“एक बक्त होता था जब कहीं encounter होता था तो चार- चार पाँच- पाँच गाँव लोग छोड़ कर चले जाते थे आज एनकाउंटर होता है चार –चार पाँच- पाँच गांब से लोग आ के पत्थर मारते हैं!” महबूबा मुफ़्ती
यहाँ एक ओर भारत सरकार और दूसरे नेता यह कहते हैं कि कश्मीर घाटी ( जम्मू कश्मीर में ) में सिर्फ २-3% लोग ही हैं जो आज भारत पर प्रश्न खड़े करते हैं , भारतीय सेना पर पत्थर मारने वाले साधारण शरारती ‘बच्चे’ होते हैं तथा हर बात के लिए पाकिस्तान को ही दोषी ठहराते है, वहीँ दूसरी ओर राज्य की मुख्य मंत्री महबूबा मुफ़्ती जी ने राज्य की विधान सभा को यह वताएया है कि “एक बक्त होता था जब कहीं encounter होता था तो चार- चार पाँच- पाँच गाँव लोग छोड़ कर चले जाते थे , आज एनकाउंटर होता है चार –चार पाँच- पाँच गांब से लोग आ के पत्थर मारते हैं ” !
२०१४ में लोक सभा के चुनाब होने की करीब ४ साल वाद २ फरबरी २०१८ के दिन जम्मू कश्मीर की मुख्य मंत्री महबूबा मुफ़्ती जी ने विधान सभा में कहा है < “मैंने कई बार वताने की कोशिश की, सेल्फ रूल कोई आउट साइड indian constitution नहीं है , उस की खूबसूरती तो यही है , जो सेल्फ रूल है यह जम्मू कश्मीर को पूरी दुनियाँ के सामने खोल देता है यह दोनों कश्मीरों को मिलाता है पर कहीं भी हमारे मुल्क की constitution से comropmise नहीं होती, , sovreignity compromise नहीं होती,…. हमारे constitution में.. इंडियन constitution में इतनी flexibility है कि हम जम्मू कश्मीर की aspirations को पूरी तरह से उस में डाल सकते हैं और हमें कुछ भी नहीं करना होगा , कहीं भी coma fullstop कोई भी change करने की जरूरत नहीं पड़े गी … working groups पे हम सब का consensus hai है, उस में बीजेपी – पीडीपी –NC- पंथेर्स – गुज्जर लीडर्स – बकरवाल- पहाड़ी लीडर्स – कश्मीरी पंडित – सब ने दस्तखत किए है !. “एक बक्त होता था जब कहीं encounter होता था तो चार- चार पाँच- पाँच गाँव लोग छोड़ कर चले जाते थे आज एनकाउंटर होता है चार –चार पाँच- पाँच गांब से लोग आ के पत्थर मारते हैं!” > महबूबा जी ने जिस तरह से भारत के जम्मू कश्मीर राज्य की कश्मीर- घाटी की स्थिति को व्यान किया है उस से साफ़ जाहिर होता है कि कश्मीर घाटी में आज के दिन हो रही घटनाओं को हलके से नहीं लिया जा सकता है ! यह बातें महबूबा जी ने किसी आम जन सभा में नहीं कहीं है बल्कि उन्हों ने यह विधान सभा में कहा है और वो भी उस समय जब २७ जनबरी २०१८ के दिन शुपियाँ में सेना पर हमला होने के वाद गोली चलने से 3 स्थानीय युवकों की मृत्यु के पुलिस द्वारा भारतीय सेना के खिलाफ लिखी गई ऍफ़आईआर पर विवाद उग्र रूप ले चुका था !
