नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री सूर्यकृष्ण जी का 13 मार्च रविवार दोपहर 12.30 बजे निधन हो गया. उन्होंने नेत्रदान व देहदान का संकल्प लिया था. जिसके अनुसार नेत्रदान तथा देहदान की प्रक्रिया को पूरा किया गया.
श्री सूर्यकृष्ण जी का जन्म 23 मई 1934 को मिंटगुमरी में हुआ था. उनके पिता श्री इंद्र नारायण जी सिंचाई विभाग में ओवरसियर के पद पर कार्यरत थे, माता श्रीमती विद्यावंती थीं. माध्यमिक शिक्षा ओकारा तथा इलैक्ट्रिकल डिप्लोमा नीलोखेड़ी स्थित संस्थान से हासिल किया, तथा पंजाब विश्वविद्यालय से प्रभाकर की परीक्षा उत्तीर्ण की.
वर्ष 1940 में मिंटगुमरी मे ही उन्होंने संघ की शाखा में जाना शुरू किया. वर्ष 1954 में सहारनपुर से संघ के प्रचारक निकले तथा वर्ष 1960 तक सहारनपुर में ही प्रचारक रहे, उसके बाद एटा व अन्य स्थानों पर प्रचारक रहे. इससे पूर्व वर्ष 1952 में गौहत्या विरोधी आंदोलन में संघर्ष किया. आपातकाल के दौरान वर्ष 1976 में रज्जू भैया जी (प्रो. राजेंद्र सिंह जी) की प्रेरणा से आपातकाल के विरुद्ध आंदोलन के लिये प्रमुख राजनीतिज्ञों, राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों से समन्वय स्थापित करने का कार्य सफलतापूर्वक संभाला.
आपातकाल के पश्चात राजनीति में पदार्पण हुआ. वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद घोषित जनता पार्टी के गठन के समय उत्तर प्रदेश इकाई के महामंत्री बनाए गए, जनता पार्टी के विघटन के पश्चात भारतीय जनता पार्टी के गठन पर उत्तर प्रदेश में ही भाजपा के महामंत्री बने व वर्ष 1984 तक पद पर रहे. इसके बाद हरियाणा भाजपा के संगठन मंत्री के पद पर भी रहे.
वर्ष 1994 में उन्हें साहित्य परिषद के संगठन मंत्री के रूप में जिम्मेवारी प्रदान की गई. साहित्य परिषद साहित्य सृजन को राष्ट्रीय चेतना एवं भारतीयता से पोषित करने के संकल्प के साथ कार्यरत है. सूर्यकृष्ण जी ने साहित्य आंदोलन को समाजोन्मुखी एवं संवेदनशील बनाने हेतु देशभर में लगातार प्रवास एवं साहित्यिक समन्वय का कार्य किया.31 दिसंबर 1987 में राजनीतिक क्षेत्र छोड़कर रामजन्म भूमि आंदोलन हेतु विश्व हिन्दू परिषद में प्रचार, संपर्क, समन्वय का कार्य संभाला. साम्प्रदायिकता शब्द को लेकर चल रही बहस के संदर्भ में देश में प्रमुख दार्शनिकों, पत्रकारों, विद्याविदों, अधिवक्ताओं, बुद्धिजीवियों को एक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. रामजन्म भूमि आंदोलन के दौरान सरकार द्वारा बातचीत शुरू किए जाने पर रामजन्म भूमि से संबंधित समस्त दस्तावेजों के संग्रह के लिए देश विदेश के इतिहासकारों, धार्मिक मामलों के विशेषज्ञों से समन्वय का कार्य किया, और पूरे दस्तावेज तैयार कर सरकार को सौंपे. हिन्दू मुस्लिम संगठनों के बीच हुई सभी वार्ताओं में प्रमुख भागीदार व समन्वयक रहे. बिहार में प्रवास कर रामजन्म भूमि आंदोलन को बल प्रदान किया. अयोध्या में शिला पूजन के दौरान कार सेवकों के बलिदान के पश्चात जन्मे तनाव को शांत करने हेतु तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से संवाद में भागीदारी निभाई.
वर्ष 1998 में अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के संगठन मंत्री बनने के बाद हिंदुत्व संबंधी सभी कानूनी मुद्दों, बाधाओं को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. संघ पर लगे प्रतिबंध, लिब्राहन कमीशन तथा रामसेतु संबंधी मामलों में को सफलतापूर्वक निपटाने की योजना
रविवार 12.30 बजे उनका निधन हो गया. उनके संकल्प के अनुसार नेत्रदान व देहदान किया गया. गुरू नानक नेत्र केंद्र ने नेत्रदान की प्रक्रिया को पूरा किया तथा उनकी देह वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज दिल्ली को प्रदान की गई. 16 मार्च को दिल्ली में ही श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाएगा.को कार्यरूप देने में मुख्य भागीदारी रही. सूर्यकृष्ण जी ने भारत की विधि प्रणाली को भारतमुखी, सस्ती, सरल, सुलभ बनाने हेतु चल रहे अधिवक्ताओं के आंदोलन को दिशा व मार्गदर्शन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सूर्यकृष्ण जी अधिवक्ता परिषद के मार्गदर्शक भी रहे.