संघ का विचार व कार्य सत्य निष्ठा पर आधारित, किसी के प्रति विरोध, द्वेष पर नहीं – डॉ. मोहन भागवत जी

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत प्रकाशन ने संघ को लेकर जानकारी बढ़ाने या जिज्ञासा बढ़ाने वाला अंक प्रकाशित किया है, उसके लिए धन्यवाद. संघ केवल एक ही काम करता है, शाखा चलाना, मनुष्य निर्माण करना. लेकिन स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ता, कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें स्वयंसेवक कार्य न कर रहा हो. सरसंघचालक जी भारत प्रकाशन दिल्ली के तहत प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिकाओं पाञ्चजन्य व आर्गनाइजर के विशेषांकों (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – 90 वर्ष की यात्रा) के विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि संघ का कार्य व विचार सत्य पर आधारित है, किसी के प्रति विरोध या द्वेष पर नहीं. संघ सुनने, पढ़ने, चर्चा करने से समझ आने वाला नहीं है. संघ को समझना आसान है, पर साथ ही असंभव भी है। श्रद्धा भक्ति भाव से, शुद्ध-पवित्र मन से जिज्ञासा लेकर आएंगे तो संघ को समझना आसान है. प्रतिदिन की शाखा में स्वयंसेवक यही नित्य साधना करता है. संघ के बारे में पहले से पूर्वाग्रह बनाकर, उद्देश्य लेकर आएंगे तो संघ समझ में आने वाला नहीं है. संघ में कोई बंधन नहीं है, आइये, देखिये, समझिये, जंचे तो ठीक, नहीं जंचे तो ठीक. संघ को सुनकर, पढ़कर समझना टेढ़ी खीर है. संघ का उद्देश्य या लक्ष्य शुरूआत में ही निश्चित हो गया था, लेकिन कार्यपद्धति स्थापना के 14 साल बाद 1939 में निश्चित हुई. उन्होंने कहा कि हम किसी विरोध में नहीं पड़ते, विवाद को टालते हैं, लेकिन सभी से दोस्ती करते हैं, सभी को आत्मीयता देते हैं. संघ ने कोई नया विचार नहीं दिया है, इस सनातन संस्कृति से ही प्राप्त सभी को जोड़ने वाले विचार को अपनाया है. वर्ष 1940 तक कम्युनिस्टों सहित सभी लोग इसी समान विचार के आधार पर कार्य कर रहे थे, लेकिन उसके बाद अपने स्वार्थों के कारण अलग-अलग हो गए, बिखर गए.

सरसंघचालक जी ने कहा कि हिन्दू या हिन्दुत्व कोई धर्म-संप्रदाय नहीं है, जो कोई भी देश की विविधता में विश्वास करता है, वह हिन्दू है. फिर चाहे वह अपने आप को भारतीय कहे या हिन्दू. इस देश में रहने वाले किसी भी व्यक्ति के पूर्वज बाहर से नहीं आए, यहीं के थे और हिन्दू थे. विभिन्न भाषा-भाषी, खान-पान, परंपराओं आदि की विविधताओं के बीच हमें जोड़ने वाली सनातन काल से चलती आई हमारी संस्कृति है, जो हमें विविधता में एकता सिखाती है, हमें जोड़ती है. संपूर्ण विश्व को सुखी बनाना, भारत माता को विश्व गुरू के पद पर आसीन करना है, हम सबको मिलकर यह कार्य करना है और इसका दूसरा कोई रास्ता नहीं है. संघ की ये पद्धति नहीं रही है कि भारतवासियों तुम आश्वत हो जाओ कि तुम्हें कुछ नहीं करना है, हम सारे कार्य कर देंगें. बल्कि, संघ की पद्धति रही है और है कि हम सब मिलकर कार्य करेंगे. सबको साथ लेकर चलना ही संघ का आचरण और कर्तव्य है.

उन्होंने कहा कि संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी ने डॉक्टरी करने के बाद प्रैक्टिस नहीं की. उस दौरान जितने कार्य चल रहे थे, उन्होंने हर क्षेत्र में निस्वार्थ भाव व शुद्ध मन से कार्य किया. समस्त क्षेत्र में कार्य करने के बाद अनुभव के आधार पर देश-समाज का भाग्य बदलने वाला कार्य करने का निर्णय लिया. डॉ. हेडगेवार जी ने बताया कि जीवन स्वार्थ के लिए नहीं परोपकार के लिए है. संघ की स्थापना के पश्चात प्रथम पीढ़ी के कार्यकर्ताओं ने उपेक्षा व विरोध के बावजूद कठिन परिश्रम कर देश व्यापी स्वरूप खड़ा किया. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात स्वयंसेवकों का त्याग व बलिदान समाज के सामने आया. इसी प्रकार आपातकाल के दौरान संघ की भूमिका के पश्चात संघ को देखने की समाज की दृष्टि बदली. और वर्तमान में संघ को लेकर अपेक्षाएं बढ़ी हैं. स्वयंसेवकों के तप व परिश्रम का ये परिणाम है.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि उद्योगपति एवं डिक्की के अध्यक्ष मिलिंद कांबले जी ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी, सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी, डॉ. कृष्ण गोपाल जी व वी भगैय्या जी भी उपस्थित थे. भारत प्रकाश के समूह संपादक जगदीश उपासने जी, दोनों पत्रिकाओं के संपादक हरीश शंकर जी व प्रफुल्ल केतकर जी ने विशेषांकों के बारे में जानकारी दी. भारत प्रकाशन के प्रबंध निदेशक एवं दिल्ली प्रांत सह संघचालक आलोक कुमार जी ने धन्यवाद किया.

कानपुर रेल दुर्घटना के बारे में बात करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि दुर्घटना की सूचना मिलते ही स्वयंसेवक राहत कार्य के लिए घटनास्थल पर पहुंच गए थे, कुछ अन्य लोग, संगठन भी राहत कार्य में लगे थे. कुछ समय पश्चात प्रशासन व एनडीआरएफ के जवान भी पहुंचे. प्रशासन की ओर से सूचना दी गई कि केवल संघ के स्वयंसेवकों को छोड़कर अन्य सभी यहां से हट जाएंगे, यह विश्वास स्वयंसेवकों की तपस्या से बना है.

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