१ मार्च २०१५ को जब मुफ़्ती मोहमद जी ने बीजेपी के साथ मिल कर सत्ता की डोर पकड़ी थी तो आशा बंधी थी कि अब इस राज्य को शांति और स्थिरता के मार्ग पर ले जाने के प्रयासों को एक नई दिशा मिलेगी, पर करीब 3 साल बाद जब २ फरबरी को महबूबा जी ने विधान सभा को यह वताएया कि “एक बक्त होता था जब कहीं encounter होता था तो चार- चार पाँच- पाँच गाँव लोग छोड़ कर चले जाते थे , आज एनकाउंटर होता है चार –चार पाँच- पाँच गांब से लोग आ के पत्थर मारते हैं ” तो भारत सरकार तो क्या एक साधारण समझ वाले व्यक्ति के लिए भी चिंता की स्थिति होनी चाहिए थी ?
लेकिन फिर भी सेना पर आक्रमण करने वालों और सेना का अपमान करने बालों को साधारण उपद्रवी कह कर और कश्मीर घाटी के सामान्य निवासी के मन को ७ दशक वाद भी जीतने की वात कर के क्या भारत के नेता अपनी कमजोरियों पर परदा डालने की कोशिश करते नहीं दिखते ?
२ फरबरी को जम्मू कश्मीर मुख्य मंत्री महबूबा जी ने विधान सभा को वताएया कि “एक बक्त होता था जब कहीं encounter होता था तो चार- चार पाँच- पाँच गाँव लोग छोड़ कर चले जाते थे , आज एनकाउंटर होता है चार –चार पाँच- पाँच गांब से लोग आ के पत्थर मारते हैं ”
यहाँ तक पीडीपी के सेल्फ रूल प्रस्ताबों की बात है उन के वारे में विस्तार से वात करने के बजाए यहाँ पर सिर्फ जम्मू कश्मीर सेल्फ रूल २००८ में लिखी गई धारा 58 से ही सेल्फ रूल के वारे में काफी कुछ समझा जा सकता है जिस में कहा गया कि “ सेल्फ रूल जो है वह भारत राष्ट्र से ( जम्मू कश्मीर के लिए) अटोनोमी (स्वायतता ) की बात करता है; जब कि अटोनोमी ( नेशनल कांफ्रेंस के विचार से ) जम्मू कश्मीर सरकार ( राज्य सरकार) के लिए भारत सरकार (केन्द्र सरकार) से स्वायतता की वात करती है” ! ऐसे ही धारा – 59 में कहा गया है कि : “ Autonomy जम्मू कश्मीर सरकार के भारत सरकार के संधर्व में सशक्तिकर्ण की वात करती है जब कि सेल्फ रूल जम्मू कश्मीर के लोगों के भारत राष्ट्र के संधर्व में सशक्तिकरण की बात करता हैं !” “ऐसे ही धारा ६० कहती है कि autonomy में किसी प्रकार से सीमायों (भोगोलिक) का अंश नहीं होता जब कि सेल्फ रूल में भौगोलिक सीमाओं का अंश है!” इस लिये महबूबा मुफ़्ती जी का विधान सभा में यह कहना कि उन्हों ने कई कई बार वताने की कोशिश की, सेल्फ रूल कोई आउट साइड indian constitution नहीं है , कहीं भी हमारे मुल्क की constitution से comropmise नहीं होती, sovreignity compromise नहीं होती, क्यों कि जो बातें वे कहते हैं सेल्फ रूल में है उस से जम्मू कश्मीर की aspirations को पूरी तरह से संबिधान में डाल सकते हैं और हमें कुछ भी नहीं करना होगा , कहीं भी coma – fullstop कोई भी change करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, यहाँ तक के जम्मू कश्मीर की empowerment की बात है या जम्मू कश्मीर के सेल्फ रूल की बात वह करते हैं , कहाँ तक सही है इस पर भारत सरकार और बीजेपी के राष्ट्रिय नेत्रित्व को अपने विचार आम जन तक पहुँचाने की जरूरत पड़ जाती है नहीं तो प्रथिकतावादियों को भी अपनी वात कहने के अवसर मिल जाते हैं !
