नई दिल्ली, 10 जनवरी। “कलम खामोश क्यों” विषय पर आज विश्व पुस्तक मेले में परिचर्चा आयोजित की गयी। प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेले के चौथे दिन प्रेरणा मीडिया एवं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय साहित्य संगम में रखी गयी परिचर्चा में प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक श्री जे. नंद कुमार, वरिष्ठ टी.वी पत्रकार श्री चन्द्र प्रकाश, आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर, दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफ़ेसर प्रेरणा मल्होत्रा व दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता नीलू रंजन ने पाठकों से परिचर्चा की। इस अवसर पर लव जेहाद पर केन्द्रित कहानी संग्रह पर आधारित डॉ. वंदना गाँधी की पुस्तक ‘एक मुखौटा ऐसा भी’ का विमोचन किया गया, यह पुस्तक अर्चना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गयी है।
श्री जे. नंद कुमार ने इस विषय पर कहा कि ब्रेक इंडिया ब्रिगेड और मेक इंडिया ब्रिगेड का यह एक बहुत बड़ा युद्ध है। भारत के आगे बढ़ने से यहाँ के बहुत से लोग चिंतित हैं। भारतीय संस्कृति में प्रेम को पवित्र भाव माना गया हैं, किन्तु एक योजना के तहत हिन्दू लड़कियों के धर्मांतरण के उद्देश्य से देश तोड़ने के हथियार के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है तो इसका विरोध देश की एकता के लिए स्वाभाविक है। मीडिया में हिन्दू पीड़ित और मुस्लिम पीड़ितों के लिए अलग-अलग दृष्टि व होने वाली चर्चा पर उन्होंने चिंता प्रकट की। अख़लाक और जुनैद की हत्या में जिस तरह गलत तथ्य के साथ तथाकथित वामपंथी मीडिया ने महीने भर प्राइम टाइम पर चर्चा चलाकर हिन्दू संगठनों को कटघरे में खड़ा किया, उससे देश को तोड़ने का षड्यंत्र उजागर होता है, क्योंकि इन घटनाओं के वास्तविक कारण और थे। दूसरी और इसी तरह की घटना दिल्ली में डॉ. नारंग की हत्या की रूप में जब होती है, जिसमें मुस्लिम युवक शामिल होते हैं उसको सामान्य घटना मानकर, मीडिया में केवल कुछ घंटों का समय दिया जाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में दलित उत्पीड़न पर तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवी वर्ग के कई लेख व रिपोर्ट मीडिया में प्रसारित हो जाती हैं, किन्तु केरल में हो दलित उत्पीड़न, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के ही नेता महेंद्र कर्मा की उनके 92 परिवारजनों सहित हत्या,निर्भया जैसी घटित घटना पर यह मीडिया वर्ग खामोश रहता है। क्योंकि वहां उनकी विचारधारा की सरकार है और वहां हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को चर्चा में लाकर उनका विचार कमजोर पड़ता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता का आडम्बर इन घटनाओं को कलमबद्ध करने से उतरता है। इसलिए इनके निशाने पर हिंदुत्व रहता है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया की मार्क्सवाद, लेनिनवाद, माओवाद एक ही सिक्के के अलग अलग मूल्य हैं। मार्क्सवादी रुपये में 50 पैसे तो माओवादी 100 पैसे।
उन्होंने बताया कि राष्ट्र हित में जिनकी कलम खामोश है वह भारत के शत्रु हैं, हमें देश विरोध की किसी घटना पर खामोश नहीं रहना चाहिए, देश को एक रखने के लिए सबको अपनी कलम का उपयोग करना चाहिए। इससे पूर्व श्री प्रफुल्ल केतकर ने बताया कि हम राष्ट्र के बारे में सोचे बिना मानवतावादी नहीं हो सकते। ब्रिटिश काल से चली आ रही व्यवस्था के अंतर्गत कलम को षड्यंत्रपूर्वक खामोश रखा गया है.