साभार : न्यूज़ भारती हिंदी
15 मार्च, 2015 को अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सी ‘‘इन्टेल सेन्टर‘‘ द्वारा प्रकाशित कन्ट्री थ्रेट इन्डेक्स (CTI) प्रकाशित की गई, जिसमें विश्व के सबसे ज्यादा खतरनाक 10मुल्कों में सबसे ऊपर इराक फिर सीरिया, इसके बाद नाइजीरिया, सोमालिया, अफगानिस्तान, लीबिया, यमन, पाकिस्तान, यूक्रेन एवं मिस्र का समावेश है। इस प्रकार विश्व के सबसे 10 खतरनाक देशों में 9 मुस्लिम देश हैं
ब्रिटिश ब्रॉडकॉस्टिंग कम्पनीज् के द्वारा प्रकाशित आकड़ों के अनुसार :-
इराक : 2003Operation Desert Stormसंयुक्त राष्ट्र संघ, अमेरिका नाटो एवं मित्र राष्ट्रों की फौजों ने यूएनओ द्वारा पारित प्रस्ताव की आड़ में…2003 से इराक के खिलाफ सैनिक कार्यवाही शुरु की। तब से लेकर अबतक अधिकृत अनुमान ¼Body Count½ के आधार पर 2 लाख 21 हजार से अधिक सैनिक/अर्द्धसैनिक मारे जा चुके हैं। केवल प्रथम तीन सप्ताह तक केवल हवाई हमले करके बगदाद और बड़े शहरों में स्थित सरकारी infra structure और सैनिक अड्डों तथा संचार व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया गया। प्रथम सप्ताह 24 घण्टों में एक हजार से अधिक हवाई हमले किए गए। मित्र राष्ट्रों के अत्याधुनिक विमान B-1, B-2, F-16, C-130 Hercules संसार का सबसे बड़ा परिवहन विमान) को गनशिप बनाकर बमबारी की गई। इसके अतिरिक्त नौसैनिक जहाजों से टॉम क्रूज आदि मिसाइलों से इराक को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया गया। इसके पश्चात् थलसेना ने अपनी कार्यवाही शुरू की और इराक को अपने पूर्ण नियंत्रण में ले लिया। अमेरिकी प्रतिरोधक मिसाइल पैट्रियाट ने इराकी स्कड मिसाइल को मार गिराया। पैट्रियाट मिसाइल ने युद्ध का नक्श ही बदलकर रख दिया। तानाशाह सद्दाम हुसैन भूमिगत हो गया। इराक में अमेरिकी समर्थक शासन कायम हुआ। दिसम्बर 2003 में सद्दाम हुसैन पकड़ा गया। उस पर कानून के अन्तर्गत मुकदमा चला और उसे 2006 में फांसी पर लटका दिया गया।
परन्तु इराक में शांति कभी बहाल न हो सकी, क्योंकि शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच गृहयुद्ध शुरू हो गया। बहुसंख्यक शिया सत्ता में रहे तथा सद्दाम समर्थक सुन्नी और पूर्व फौजी सिपाहियों और अफसरों ने एक उग्रवादी संगठन ISIS बना लिया।
अमेरिका ने सन् 2011 में अपने सैनिक इराक से वापिस बुला लिए, परन्तु अपने1300 हजार सैनिक सलाहकार सेना की मदद के लिए इराक में तैनात रखे। अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन की मौत 2 मई, 2011 को होने के बाद उसका एक ग्रुप-कमाण्डर आतंकवादी अबू बकर बगदादी ISIS सरगना बन गया। सद्दाम हुसैन की फौज के भगोड़े सुन्नी सैनिकों एवं अधिकारियों के समर्थन से उसने जिहाद के नाम पर इकट्ठा किया और इस संगठन का नाम ISIL और बाद में ISIS रखा गया, उसने जिहाद के नाम पर एक लाख की फौज तैयार कर ली जिसमें लगभग 40 से 50 टैंक एवं मिग-21 एवं 23 विमान ड्रोन भी थे।
