सेवा संत अहंकार से सावधान रहें – शंकराचार्य राज राजेश्वराश्रम

नई दिल्ली (इंविसंके). शारदापीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु राज राजेश्वराश्रम ने समरसता नगर में राष्ट्रीय सेवा भारती की विशिष्ट प्रदर्शनी का उद्घाटन किया. उन्होंने राष्ट्र में पारस्परिक आभ्यांतरिक समरसता के लिये आभ्यांतरिक चेतना के विकास पर जोर देते हुए कहा कि संसार में सबसे कठिन कार्य ‘सेवा’ है. जीटी करनाल रोड पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेवा संगम को सेवा कुंभ की संज्ञा देते हुए पूज्य शंकराचार्य ने देश भर से आये सेवा संतों को सावधान करते हुए कहा कि सेवा से जहां प्रगल्भता का विकास होता है, वहीं अहंकार उत्पन्न होने की काफी आशंका रहती है.

मुख्य अतिथि के आसन से प्रसिद्ध फिल्मकार सुभाष घई ने प्राचीन गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को फिर से शुरू करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए आश्चर्य प्रकट किया कि जब हम अपने मांगलिक कार्यों को संस्कृत में करते हैं तो संस्कृत का पठन-पाठन क्यों नहीं करते? उन्होंने समरसता के लिये पारस्परिक भय को दूर करना जरूरी बताया और कहा कि यह शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाकर ही संभव होगा.

प्रदर्शनी की संकल्पनाकार गुरुशरण जी ने कहा कि समरस भारत, समर्थ भारत का मुख्य विचार इसीलिये आया कि भारत की विश्वभर में श्रेष्ठता का पतन समरसता में कमी पैदा होने पर हुआ.

प्रदर्शनी में जम्मू-कश्मीर और केदारनाथ आपदा में सेवा कार्य सहित सामाजिक समरसता, वंचितों की सहायता , बाल संस्कार केन्द्र, ग्राम विकास, स्वावलंबन, शिक्षा आदि सेवा कार्यों पर सुंदर झांकियां प्रदर्शित की गईं है.

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