संघ अपनी प्रसिद्धि, स्वार्थ या डंका बजाने के लिए सेवा कार्य नहीं करता – डॉ. मोहन भागवत जी

स्व-आधारित तंत्र के निर्माण और स्वदेशी के आचरण का आहवान

संघ अपनी प्रसिद्धि, स्वार्थ या डंका बजाने के लिए सेवा कार्य नहीं करता

सरसंघचालक ने पालघर में संतों की हत्या पर जताया दुःख,

एकांत में आत्मसाधना – लोकांत में परोपकार, संघ कार्य का यही स्वरूप

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि एकांत में आत्मसाधना – लोकांत में परोपकार – यही व्यक्ति के जीवन का और संघ कार्य का स्वरुप है. संघ स्वार्थ, प्रसिद्धि या अपना डंका बजाने के लिए सेवाकार्य नहीं करता. 130करोड का समाज अपना समाज है, यह अपना देश है, इसलिए हम कार्य करते हैं. जो पीड़ित हैं वो अपने हैं, हमें सब के लिए कार्य करना है. कोई छूटे नहीं, यही हमारा संकल्प है. पूरा समाज सेवा कार्य में जुटा है. जितनी शक्ति- उतनी सेवा हमारी परंपरा है. इसी भाव से हमने विश्व की भी यथासंभव सहायता की है. अपने समाज की उन्नति हमारी प्रतिज्ञा है. इसलिए जब तक काम पूरा नहीं होगा तब तक हमें सतत् भाव से यह सेवा कार्य करते रहना है.

डॉ. मोहन भागवत ने नागपुर महानगर द्वारा आयोजित ऑनलाइन बौद्धिक वर्ग में स्वयंसेवकों एवं समाज को संबोधित किया.

सरसंघचालक ने कहा कि अगर कोई गलती करता है तो उसके लिए उस पूरे समूह को नहीं लपेटना चाहिए एवं पूरे समाज से दूरी नहीं बनानी चाहिए.130 करोड का यह समाज भारत माता की संतान और अपना बंधु है. परिस्थिति का लाभ उठाकर देश तोड़ने वाली शक्तियों के मंसूबे हम सफल नहीं होने देंगे.

महाराष्ट्र में कुछ उपद्रवियों ने दो पूज्य संतों की पीट पीट कर हत्या की. उसका दुःख हम सबके मन में है, लेकिन हमको क्रोध नहीं बल्कि धैर्य रखना है. उन्होंने पालघर में हुए पूज्य संतों की हत्या पर दुःख व्यक्त करते हुए 28 अप्रैल को समाज से अपने-अपने घर में पूज्य संतों को श्रद्धांजलि देने का आहवान किया.

उन्होंने हनुमान का उदाहरण सम्मुख रखकर धृति, मति, दृष्टि, दाक्ष्य यानि सावधानी पूर्वक कार्य करने का आग्रह किया. कहा कि जब तक हम इस लड़ाई को जीत नहीं जाते, तब तक सावधानी नहीं छोड़नी. भविष्य में राहत कार्य के साथ-साथ समाज को दिशा देने का कार्य भी हमें करना होगा.

यह संकट हमें स्वालम्बन की सीख दे रहा है. भविष्य में अब हमें स्व-आधारित तंत्र का निर्माण करना होगा. नए विकास का मॉडल तैयार करना होगा, जिसके लिए  सरकार, प्रशासन, और समाज को संकल्प लेना होगा. स्वावलंबन अर्थात रोजगार मूलक, कम ऊर्जा का खपत करने वाली, पर्यावरण का संरक्षण करने वाली आर्थिक विकास की नीति ही अब राष्ट्र निर्माण का अगला चरण होगा.

स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग, जल एवं वृक्षों का संरक्षण, स्वच्छता, प्लास्टिक से मुक्ति, जैविक कृषि वाला हमारा आचरण बने. समाज नागरिक अनुशासन का पालन करे, यही देशभक्ति है.

शासन- प्रशासन – समाज अपनी जिम्मेदारी निभाए. समाज में त्याग और समझदारी का भाव बनाये रखना होगा. परस्पर सद्भाव, संवाद और शांति से ही हम इस संकट पर विजयी होंगे. संस्कारों की निर्मिति का कार्य अपने एवं अपने परिवार के आचरण से प्रारंभ करें.

संकट को अवसर बनाकर हम एक नये भारत का निर्माण करें. जब तक काम पूरा नहीं होगा, तब तक हमें सतत् भाव से इस कार्य को करते रहना है.समाजोन्मुख प्रशासन- देशहित मूलक राजनीति- संस्कारमूलक शिक्षा और श्रेष्ठ आचरण वाले समाज के द्वारा ही हम भारत का उत्थान कर सकते हैं. संकट की इस घड़ी में अपने उदाहरण से विश्व की मानवता का नेतृत्व करने योग्य अपना देश बने, यह हम सबकी भूमिका है.

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