यह विश्व के सैनिक इतिहास की एक अनुपम गाथा है. भारतीय जवानों के शौर्य और पराक्रम का अनुपम उदाहरण है. मात्र 21 सिख सैनिको ने दस हजार अफगानों से जमकर मोर्चा लिया और अपने से कई गुना अधिक दुश्मनों को एक इंच भी आगे नहीं बढ़ने दिया.
यह घटना 12 सितम्बर 1897 की है. अंग्रेजो और अफगानों के बीच 1839 से 1919 के बीच 80 सालों मे तीन बड़ी लड़ाईयां हुई. 1897-98 के युद्ध में सिख रेजिमेंट अग्रिम मोर्चे पर थी. इस रेजिमेंट की चौथी बटालियन के 21 जवान सारागढ़ी की सैनिक चौकी पर तैनात थे. इनका नायक था हवलदार ईशर सिंह. इस टुकड़ी को हर हालत में चौकी की रक्षा करने का आदेश मिला था.
12 सितम्बर 1897 के दिन भोर में दस हजार अफगानों ने इस चौकी पर हमला बोल दिया. चौथी बटालियन के जवानो ने भी चौकी के चारो कोनों पर मोर्चा जमा लिया. टुकड़ी के साथ रसोईया भी था उसने भी बंदूक संभाली और मोर्चे पर डट गया. एक ओर दस हजार अफगान लड़ाके और दूसरी ओर 21सिख सैनिक. एक खालसे का मुकाबले में पांचसौ अफगान थे.
सारागढ़ी में बंदुको से गोलिओं की दना-दन बौछार होने लगी. 21 भारतीय वीर हर गोली का जवाब दे रहे थे. सूरज आसमान में चढ़ने लगा. चौकी के जवान एक-एक कर वीरगति को प्राप्त होने लगे. सूरज ढलने के साथ सिख टुकड़ी के सारे सैनिक शहीद हो गए. उसी समय अतिरिक्त भारतीय फौज वहां पहुँच गयी उनकी तोपों की मार से अफगान सेना गाजर-मूली की तरह साफ होने लगी. दुश्मन भागने लगे और भागते ही गये.
सरगढ़ी अविजित ही रहा. इस प्रेरणादायी लड़ाई की याद में भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट हर साल 12 सितम्बर को ‘ सारागढ़ी ‘ के रूप में मानती है. उन बहादुरों की याद में एक कविता ‘ खालसा बहादुर’ लिखी गई. वीरगति को प्राप्त हुए सभी जवान फिरोजपुर और अमृतसर जिलों के थे. इसलिये इन वीरो कीं याद में दो गुरूद्वारे इन दोनों जिलो में बनायें गये. एक सरगढ़ी गुरुद्वारा अमृतसर स्वर्ण मंदिर के पास हैऔर दूसरा फिरोजपुर सैनिक छावनी में हैं.
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