राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि / पुण्य तिथि – 25 अगस्त 2007

भारत तथा विश्व के 130 देशों में अपनी हजारों शाखाओं एवं संस्थाओं के माध्यम से कार्यरत प्रजापिता ब्रह्मकुमारी विश्वविद्यालय एक आध्यात्मिक संस्था है। इसकी विशेषता यह है कि इसके सारे प्रमुख सूत्र महिलाओं के हाथ में रहते हैं। इस नाते यह नारी शक्ति के जागरण एवं उनकी प्रशासकीय कुशलता के प्रकटीकरण का एक महान आध्यात्मिक आन्दोलन है।

इस संस्था की स्थापना सिन्ध हैदराबाद (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मे श्री लेखराज ने अक्तूबर, 1937 में की थी। ऐसा माना जाता है कि उन्हें शिव के स्वरूप में परमात्मा का साक्षात्कार हुआ था। भगवान शिव ने उन्हें सतयुग के आदर्शों पर चलने वाली नयी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने लेखराज जी को प्रजापिता ब्रह्मा कहा। लेखराज जी ने आध्यात्मिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए सर्वप्रथम ओम मण्डली बनायी। इसी क्रम में आगे चलकर ‘प्रजापिता ब्रह्मा ईश्वरीय विश्वविद्यालय’ की स्थापना हुई। सिन्धी भाषा में बड़े भाई को ‘दादा’ कहते है। अतः लेखराज जी सब ओर दादा के नाम से प्रसिद्ध हो गये।

दादा लेखराज का विचार था कि महिलाएँ जैसे घर का कुशल प्रबन्ध करती हैं, उसी प्रकार वे अन्य व्यवस्थाएँ भी कुशलतापूर्वक कर सकती हैं। अतः 1938 में उन्होंने आठ महिलाओं की प्रबन्ध समिति बनायी। उनमें से कुछ को उन्होंने दिल्ली, मुम्बई आदि भेजा, ताकि राजयोग और आध्यात्मिक केन्द्र विकसित किये जा सकें। 1947 तक 400 लोग इस संस्था से जुड़ चुके थे। देश के विभाजन के बाद दादा लेखराज राजस्थान में आबू पर्वत आ गये और फिर 1950 में यही संस्था का मुख्यालय बन गया।

1969 में दादा लेखराज का शरीरान्त हुआ। उससे पूर्व ही उन्होंने दादी प्रकाशमणि को अपना उत्तराधिकारी एवं संस्था का मुख्य प्रशासक नियुक्त कर दिया। 1954 में जब दादा लेखराज जी को जापान में हुए ‘विश्व धर्म सम्मेलन’ में भाग लेने के लिए निमन्त्रण मिला, तो उन्होंने अपने बदले दादी प्रकाशमणि को वहाँ भेजा। दादी ने गुण, विवेक और प्रतिभा के आधार पर आठ महिला न्यासी नियुक्त किये, जिनके माध्यम से प्रजापिता ब्रह्मकुमारी विश्वविद्यालय के अनेक नये केन्द्रों की स्थापना हुई।

दादी का अर्थ है बड़ी बहन। दादी प्रकाशमणि का जन्म भी 1922 में सिन्ध हैदराबाद में ही हुआ था। 14 वर्ष की अल्पायु में वे लेखराज जी के सम्पर्क में आयीं थीं। इसके बाद उन्हें अनेक दिव्य साक्षात्कार हुए, जिसमें उन्होंने ज्योति स्वरूप शिव एवं नयी दुनिया के दर्शन हुए। यद्यपि यह संगठन केवल महिलाओं का नहीं है; पर इसमें प्रशासकीय व्यवस्था महिलाओं के हाथ में ही रहती है। दादी ने संस्था के प्रचार-प्रसार के लिए थाइलैण्ड,  इण्डोनेशिया, हांगकांग, सिंगापुर, श्रीलंका आदि देशों का प्रवास किया।

दादी प्रकाशमणि की सामाजिक सेवाओं के लिए उन्हें अनेक मान-सम्मान प्राप्त हुए। आबू पर्वत पर स्थित इस संस्था के मुख्यालय का सुगन्धित एवं शान्त वातावरण, ध्यान करते लोगों का समूह अध्यात्मप्रेमियों को आकर्षित करता है। संस्था की इन सब गतिविधियों का विस्तार दादी के कुशल नेतृत्व में ही हुआ।

सेवा, शिक्षा, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य सुधार के अनेक प्रकल्प संस्था द्वारा चलाये जाते हैं। प्रेमभाव की देवी एवं कुशल प्रशासक दादी प्रकाशमणि का 25 अगस्त, 2007 को देहान्त हुआ।

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