विज्ञान के साथ अध्यात्म अनिवार्य होना चाहिए — डा. कृष्ण गोपाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल ने कहा कि विज्ञान के साथ अध्यात्म अनिवार्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अध्यात्म के बगैर विज्ञान विध्वंसकारी हो जायेगा। उन्होंने मालवीय स्मृति भवन में ‘जिज्ञासा’ द्वारा आयोजित ‘हिन्दुत्व’ विषय पर बोलते हुए कहा कि हिन्दुत्व जीवन के आचरण का विषय है। हिन्दुत्व को एक सीमा के अन्दर परिभाषित नहीं किया जा सकता। जिसकी सीमा नहीं जिसमें विराम नहीं रूका नहीं चलता है बहता है बहेगा आगे उसकी परिभाषा कैसे।

उन्होंने कहा कि किसी एक व्यक्ति ने यह शब्द और विचार दर्शन दिया ऐसा नहीं है। इसलिए जो लोग हिन्दुईज्म बोलते हैं वह तुलना करके बोलते हैं। जैसे इज्म बोलते है वह वाद हो जाता है। हिन्दुत्व के साथ कोई सीमा नहीं है इसलिए जो असीम है उसको सीमा में बांधना कठिन होता है। उदाहरण के लिए आकाश परमात्मा की परिभाषा करना कठिन है। क्रिश्चियन की सीमा है। हिन्दुत्व शुरू करने वाला कोई एक व्यक्ति नहीं है।

हजारों लोगों ने मिलकर अपने अपने विचार अपना चिंतन अपनी साधना इसको जब घनीभूत करके सामने रखा तो एक विचार दर्शन सामने आया। उस दर्शन से आगे अनेक विचार आगे बढ़े। उन विचारों को मनुष्य जब स्वीकार करता है अपने जीवन में लाता है उसके अनुरूप व्यवहार करता है तो एक विशेष प्रकार का व्यवहार करता है। उसी सोच के अनुसार जीवन में आचरण करने वाले व्यवहार को हिन्दुत्व कहते हैं।

तत्कालीन परिस्थितियों के कारण समाज अपने आप को हिन्दू कहने लगा
डा. कृष्ण गोपाल ने कहा कि तत्कालीन परिस्थितियों के कारण समाज अपने को हिन्दू कहने लगा।  उन्होंने कहा कि जब इस्लाम इस देश में आया। उसकी सोच थी सारी दुनिया में इस्लाम को फैलाना है। वह जहां गये वहां के लोगों को मतान्तरित किया। उनके सामने बौद्ध जैन वैदिक अवैदिक शैव बैष्णव शाक्त आजीवक नाथ पड़े छोटे बड़े समूह थे। इनको इस्लाम में बदलना इस्लाम मतावलम्बी अपना उद्देश्य मानते थे। यहां के लोग सोचने लगे हम कौन हैं। धीरे —धीरे इस्लाम के सामने यह बिखरा समाज एक मंच पर आने लगा। कबीर व गुरू नानक ने दो हिस्से किये समाज के। तुर्क और हिन्दू। तुर्क अधिक हिंसक क्रूर आक्रामक और विध्वंसकारक था। सबको लगने लगा हमारी एकता इसमें अधिक मजबू है। देखते —देखते कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिन्दू शब्द भयंकर रूप से प्रचलित हो गया।

उन्होंने कहा कि किसी एक व्यक्ति ने यह शब्द विचार दर्शन नहीं दिया। हजारों वर्षों से चला आ रहा दर्शन कुछ परिस्थितयों के कारण अपने को हिन्दू कहने लगा। इस देश के लोगों ने अपने लिए कोई नाम नहीं दिया था। वार्तालाप में आर्य शब्द का प्रयोग करते थे। एक सनातन दर्शन तो चला। इन्दू से हिन्दू बना। कुछ लोग सिन्धु को हिन्दू बोलते हैं लेकिन इसका भी इतिहास छठी शताब्दी तक ही मिलेगा लेकिन दसवीं हजार वर्षों से यह विचार चला। हिन्दू नाम आ गया यह भौगोलिक भी है। कालान्तर में यह शब्द बहुत प्रचलित हुआ।

सह सरकार्यवाह ने कहा कि भारत के ऋषि मुनियों की मेधा शक्ति ने साधना के बल पर चिंतन किया कि इस ब्राह्रांड को चलाने के लिए कोई न कोई पराशक्ति है। कोई न कोई ईश्वरीय सत्ता है। हमारे ऋषियों ने मानवीय शक्ति से ऊपर उठकर आध्याम्तिमक जगत की गहराईयों को अनुभव किया। उनको उस शक्ति का आभास हुआ। राम कृष्ण परमहंस दूसरे पर पड़ने वाली मार को अपनी पीठ पर सहते हैं। स्वामी विवेकानन्द ने भी अनुभव किया। भारत ने आध्यात्मिक साधना का अनुभव किया। दुनिया के लिए एक संदेश था इस भाव ने मनुष्य के अन्दर सदगुणों की वृद्धि की।

उन्होंने कहा कि अध्यात्म को अनुभव करना यही भारत की विशेषता है। कालान्तर में अनेक प्रकार की पूजा पद्वतियां इसकी परिधि में आने लगी। इसलिए भारत के अंदर पैदा हुआ कोई भी मत पंथ सम्प्रदाय इसके खिलाफ जा नहीं सकता। सभी अपने मत के विचार को इसी अनुरूप सिद्ध करेगा। सबके मंगल की कामना हमारे ऋषियों ने की। इस धरती का कोई विचार सर्वे भवन्तु इसके खिलाफ नहीं जा सकता और कोई भी मत  पंथ समप्रदाय रिलीजन इसका समर्थन भी नहीं कर सकता। क्योंकि ईसाई व इस्लाम को मानने वाले सर्वे भवन्तु सुखिन: को नहीं मान सकते।

उनके यहां भ्रम है हमारे यहां भ्रम नहीं है। हमने सारी सृष्टि की कल्पना की है। हमारे यहां रूचि प्रवृत्ति मानसिक स्थिति और परिस्थिति के अनुसार के कारण अपने—अपने देवता चुनने का अधिकार हमारे यहां हैं। हमारे यहां हर काल में आध्यात्मिक महापुरूष आये। भगवान बुद्ध आये महावीर आये शंकराचार्य और फिर रामानुज आये। इसके बाद कबीर तुलसीदास,विवेकानन्द  और महर्षि अरविन्द आये। सब उसी भाव को लेकर आगे बढ़े।

डा. कृष्ण गोपाल ने कहा कि हिन्दुत्व परिस्थिति के अनुसार मोर्चा लेता है कभी शांत दिखता है कभी तलवार लेकर आगे बढ़ता है जैसी परिस्थिति वैसा रूप धर लेता है। भारतीय कहने पर जो ध्यान में आयेगा वह हिन्दुत्व ही है।

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