पर इस लेख को लिखने तक आज की केंद्र सरकार की ओर से इन सम्बेदंशील विषयों पर न तो कोई वक्तब्य दिया गया है और न ही केंद्र सरकार की ओर से मुख्यमंत्री को कोई दिशा निर्देश भेजा गया है!
ऐसे ही जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा जी ने विधान सभा में अनुच्छेद ३७० के बारे में समय समय पर जो विचार प्रक्ट किए है और यहाँ तक कहा है (३०-०१-२०१७) कि जो कोई भी अनुच्छेद ३७० को हटाने की बात करता है वह राष्ट्र विरोधी है ( जिस को बाद में विधान सभा की कारवाई के रिकॉर्ड से नीकाल दिया गया, पर मीडिया में रिपोर्ट हो चुका था ) !
यही नहीं ,मई २०१४ के वाद भी लगातार जम्मू कश्मीर वारे कई ऐसे विवाद पैदा होते आ रहे हैं जिन को कम से कम भारत सरकार ने संवेदनशीलता से लेना चाहिए था, पर अगर भारत के हित को देखा जाये तो नहीं लिया गया है ! यहाँ तक के डॉ. कारण सिंह जी जैसे शीर्ष एवं बरिष्ठ नेता ने १० अगस्त २०१६ के दिन राज्य सभा में कहा था कि १९४७ में महाराजा हरी सिंह जी ने अधिमिलन पत्र पर २७ अक्टूबर को दस्तखत किए थे ( जब कि सरकारी स्तर पर भारत सरकार २६ अक्टूबर की तिथि बताती है ). इतना ही नहीं उन्हों ने यह भी कहा कि जम्मू कश्मीर रियासत का भारत के साथ १९४७ में अधिमिलन (accession) होने के बाद कोई मर्जर डॉक्यूमेंट न तब लिखा गया था और न अभी तक लिखा गया है जब की बाकि रियासतों ने अधिमिलन के बाद ऐसा किया था ! ऐसी महत्वपूर्ण वातों पर भी भारत सरकार की ओर से अभी तक कोई टिप्पणी नहीं हुई है ! जब कि जब उमर अब्दुल्लाह ने मुख्य मंत्री रहते हुए २०१० में मर्जर की वात की थी तो बहुत हो –हल्ला हुआ था ! अधिमिलन की तिथि पर अभी तक भारत सरकार ने कर्णसिंह जी द्वारा वताई तिथि (२७-१०-१९४७) को नाकारा नहीं है न ही मर्जेर वारे कोई शंका निवारण किया है !
ऐसी ही कुछ और भी बातें हैं जिन की ओर ‘कश्मीरी’ मुख्यधारा के कहे जाने वाले नेतृव पर प्रश्न करने से पहले सब को कुछ परे हट कर सोचना होगा ! सही समय पर शंकाओं का निवारण होना चाहिए, पर ऐसा न होने के कारण कई मिथ्याएं कश्मीर घाटी में आम जन के सामने सच्चाई वनती गई हैं और शायद यह भी एक कारण है जिस की बजह से महबूबा जी को २ फरबरी को कहना पड़ा कि एक बक्त होता था जब कहीं encounter होता था तो चार- चार पाँच- पाँच गाँव लोग छोड़ कर चले जाते थे, आज एनकाउंटर होता है चार –चार पाँच- पाँच गांब से लोग आ के पत्थर मारते हैं!
आज की केंद्र सरकार की भी आखिर क्या मजबूरी है , जम्मू कश्मीर राज्य के बारे में और ख़ास कर के कश्मीर घाटी के नेताओं के वारे में इस पर ठन्डे मन से विचार करना होगा क्यों की इस के विना निकट भविष्य में जम्मू कश्मीर राज्य ( खासकर कश्मीर घाटी में ) शांति एवं स्थिरता का वातावरण वनता नहीं दीखता !
( * दया सागर बरिष्ठ पत्रकार एवं जम्मू कश्मीर मामलों के अध्येता है)