इस बीच ISIS ने सीरिया में अपनी गतिविधियां शुरु करते हुए वहां के राष्ट्रपति असद का तख्ता पलटने की मुहिम शुरू कर दी। अमेरिकी सेना के इराक छोड़ने के बाद ISISके फिदायीन इराक में भी घुस आए और बगदाद के आसपास के शहर मौसूल और तिरकित आदि पर कब्जा कर लिया। इस संगठन ने सीरिया में अपनी पहली कार्यवाही राष्ट्रपति असद को अपदस्थ करने की शुरू की। इसके पश्चात् ये उत्तरी इराक में मौसम, तिरकित और बिज्जी सहित कई शहरों पर कब्जा कर लिया और लूटपाट शुरु कर दी,कुछ तेल कुंओं पर भी कब्जा कर लिया और तेल की कालाबाजारी भी शुरू कर दी। यजीदी कौम और कुर्द कबाईलियों के विरुद्ध भी इस संगठन ने रक्तपात शुरू कर दिया। यजीदी औरतों को सरेआम नीलाम किया गया। मौसूल बांध पर भी कब्जा कर लिया।
अबू बकर अल बगदादी ने स्वयं को खलीफा घोषित करते हुए अपने साम्राज्य की सीमाएं चीन से लेकर अफ्रीकी देशों तक (जहां कभी मुस्लिम बादशाहों की हुकूमत रही),अपना साम्राज्य घोषित कर दिया है और अपने संगठन का नाम इस्लामिक स्टेट ISरख लिया है।
अमेरिका और मित्र राष्ट्रों ने अपनी सेना की इराक से वापसी के बाद दोबारा सेना नहीं भेजने का निर्णय लिया, परन्तु इराक की शिया सरकार को समर्थन देते हुए हवाई सेना को IS के विरुद्ध कार्यवाही करने का आदेश दे दिया। इसके फलस्वरूप अमेरिकी,ब्रिटेन और फ्रांस आदि मित्र राष्ट्रों के लड़ाकू विमान उग्रवादियों के खिलाफ भयंकर बमबारी कर रहे हैं। इराक में अबतक 75 प्रतिशत से अधिक घर तबाह हो चुके हैं,उद्योग नष्ट हो चुके हैं, 11 मिलियन इराकी नागरिक शरणार्थी हो चुके हैं।
4 अप्रैल, 2015 को अमेरिकी तथा मित्र राष्ट्रों की वायुसेना की बमबारी से ध्वस्त तिरकित, जो कि पिछले 10 महीनों से ISIS के कब्जे में था, उस पर इराकी फौज और शिया मलेशिया ने दोबारा कब्जा कर लिया। सूत्रों के अनुसार शिया मलेशिया में 400 दुकानें और 500 मकानों में लूटपाट करने के बाद आग लगा दी। तिरकित (सद्दाम हुसैन का जन्म स्थान) को IS से मुक्त करवाने के बाद इराकी सैनिकों को 10कब्रों में 1700 इराकी सैनिकों की लाशें मिली जिनमें से कुछ के हाथ पिछे बंधे हुए थे यह शिया इराकी सैनिक IS की बर्बरता का शिकार हुए।
अमेरिकी, ब्रिटिश, फ्रांस एवं जापान के रिपोर्टर की बेरहम हत्या और उनके वीडियो वायरल होने से पूरी दुनिया IS के खिलाफ नफरत की आग में जल रही है। IS का आय स्रोत लूटपाट, अपहरण, फिरोती और तेल कुओं पर कब्जा करके तेल को ब्लेक मार्केट में बेचकर पैसा कमाना है।
अमेरिका तथा मित्र राष्ट्रों की वायुशक्ति के सामने IS बेबस हो जाता है। इराक में यह युद्ध गृहयुद्ध का रूप ले चुका है, जबकि इराक और ईरान युद्ध (1980-1988) दोनों ओर के लगभग 6 लाख सैनिक और 50 हजार से अधिक नागरिक पहले ही काम आ चुके हैं।
सीरिया : राष्ट्रपति असद को हटाने के लिए जारी मुहिम और अल कायदा की ही शाखाISIS के अलावा अल नुसरा, अल सुन्ना, मेंहदी आर्मी, असाहिब अल्ला हक आदि के लगभग 1,000 छोटे-बड़े उग्रवादी संगठन मैदान में आ चुके हैं, जिनके पास लगभग 1.25 लाख लड़ाके मौजूद हैं। अभी तक रिपोर्ट के अनुसार सीरिया में पिछले4 साल में 2011 से 2014 में 2 लाख, 20 हजार सैनिक/असैनिक मारे जा चुके हैं और 11 मिलियन नागरिकों ने अन्य देशों में शरण ली है। लगभग 12मिलियन शरणार्थी पास के देश टर्की, जॉर्डन, अमान और सऊदी अरब में शरण लेने को मजबूर हो गए हैं। उग्रवादियों ने राजधारी दमिश्क के उत्तर-पश्चिम इलाके में शेख मसूद, खान अल असद और चौटा आदि कस्वों में क्लोरीन एवं नर्व गैस से जनवरी2014 में लगभग 1500 व्यक्तियों को और 426 बच्चों को मौत के घाट उतार दिया था। वर्तमान में लगभग 70 प्रतिशत भूभाग पर IS का नियंत्रण है।
