैगज़ीन को एक मुलाकात दी थी और उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी चमत्कार के कारण नहीं बल्कि चिकित्सा और दवाइयों की वजह से स्वस्थ हुई है. मुझे इस प्रकार के सारे तमाशे बंद करवाने है. मदर टेरेसा की प्रतिमा की कमर में बांधने से उनकी पत्नी की वेदना कम हुई यह उन्होंने स्वीकारा. परन्तु सामान्य स्थिति में भी उनको वेदना कम ज्यादा होती ही थी.
परन्तु अब मोनिका का पति दूसरा ही राग अलाप रहा है. लन्दन से प्रकाशित दैनिक “न्यू स्टेटमेन”(27 अक्टूबर 2003) ने मोनिका के पति के बदले हुए सुर पर मार्मिक टिपण्णी की है. जमीन खरीद के लिए सैको ( मोनिका के पति ) को पैसे दिये गये तथा उनकी पांच संतानों के शिक्षा का खर्च योगिनियाँ उठा रही है. क्या इसके चलते ही (मोनिका के पति ) ने अपना निवेदन बदला है ?
परन्तु पोप कैसे एकाग्रचित है? टेरेसा को किसी भी हालत में संत पद प्रदान करना ही है ऐसा उन्होंने अपने मन में निश्चित कर लिया है. इसलिए पोप ने ऐसे मुश्किल में डालने वाले प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए. दूसरा चमत्कार होगा ही और टेरेसा को संत पद प्राप्त होना ही है इस बारे में किसी प्रकार की शंका रखने का कोई कारण नहीं है. वर्तमान “पोप” को संत निर्माण करने की अधिक जल्दी है.
1978-1999 के अन्तराल में उन्होंने 283 संत पद और 819 धन्य पद निर्माण किये. उसके बाद मात्र चार वर्ष में यह संख्या संत पद 477 और धन्य पद 1318 तक पहुँच गयी है. अभी तक के सभी पोपों द्वारा प्रदान किये गये संत पद और धन्य पद की संख्या से यह संख्या ज्यादा है. (इंडियन एक्सप्रेस 14 अक्टूबर २००३ )सिल्विओ ओदी नाम के 86 वर्षीय वयो वृद्ध कार्डिनल ने भी अपने संस्मरणों में “संत बनाने का कारखाना” ऐसी टिपण्णी की है. ये तो ठीक है पर पोप को संत पद प्रदान करने के लिए कैसे लोग पसंद आते है ? प्रदर्शनी के समय लोगों में दहशत फ़ैलाने वाले और फांसी की सजा पाए हुए फ्रायर सारानोवा और इसी तरह गुप्त तरीके से काम करने वाले गुप्त केथोलिक संगठन “ओपस डे” के संस्थापक “जोस मारिया द बलागे “ जैसे लोग टेरेसा के साथ संत पद की लाइन में खड़े है.
वर्तमान पोप संत पद का थोक में वितरण करने के लिए इतने उत्सुक क्यों है ?संत पद प्रदान करने की प्रक्रिया अभी तक यूरोप केन्द्रित ही रही है. हिंदुस्तान में ईसाईयों के पांच सौ वर्ष के इतिहास में वैटिकन को भारत में से एक भी व्यक्ति संत पद प्राप्त करने हेतु पसंद नहीं आया. फादर जोसेफ वाज़ नाम के गोवा के मिशनरी को धन्य पद प्राप्त करने के लिए उनके मृत्यु के बाद लगभग 248 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा. इसके बाद उन्हें धन्य पद प्राप्त हुआ.
यूरोप में ईसायत की इमारत टूट गयी है. वहां के चर्च खाली पड़े है. स्वभाविक रूप से इस शताब्दी में पुरे एशिया खास कर हिंदुस्तान में धर्मनान्तरण को बढ़ाने की पोप की योजना है. वैटिकन जैसे धार्मिक स्थान के बदले में व्यापारी तत्वों के आधार पर चलने वाली बहु राष्ट्रीय कंपनियों को देखने से पोप के इन कारनामों को समझा जा सकता है. अपना माल बेच कर लाभ कमाने के लिए जैसे कोई होशियार कंपनी “ब्रांड” को तलाशती है और मार्केटिंग के आधार पर उस ब्रांड को लोकप्रिय बनाती है उसी तरह वैटिकन “मदर टेरेसा “ के ब्रांड का उपयोग हिन्दुओं के धर्मनान्तरण के लिए करेगा यह निश्चित है.
