असली भारत गांवों में बसता है। यदि किसी आदर्श गाँव को देखना चाहते हैं तो मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के बघुवार गांव चलिए। साफ सुथरी सड़कें, भूमिगत नालियां, हर घर में शौचालय, खेलने के लिए इनडोर स्टेडियम, खाना बनाने के लिए बायोगैस संयत्र। वर्षों से गांव का कोई विवाद थाने तक नहीं पहुंचा। स्कूल व सामुदायिक भवन के लिए जब सरकार का दिया पैसा कम पड़ा तो बघुवार वासियों ने धन भी दिया व श्रमदान भी किया। यह सब 50 वर्षों से चल रही संघ की शाखा व स्वयंसेवकों द्वारा किए जा रहे ग्राम विकास के प्रयासों का नतीजा है।
लगभग 25 वर्ष तक गांव के निर्विरोध सरपंच रहे ठाकुर सुरेंद्र सिंह, ठाकुर संग्राम सिंह एवं हरिशंकर लाल जैसे स्वयंसेवकों ने तत्कालीन सरकार्यवाह भाऊराव देवरस की प्रेरणा से अपने गांव को आदर्श गांव बनाने का निश्चय किया। 50 वर्षों से नियमित चल रही प्रभात फेरी हो या हर घर की दीवार पर लिखे सुविचार या फिर बारिश के पानी को संग्रहित करने की आदत, बघुवार को अन्य गांवों से अलग बनाती है।
1950 से बघुवार की ग्राम विकास समिति समग्र ग्राम विकास के मॉडल पर काम कर रही है। गांव तक पहुंचने वाली 3 किलोमीटर लंबी सड़क यहां के नवयुवकों ने मिलकर बनायी है।
कृषि विशेषज्ञ व संघ के तृतीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक बघुवारवासी एम.पी. नरोलिया जी बताते हैं कि गांव के लोग कभी भी विकास के लिए सिर्फ सरकार पर निर्भर नहीं रहे। सरकार से मिली राशि में गांव वालों ने डेढ़ लाख रु. मिलाकर पक्का स्कूल भवन बनाया, भ्रमरी नदी पर बने स्टॉपडेम में ढाई लाख रु. देकर खेती के लिए पानी के संकट को भी हल किया। नियमित साफ सफाई, घरों के आगे बने सोखते गड्ढे, भूमिगत नालियों का निर्माण, गांव में वृक्षारोपण, वर्षा जल की हरेक बूंद को सहेजकर सिंचाई में उपयोग करना यह सब गांववालों की आदत में शामिल हो चुका है।
शतप्रतिशत साक्षरता, घरों की दीवारों पर लिखे प्रेरक, ज्ञानवर्धक और संस्कारक्षम वाक्य मन पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। 40 प्रतिशत घरों का भोजन गोबर गैस से बनता है। शिशु मंदिर के प्राचार्य रहे नारायण प्रसाद नरोलिया जैसे कुछ लोग समय समय पर विद्यालय जाकर पढ़ाते भी हैं। इसी सरकारी विद्यालय से पढ़कर नरोलिया कृषि संचालक बने तो अवधेश शर्मा लेफ्टीनेंट बने। कुछ डॉक्टर बने व तीन पीएचडी भी कर चुके हैं।
नरसिंहपुर के कलैक्टर रहे मनीष सिंह का मानना था कि आईएएस की तैयारी कर रहे छात्रों को परीक्षा देने से पहले इस गांव को आकर देखना चाहिए, उनकी इस टिप्पणी के बाद विद्यार्थियों के कई बैच गांव देखने आ चुके हैं।