6 अप्रैल, 2015 को IS ने दमिश्क से लगभग 10 किमी दूर स्थित 18000हजार फीलीस्तीन शरणार्थियों के केम्प पर कब्जा कर लिया है। यहां पर हालात नरक से बद्तर हो चुके हैं, पिछले 7 दिनों में 100 से ज्यादा व्यक्ति भूख से मर चुके हैं। इसलिए सीरिया की स्थिति बहुत नाजुक हो गई है। वहां हर क्षण मौत का खेल जारी है।
यमन : संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के अनुसार सह-सहमति से बनी अन्तरिम सरकार के ग्रुप शिया उग्रवादी ग्रुप हाउती ने राजधानी सना सहित उत्तरी यमन के लगभग सभी शहरों पर कब्जा कर लिया, तथा पूर्व राष्ट्रपति सालेह के समर्थक कबीलों की सहायता से राष्ट्रपति हादी को अपदस्थ कर दिया। यमन के राष्ट्रपति अब्द मंसूर हादी ने दक्षिण यमन के शहर अदन में शरण ली और सऊदी अरब से मदद की गुहार की। सऊदी अरब ने यमन के राष्ट्रपति हादी की प्रार्थना पर 100 अत्याधुनिक विमान और 1.5 लाख सैनिकों को हाउदी शिया उग्रवादियों के विरुद्ध मैदान में उतार दिया। सऊदी अरब के साथ 10मुस्लिम देश जिनमें अरब अमीरात, जोडर्न, मिस्र और पाकिस्तान भी शामिल है। हाउदी उग्रवादियों के खिलाफ मदद के लिए मैदान में आ गए हैं। गत 12 दिनों से सऊदी अरब प्रतिदिन लगभग यमन पर शिया हाउदी उग्रवादी के विरुद्ध बमबारी कर रहा है अदन के उत्तर स्थित में धालिया कस्बा पर हाउदी उग्रवादियों के ठिकानों पर सऊदी अरब के F.16 विमानों में बमबारी की तथा अदन के मध्य में छाताधारी सैनिक उतार दिए हैं। यमन में अब तक लगभग 900 से अधिक व्यक्ति मारे जा चुके हैं, हताहतों की संख्या ज्ञात नहीं हुई है, अदन के निवासी जिबूति में शरण लेने के बाध्य है परन्तुHuman Right Commission ने लड़ाई रोकने की अपील की है।
5 अप्रैल,2015 कोअदन के राष्ट्रपति भवन पर शिया हाउदी विद्रोहियों ने कब्जे का दावा किया है। अदन की गलियों में लड़ाई चल रही है। वहां मशीनगन और छोटे हथियारों से हर घर में लड़ाई हो रही है। ‘अदन’ संसार का सबसे अधिक संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण बंदरगाह है, क्योंकि संसार का अधिकांश जल-परिवहन अदन और स्वेज नहर से होकर ही होता है।
वास्तव में यमन युद्ध सऊदी अरब की सुन्नी समर्थक सरकार एवं ईरान की शिया समर्थक सरकार का परोक्ष युद्ध है, जिसका अन्त नजर नहीं आता है। अमेरिका सऊदी अरब के समर्थन में आ चुका है और सऊदी वायुसेना को हवा में ईंधन (refueling in mid air) भरने की सुविधा भी दे रहा है।