मदर टेरेसा वर्तमान युग की महान सन्त थी ऐसा प्रचार योजनाबद्ध तरीके से मिशन, चर्च और प्रचार माध्यमों द्वारा हो रहा है. भारत के असहाय हिन्दुओं के उद्धार के लिए स्थानीय हिन्दू नहीं बल्कि एक विदेशी ईसाई महिला दौड़ कर आयी ऐसा दुनिया को धोखा दिया जा रहा है. मदर टेरेसा को धन्य पद प्रदान करने के लिए उनके कार्यों का वस्तुनिष्ठ मुल्यांकन आवश्यक था परन्तु उनके विचारकों ने आनंद का ऐसा गुब्बारा फुलाया की उन्हें प्रशंसा के फुल चढाने के अलावा कुछ सुझा ही नहीं.
ईश्वर के अस्तित्व को ही नकारने के प्रयास करने वाले लोगों ने टेरेसा के तथा कथित चमत्कार का कोई विरोध नहीं किया. मदर टेरेसा के कलकत्ता स्थित केंद्र के सामने अंधश्रद्धानिर्मूलन करने वाले ठेकेदारों ने भी कोई प्रदर्शन किया हो ऐसा सुनने में नहीं आया. सिर्फ नाम मात्र के लोगों ने टेरेसा के तथाकथित चमत्कार का विरोध किया. मदर टेरेसा का जीवन एक चमत्कार था,उन्हें अलग से कोई चमत्कार बताने की आवश्यकता ही नहीं,ऐसा उनका तर्क था . इसका मतलब यह था की उनको टेरेसा के कार्यों के सम्बन्ध में कोई विरोध नहीं था.
इस सब कोलाहल के बीच इंग्लॅण्ड में रह रहे डॉ.अरूप चेटरजी नाम के बंगाली डॉक्टर ने टेरेसा के विरोध में निर्भयता पूर्वक आवाज़ उठायी. “मदर टेरेसा द फाइनल वर्डिक्ट “ नाम की उनकी 426 पन्नों की पुस्तक में सबूतों के साथ टेरेसा पर गंभीर आरोप लगाये है. याद रहे कि डॉ. अरूप चेटरजी कोई हिन्दुनिष्ठ व्यक्ति नहीं है बल्कि पूर्ण रूप से नास्तिक व्यक्ति है. जितना लाभ टेरेसा की वजह से कोलकाता को हुआ उससे कई गुना लाभ कोलकाता की वजह से टेरेसा को हुआ. ऐसा डॉ.अरूप चेटरजी का आरोप है. टेरेसा की वजह से कोलकाता को “नर्क पुरी” के नाम से पूरी दुनिया में बदनाम किया गया. डॉ.अरूप चेटरजी ने 21 फरवरी को अपने सभी आक्षेप संत समिति के सामने खड़े किये है.
1. टेरेसा की लोगों के लिए उपलब्ध एम्बुलेंस गाड़ियाँ अधिकतर नन्स के प्रवास के लिए होता था.
2. मदर टेरेसा के केंद्र में केवल कैथोलिक प्रार्थना की ही छूट थी, उनके यहाँ आये हुए निसहाय लोगों को अपनी अपनी पद्दति के हिसाब से प्रार्थना करने पर प्रतिबन्ध था.
3. नोबल पुरुस्कार प्राप्त करते समय दिए हुए अपने भाषण में टेरेसा ने परिवार नियोजन के प्राक्रतिक तरीके से कोलकाता में 6 वर्ष में 61273 से भी कम शिशुओ का जन्म हुआ ऐसा उन्होंने दावा किया परन्तु इसका कोई सबूत नहीं है.
4. “ लेडीज होम जर्नल” नाम के अमेरिकन मैगज़ीन ( अप्रैल 1996 ) के अनुसार टेरेसा ने ऐसी इच्छा व्यक्त की थी कि उनकी मृत्यु उनके कोलकाता केंद्र में ही प्राप्त हो जैसी एक गरीब की होती है परन्तु अपना इलाज कराने के लिए टेरेसा ला जोला, कैलिफ़ोर्निया स्थित स्क्रिप क्लिनिक,रोम स्थित जेम्मेली हॉस्पिटल , कोलकाता स्थित बेलव्यू और वुडलैंड जैसे महंगे होस्पितालों में भर्ती हुई.
5. मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए 5000 डॉलर का इलाज महंगा है यह कर टाल दिया जो अमेरिका स्थित पिट्टसबर्ग में आया हुआ सैंट फ्रांसिस मेडिकल सेंटर ने ऑफर किया था परन्तु इस बात की इतनी चर्चा होने के तुरंत बाद अगले ही वर्ष न्यूयॉर्क के सैंट विन्सेंट हॉस्पिटल में अत्यधिक रकम खर्च कर करवा लिया.
