हमें राष्ट्र का निर्माण नहीं करना, बल्कि पुनर्निर्माण करना है – भय्याजी जोशी

पुणे (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने कहा कि स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी जी एक दृष्टा थे, इसलिए उन्हें परिस्थिति का आंकलन औरों से पहले होता था. समर्थ रामदास द्वारा लिखित दासबोध और श्रीकृष्ण द्वारा प्रतिपादित भगवद्गीता का एकत्रित दर्शन ठेंगड़ी जी के जीवन में होता था.

सरकार्यवाह जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक, दार्शनिक तथा भारतीय मजदूर संघ सहित अन्य संगठनों के संस्थापक श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के जन्मशताब्दी वर्ष के उद्घाटन समारोह (महाराष्ट्र प्रांत) में संबोधित कर रहे थे.

प्रख्यात उद्यमी एवं भारत फोर्ज के अध्यक्ष बाबासाहेब कल्याणी कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि थे, जबकि भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय महामंत्री विरजेश उपाध्याय, आचार्य गोविंद गिरी जी महाराज सहित अन्य उपस्थित थे. प्रख्यात कम्प्युटर विशेषज्ञ एवं श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्मशताब्दी समारोह समिति के अध्यक्ष डॉ. विजय भाटकर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

भय्याजी जोशी ने कहा कि “भारत के लोग बड़े भाग्यशाली हैं कि भारत में ईश्वर निष्ठ व्यक्ति हमेशा से अवतरित होते रहे हैं. स्वर्गीय दत्तोपंत ठेंगड़ी ईश्वर के श्रेष्ठ साधक तपस्वी थे. अहंकार का कोई अंश भी उनमें नहीं था. वे एक श्रेष्ठ योगी थे. राजयोग, कर्मयोग तथा ज्ञानयोग जैसे विभिन्न योगों की सीमाओं के बिना इन योगों के सारे लक्षण उनमें विद्यमान थे. वे कहते थे कि हमारा कार्य ईश्वरीय कार्य है, इसलिए उसका सफल होना तय है. हम इस ईश्वरीय कार्य के केवल श्रेष्ठ साधन बन सकते हैं.”

उन्होंने कहा कि ठेंगड़ी जी के अनुसार संघ समाज से अलग नहीं है. हिन्दुओं के सारे प्रश्न संघ के प्रश्न हैं. हमारा राष्ट्र निर्माणाधीन नहीं है, हमें राष्ट्र का निर्माण नहीं करना, बल्कि पुनर्निर्माण करना है. ठेंगड़ी जी ने कहा था कि हमें क्रांति नहीं करनी है, बल्कि युगानुकूल परिवर्तन करना है. अपनी दूरदर्शिता के चलते वे परिस्थिति का बेहतर आंकलन कर सकते थे. दृष्टा लोगों द्वारा आत्मविश्वास से कहे गए वचन हमें बल देते हैं. जब हर तरफ साम्यवाद का बोलबाला था, तब उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि साम्यवाद नहीं टिकेगा. आपातकाल का भविष्य भी उन्होंने बताया था. सन् 1989 में उन्होंने कहा था कि नई शताब्दी के सूर्योदय का रंग भगवा होगा और उसका प्रमाण हम देख रहे हैं. स्व. ठेंगड़ी जी के बताए अनुसार, जीवन के मूल्य और जीवन की शैली यही भारत की विश्व को देन है. अब जागरण शुरू हुआ है और सारा विश्व मार्गदर्शन के लिए भारत की ओर देख रहा है और शक्तिशाली समाज ही विश्व को सही दिशा दिखा सकता है. इस संदर्भ में आज स्व. ठेंगड़ी जी के वचन सही साबित हो रहे हैं.” जन्मशताब्दी समारोह पर कहा कि महापुरुषों के मार्ग पर हम कायम रहें, इसलिए उनका स्मरण करना हमारे लिए आवश्यक है. आज के गौरवमयी भारत की नींव के पत्थरों का स्मरण हमें करना होगा.

विरजेश उपाध्याय ने कहा कि “आज के दौर में स्व. ठेंगड़ी जी के विचारों की प्रासंगिकता देखते हुए जन्मशताब्दी वर्ष मनाने का निर्णय किया गया. राष्ट्र की अवधारणा और विकास की अवधारणा, इस थीम पर आधारित विभिन्न कार्यक्रम संपूर्ण वर्ष में आयोजित किए जाएंगे. इस वर्ष केवल स्व. ठेंगड़ी जी की स्मृति न जगाते हुए उनके विचारों का चिंतन किया जाएगा.”

आचार्य गोविंदगिरी जी महाराज ने कहा कि “स्व. ठेंगड़ी जी का विचार कहां से आया, इसका विचार करना आवश्यक है क्योंकि कार्यकर्ताओं को केवल उनके विचारों का अनुकरण नहीं करना है, बल्कि उनके विचारों की पद्धति का भी संपादन करना है. उनका कहना था कि स्वदेशी को केवल उद्यम या व्यापार के लिए ही नहीं, बल्कि विचारों में भी आत्मसात करना होगा. उनका सारा तत्त्वचिंतन अध्यात्म पर आधारित था. स्व. दीनदयाल उपाध्याय जी की तरह ही उन्हें अच्छी तरह से पता था कि इस देश का मूल आधार अध्यात्म ही है. भारत का उज्ज्वल भविष्य अवश्य आएगा, लेकिन श्रीगुरुजी एवं स्व. ठेंगड़ी जी द्वारा दिए गए पाथेय का विस्मरण नहीं होना चाहिए.”

बाबासाहेब कल्याणी ने कहा कि स्व. ठेंगड़ी जी सच्चे अर्थों में समृद्ध व्यक्तित्व थे. केवल मजदूर नेता यह उनका पूर्ण परिचय नहीं था. जब विश्व पूंजीवाद और साम्यवाद के दो विचारों के इर्दगिर्द घूम रहा था, तब ठेंगड़ी जी ने विकास का तीसरा मार्ग बताया. उनका मानना था कि स्वदेशी राष्ट्रभक्ति का प्रकटीकरण है. पश्चिम का अनुकरण यानि आधुनिकीकरण नहीं होता. मेरे और भारत फोर्ज के विचार उनके इन विचारों से मेल खाते हैं. एक तरह से आज के मेक इन इंडिया का सूत्रपात उन्होंने किया था.

प्रस्तावना में डॉ. विजय भाटकर ने कहा कि भारतीय सभ्यता को विज्ञान का अधिष्ठान प्राप्त है और वह वेदों के काल से चला आ रहा है. यह अधिष्ठान दिखाने का कार्य स्व. ठेंगड़ी जी ने किया. आज जॉबलेस ग्रोथ हमारे सामने एक चुनौती बनकर खड़ी है. श्रमिकों की भूमिका क्या है, यह हमारे समक्ष बड़ा प्रश्न है. ऐसे समय में स्व. ठेंगड़ी जी के वैचारिक मार्गदर्शन की बड़ी जरूरत महसूस होती है. ऐसे समय में जन्मशती के उपलक्ष्य में हम उन्हें श्रद्धांजलि समर्पित कर रहे हैं, यह उचित ही है.”

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