नाइजीरिया-सोमालिया : अधिकृत रिपोर्ट के अनुसार नाइजीरिया में बोको हराम (पश्चिमी शिक्षा हराम है) मुस्लिम उग्रवादी संगठन जिसमें 14 अप्रैल, 2014 को सरकारी सैकेण्डरी गर्ल्स स्कूल पर हमला करके 243 लड़कियों को बन्दी बनाकर सम्बीसा जंगल ले गए। ये लड़कियां अबतक अपने घर नहीं लौटी हैं। अबूजा शहर में बम ब्लास्ट करके 90 व्यक्तियों को मौत के घाट उतारा और 200 घायल हुए। 1 मई,2014 को 19 व्यक्ति कार ब्लास्ट में मारे। सन् 2014 में बोको हराम की कार्यवाही में मरनेवालों की संख्या 75 हजार तक पहुंच गई। सोमालिया में उग्रवादी संगठन‘अल- शबाब‘ ने 2014 में चीनी इंजीनियर को बंधक बनाकर उग्रवादी कार्यवाही शुरू की, महासागर से गुजरनेवाले व्यापारी जहाजों का अपहरण करके अकूत सम्पत्ति अर्जित की। अल शवाब का नेता अहमद अब्द गामी, अमेरिकी हवाई हमलों में मारा गया। अब इस संगठन का कोई एक नेता नहीं है। इस उग्रवादी संगठन ने 4 अप्रैल,2015 को अल शबाब के 4 उग्रवादियों ने कीनिया में स्थित ग्रासिया यूर्निवसिटी में हमला करके 147 विद्यार्थियों की हत्या कर दी। हत्या से पहले मुस्लिम विद्यार्थियों को अलग किया गया और केवल ईसाई विद्यार्थियों को मौत के घाट उतारा गया।
कीनिया में रहनेवाले मुसलमान इस समय स्वयं को असहाय एवं असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इस हत्याकाण्ड से पूरा ईसाई जगत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत की आग फैल गई है।
अफगानिस्तान : 1979 में रूस की फौज के आधिपत्य से शुरू जंग अबतक जारी है।1979 से 1988 तक रूस से संघर्ष में लगभग 14.5 हजार रूसी सैनिक, 18 हजार अफगानी सैनिक, 2.5 लाख अफगान उग्रवादी लड़ाके और 50 हजार से अधिक नागरिक मारे गए, लगभग 20 लाख अफगानी शरणार्थियों ने आसपास के देशों में शरण ली।
9 सितम्बर, 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर न्यूयार्क पर हुए हमले के बाद अमेरिकी मित्र राष्ट्रों द्वारा 2001 से 2014 तक अफगानिस्तान में उग्रवादियों के खिलाफ की गई कार्यवाही में 2 लाख, 70 हजार उग्रवादी और लगभग 60 हजार सैनिक मारे गए। दिसम्बर, 2014 में अमेरिकी फौजों की वापसी के बाद भी ड्रोन हमले जारी हैं और पाकिस्तान की फौज और वायुसेना उग्रवादियों के विरुद्ध मैदान में उतर आई है। वर्तमान में भी लड़ाई जारी है। इस देश में 20 से अधिक उग्रवादी संगठन सक्रीय है जिनमें मुख्य तहरीके-ए-तालिबान ए पाकिस्तान है। इन उग्रवादी संगठनों का मुख्य आयस्रोत अफीम के खेत, हिरोईन, चरस, अवैधानिक खनन एवं किराये पर लड़ाकेMarcenariesउपलब्ध करवाना है।
पाकिस्तान : पाकिस्तान में न्याय व कानून का साम्राज्य समाप्त हो चुका है। वहां पर बिलोच, ब्लूचिस्तान के लिए, पख्तून पख्तूनिस्तान के लिए, सिंधी सिंध के लिए और पंजाबी पंजाब के लिए उग्रवादी युद्ध चलाए हुए हैं। राजनीतिक तौर पर इमरान खान और मौलाना ताहिर इस्लामाबाद में संसद का घेराव करते हैं।
तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने 17 दिसम्बर, 2014 को पेशावर की आर्मी स्कूल में137 विद्यार्थियों को लाईन में खड़ा करके गोली मार दी। कराची एयरपोर्ट पर हाजियों की हत्या कर दी गई। वाघा बॉर्डर पर आत्मघाती हमलावरों ने लगभग 60 आदमियों को बम से उड़ा दिया। इस तरह पाकिस्तान धीमे-धीमे गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है।अमेरिका में पाकिस्तान को उग्रवादियों से लड़ने के लिए 1 बिलियन डॉलर के हथियार उपलब्ध करवाए हैं।