6. सुप्रसिद्ध बी बी सी पत्रकार क्रिस्तोफेर हिन्चेसे द्वारा लिखित जग प्रसिद्द पुस्तक “ डी मिशनरी पोजीशन,मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस “( बर्सो प्रकाशन 1998 ) में इससे भी गंभीर आरोप लगाये गये है.
चार्ल्स कित्तिंग नाम का एक अमेरिकन लोफर धोखा धडी के आरोप में दस वर्ष की सजा भुगत रहा है. इसने कई निवेशकों के लगभग 9 लाख डॉलर्स धोखा देकर हज़म कर लिए. इसको मदर टेरेसा ने 15 लाख अमेरिकन डॉलर्स दान में दिए है. वह अपना खुद का हवाई जहाज़ मदर टेरेसा को उपयोग हेतु देता था . इसके बदले में टेरेसा के नाम का उपयोग करने की छूट टेरेसा ने दे रखी थी.
टेरेसा ने व्यक्तिगत क्रॉस भी उसे भेंट में दिया था. उस पर चल रहे मुकदमे के दौरान मदर टेरेसा ने सम्बंधित न्यायधीश को एक पत्र लिख कर उसे माफ़ करने को कहा था . टेरेसा ने लिखा की तुम अपने हृदय में विचार करो और यह सोचो कि इसकी जगह अगर ईसा होते तो तुम क्या करते. न्यायधीश ने टेरेसा को गुनाहगार द्वारा किये गये सभी अपराधों की सूची तथा सरकारी वकील द्वारा पेश किये पक्ष सहित भेज दिए और न्यायधीश ने अत्यंत मार्मिक कटाक्ष करते हुए जबाव दिया कि अगर इसकी जगह ईसा होते तो स्वयं को मिली हुयी लूट की रकम वास्तविक मालिक को वापस कर देते, आप भी यह रकम रखोगे नहीं और आपकी इच्छा हो तो में इस रकम के सच्चे मालिक के साथ आपका सम्पर्क करवा सकता हूँ . इस मामले में टेरेसा ने आगे कुछ नहीं किया.
हेती के सर मुख्त्यार ज्यां क्लोद द्वाइए और उनकी पत्नी मिशेल के विवाह समारोह में मदर टेरेसा शामिल हुई और दोनों की भूरी भूरी प्रशंसा की. इसके बदले में टेरेसा को हेती का सर्वोच्च पुरुस्कार “ लीज्य डी ऑनर “ दिया गया. कुछ दिनों बाद यह दुवाइए दम्पति हेती से रकम लूट कर फ्रांस भाग गयी. विश्व विख्यात मेडिकल जर्नल “ लेन्सेंट “ साप्ताहिक के सम्पादक डॉ.फ्राक्से टेरेसा के केंद्र गये और देखा कि बीमार लोगों के डायग्नोसिस के नाम पर निर्दयता , अस्प्रिन को छोड़ कर कोई भी दर्द निवारक दवा का उपयोग न करना, नल के बहते हुए पानी के नीचे इंजेक्शन की सुईं ( नीडल) को धोना आदि कई जानलेवा गतिविधियों को देखा. एक छोटे कमरे में 50-६० पुरुष और एक और छोटे कमरे में 50-६० महिलाएं थी. सबके सिर मुंडे हुए थे.
मदर टेरेसा स्वयं कैथोलिक होते हुए स्वाभाविक ही था कि वे अभिनिवेश थी . उनसे पूछा गया कि गेलिलियो बनाम चर्च मामले में आपने किसका पक्ष लिया होता तो जबाव दिया कि निश्चित ही चर्च के पक्ष में (इंडिया टू डे 31 मई 1983 ) एक प्रोटोस्टेंट इसाई दम्पति किसी अनाथ बालक को गोद लेने आये तब टेरेसा ने गोद देने से मना कर दिया. दलित ईसाईयों को आरक्षण मिले इसके लिए टेरेसा ने राजघाट पर धरना दिया था. जब इस मांग पर टिपण्णी और आलोचना होने लगी तो मुकरते हुए भोली बनते हुए बताया कि इस कार्यक्रम के उद्देश्य की मुझे जानकारी नहीं थी. बाद में पता चला कि उनको उस कार्यक्रम का औपचरिक आमन्त्रण पत्र भेजा गया था.
निरपेक्ष सेवा करने वाले के सामने जाति धर्म का भेद किये बगैर नत मस्तक होना ही चाहिए परन्तु टेरेसा की सेवा को निरपेक्ष नहीं कहा जा सकता यह खेद पूर्वक कहना पड़ता है.