मैसूर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन जी भागवत ने कहा कि विश्व कल्याण के लिये प्रकृति, संस्कृति और समाज का संरक्षण ही अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का लक्ष्य है. इस लक्ष्य को सभी ने स्वीकार किया है, और अपनाया भी है. पर, शायद विश्व को अभी अहसास नहीं हुआ है कि कल्याण के लिये इसके अतिरक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है. विश्व में विभिन्न तत्व शामिल है, समस्त एक दूसरे के साथ संबंधित हैं. हमारी पुरातन संस्कृति ने हमें यह ज्ञान दिया है, और आधुनिक विज्ञान ने भी इसे सिद्ध किया है.
भागवत जी मैसूर में आयोजित पांचवें इंटरनेशनल कान्फ्रेंस एंड गैदरिंग ऑफ एल्डर्स के उद्घाटन सत्र में संबोधित कर रहे थे. कांफ्रेंस का आयोजन इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडी की ओर से किया जा रहा है. कांफ्रेंस में विश्व के 40 विभिन्न देंशों से 73 संस्कृतियों के प्रतिनिधि शिरकत कर रहे हैं, और सम्मेलन के दौरान अपने विचार सांझा करेंगे.
सरसंघचालक जी ने कहा कि विश्व पिछले 2000 वर्षों से एक अनुबंध के आधार पर विश्व कल्याण हासिल करने का प्रयास कर रहा है. तुम मुझे लाभ प्रदान करों, और मैं तुम्हें, और यदि मुझे लाभ नहीं मिलेगा तो मैं तुम्हें नष्ट कर दूंगा.
विविधता में अनुबंध के आधार पर नहीं, अपितु स्वीकार्यता के आधार पर साथ रहना चाहिये, जीवन का आधुनिक सिद्धांत कहता है कि हमें एक दूसरे को सहन (बर्दाश्त) करना चाहिये, जबकि अनुभव के आधार पर हमारी पुरातन संस्कृति हमें एक दूसरे को स्वीकार करना सिखाती है. स्वीकार्यता उपयोगिता के आधार पर नहीं होनी चाहिये. विभिन्न परंपराएं अलग-अलग दिखती है, लेकिन वह सब एक हैं. विविधता में एकता ही वास्तविक और स्थायी सत्य है. हमारी संस्कृति प्रत्येक वस्तु, प्रकृति, परंपरा के संरक्षण का संदेश देती है.
विश्व की पुरातन संस्कृति ने सबको स्वीकार जीवन के निर्वहन का अनुभव अर्जित किया है. पूरा विश्व एक ही है, अलग-अलग हिस्सा नहीं. इसलिये विश्व कल्याण के लिये हम सभी को एक दूसरे तथा प्रत्येक वस्तु की चिंता करनी होगी. उन्होंने कहा कि जैसे एक भक्त वैष्णो देवी की गुफा में दर्शन के लिये जाते है, भक्त गुफा संकरी होने के बावजूद शरीर के किसी अंग को अलग नहीं रख देता, वह दर्शन के लिये जाता है. उसी प्रकार पूरा विश्व भी एक ही है, और विश्व कल्याण के लिये हमें एक साथ आना होगा. हमें स्वीकार्यता का भाव जागृत करना होगा. विविधता को जश्न के रूप में मनाना होगा, विरोध नहीं करना. किसी पर भी अत्याचार और उसका विरोध इस आधार पर नहीं होना चाहिये कि वह अलग वस्त्र पहनता है या उसकी पूजा की पद्धति अलग है या उसकी परंपराएं अलग हैं. सभी को एक साथ रहना चाहिये और सबको साथ लेकर चलने का मार्ग तलाशना चाहिये. सरसंघचालक जी ने संस्था के प्रयासों की सफलता के लिये शुभकामनाएं प्रदान कीं.
कांफ्रेंस में उपस्थित संतों तथा विभिन्न देशों, स्संकृतियों के प्रतिनिधियों ने भी उद्घाटन सत्र में अपने विचार रखे. और कांफ्रेंस के आयोजन के प्रयासों को सराहा. उद्घाटन समारोह के दौरान प्रतिनिधियों ने क्षेत्र में शोभा यात्रा भी निकाली और विविधता में एकता का संदेश दिया.