अमेरिका एवं भारत सहित संसार की महाशक्तियों को पाकिस्तान के परमाणु बमों के बारे में सदा आशंका बनी रहती है। यदि यह आतंकवादी/उग्रवादी संगठनों के हाथ पड़ गए तो संसार की शांति समाप्त हो सकती है, क्योंकि पाकिस्तान का अणु बम ‘इस्लामिक बम‘ है।
यूक्रेन : रूसी फौजों के समर्थन से जारी उग्रवाद से यूक्रेन में भारी रक्तपात हो चुका है। यूक्रेन का 1/4 हिस्सा रूसी आधिपत्य में चला गया है। अमेरिका तथा पश्चिमी देश यूक्रेन के पक्ष में आ गए हैं और भारी हथियारों की सप्लाई भेज रहे हैं। रूस पर पाबंदियां लगा दी गई हैं। दोनों ओर की सेनाएं अपने भारी हथियारों के साथ युद्ध के मैदान में मौजूद हैं। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव से युद्ध विराम लागू है।
मिस्र : पूर्व राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक की सत्ता पलट के बाद उन पर हिरासत में मुकदमा चल रहा है। इस्लामिक ब्रॉदरहुड पार्टी बगावत पर उतर आई है। 5 अप्रैल, 2015 को सिनाई रेगिस्तान में मिस्र की फौजों से युद्ध में 90 उग्रवादी मारे गए हैं। इस तरह मिस्र कोई सुरक्षित स्थान नहीं है।
लीबिया : 1969 में शहंशाह इदरीस का तख्ता पलटने के बाद कर्नल मोमार गद्दाफी ने2011 तक इस धनवान देश पर राज किया। सन् 2011 में भड़के जन-आन्दोलन के बाद नाटो देशों के हवाई हमले और अन्तर्राष्ट्रीय अदालत के द्वारा वारंट जारी होने पर गद्दाफी को राजधानी त्रिपोली से भागना पड़ा, परन्तु पकड़ा गया और विद्रोहियों ने उसे सड़क पर ट्रक से उतार कर गोली मार दी। तब से अबतक इस देश में गृह युद्ध चल रहा है और इस्लामिक स्टेट के साथ 4 उग्रवादी संगठन इस देश के अलग अलग हिस्सों पर राज कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार सन् 2011 से अबतक 1 लाख से अधिक व्यक्ति गृह युद्ध में अपनी जान गंवा चुके हैं। 3 लाख घायल हुए है और लगभग 5 लाख शरणार्थियों ने अन्य देशों में शरण ली है। इस गृहयुद्ध में ट्रकी और सउदी अरब के साथ-साथ अन्य देश भी अपरोक्ष रूप से अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
उपरोक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि मुसलमान आपस में ही बदला एवं प्रतिशोध की आग में जल रहे हैं और मुसलमान ही मुसलमान का खून बहा रहा है।
आश्चर्य की बात यह है कि इराक ने शिया सरकार को अमेरिका का पूरा समर्थन प्राप्त है। इराक में अमेरिका सुन्नी IS का जानी दुश्मन है, परन्तु यमन व राष्ट्रपति हादी का समर्थक होकर उग्रवादी शिया हूती संगठन के विरुद्ध मैदान में उतर आया है और सुन्नी समर्थक सऊदी अरब का शत-प्रतिशत समर्थन कर रहा है।
गाजा : सन् 2014 हमास के सत्ता में आने के बाद, इजराइल की मुख्य भूमि तक अण्डर ग्राउण्ड सुरंगें बनाई गईं। रमजान माह में 3 इजराइली युवकों की हत्या से भड़की जंग में 2300 फिलिस्तिनी मारे गए, 10,000 से अधिक हताहत हुए 60प्रतिशत घर क्षतिग्रस्त हुए, इसमें लगभग 20 लाख गाजा के निवासी शरणार्थी हो गए। इसके विपरित इजराइल के 60 सैनिक और 7 नागरिक मारे गए। इजराइल ने 24घण्टों में गाजा पर 100 से अधिक हवाई हमले किए। इसके पश्चात् जमीनी कार्यवाही में गाजा के सभी घरों और धार्मिक स्थानों की तलाशी लेकर हमास के मुख्या व कार्यकर्ताओं को मार डाला गया। इस इजराइल की एक तरफा कार्यवाही के विरूद्ध कोई भी इस्लामिक स्टेट, अलकायदा, अल नुसरा, अल अन्सार या तेहरीक ए तालिबान, वोको हराम या अलशवाब का एक भी तथाकथित जिहादी मुकाबले के लिए नहीं आया। इस तरह तथाकथित जिहाद की सच्चाई दुनिया के सामने आ चुकी है कि यह वास्तव में स्वार्थ की लड़ाई है जो शक्तिशाली देशों के इशारों पर लड़ी जा रही है।
उपरोक्त सभी तथ्यों एवं आंकड़ों की गणित से साफ है कि अलकायदा व अन्य उग्रवादी संगठनों की कार्यवाही शुरू होने के बाद से अब तक 20 लाख से अधिक मुसलमान सीधी लड़ाई में मारे जा चुके हैं, 45 लाख से 50 लाख जख्मी हुए हैं तथा 2 करोड़ से अधिक मुसलमान शरणार्थी हो गए हैं। इसके साथ तेल सम्पन्न इराक, शिरिया, यमन, लीबिया, अलजीरिया और लेबनान Stone Age के कगार पर पहुंच गए हैं जबकि अफगानिस्तान व नॉर्थ-वेस्ट पाकिस्तान Stone Age में पहले ही पहुंच चुका है।
धनवान और समृद्ध एवं तेल सम्पन्न मध्य एशिया के इन देशों में तबाही और बर्बादी और अधिक बढ़ने की सम्भावना बनी हुई है। वर्तमान लड़ाई के अन्त का कोई कारण नजर भी नहीं आता है। आज ईसाई, यहूदी, बौद्ध एवं अन्य कौम मुसलमान के विरूद्ध हो गए हैं। इस हकीकत के बीच भारत की 125 करोड़ आबादी के बीच हिन्दुस्तान का 18 करोड़ मुसलमान (दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादीं में से एक) अमन और अमान के साथ चैन से अपनी जिन्दगी गुजार रहा है।
मुसलमान को यह सोचना और समझना चाहिए कि अल्लाह के बाद वो कौनसी ताकत है जो मुसलमान को सुरक्षित रखे हुए हैं। आजादी के बाद मुसलमान को एक वोट बैंक की शकल दे दी, और उसका सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल किया गया, उसे भगवा रंग से डराया गया। आजादी के बाद 22 हजार से अधिक दंगों का इल्जाम उस समय के सत्तासीन पार्टी ने भगवा रंग पर मढ़ने की हर सम्भव कोशिश की, परन्तु हिन्दुस्तान का मुसलमान अपने ईमान और देशभक्ति पर कायम रहा पिछले आम चुनाव में मुसलमान ने वोट बैंक का भ्रम भी तोड़ दिया और देश की मुख्यधारा में जुड़ गया है।
हिन्दुस्तान के मुसलमान को अपने ईमान और गरीब नवाज पर पूरा भरोसा है। गरीब नवाज जिन्होंने हिन्दुस्तान में आने के बाद भगवा रंग धारण कर लिया था और अपने पूरे जीवन में भगवा रंग के ही कपड़े पहने। इसका सबूत यह है कि आज भी दरगाह दीवान भगवा कपड़े ही पहनता है और अजमेर की दरगाह शरीफ में केवल मीठे चावल का ही लंगर बनता है। इसके अतिरिक्त हजरत मोहम्मद (स.अ.) का फरमान कि मुझे पूरब दिशा से सकून भरी ठंडी हवाएं आती हैं। और यह भी फरमाया कि मैं हिन्दुस्तान में नहीं, वरन हिन्दुस्तान मुझमें है। इसलिए हिन्दुस्तान का मुसलमान अपने मादर-ए-वतन से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है और ईमान के साथ शांति से अपनी जिन्दगी गुजार रहा है।
आमीन
– लेखक साम्प्रदायिक सदभावना तथा आतंक एवं हिंसा विरोधी संस्था के अध्यक्ष हैं।