वि.सं.केंद्र, गुजरात :
हिन्दू समाज के विभाजन के कारण देश विभाजित हुआ और विभाजित देश को गुलाम बनाना पड़ा. – संत श्री शम्भुनाथ जी
भारतीय समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने, अस्पर्शता का अंत लाने के आशय के साथ रा. स्व. संघ के धर्मजागरण समन्वय विभाग द्वारा वड़ोदरा में रविवार के दिन समरस महोत्सव का आयोजन किया गया. संघ की “एक गाँव, एक कुआ और एक श्मशान” योजना के अनुसार हिन्दू समाज को उंच नीच के भेदभाव से बाहर लाकर सभी ज्ञाति एक है, यह भावना जगाने के लिए समरस महोत्सव का आयोजन किया गया.
महोत्सव में झंझारका स्थित संत सवैयानाथ मंदिर के पू. संत श्री शम्भुनाथजी महाराज, पू. द्वारकेशलालजी, पू. व्रजराजकुमारजी, कबीर मंदिर से पू. खेमदास साहेबजी, संतराम मंदिर से पू. भारतदासजी, इस्कोन मंदिर से स्वामी नित्यानान्दजी के अलावा अटलादारा, हरिधाम सोखडा और कारेलीबाग स्वामीनारायण मंदिर से कोठारी स्वामी, गायत्री उपासक पू. हर्षद बापा, हालोल स्वामीनारायण मंदिर से संतप्रसाद स्वामीजी उपस्थित रहे.
इस अवसर पर अपने प्रवचन में संत श्री शम्भुनाथजी ने कहा कि संप्रदाय और जातिवाद के कारण हिन्दू समाज को सबसे अधिक नुकसान हुआ है. हिन्दू समाज के विभाजन के कारण देश विभाजित हुआ और विभाजित देश को गुलाम बनाना पड़ा. संत श्री शम्भुनाथजी कहा कि हिन्दू समाज के महत्वपूर्ण पुराणों की रचना महर्षि वेद व्यासजी द्वारा हुई, जो दलित समाज से थे. रामायण रचयिता संत वाल्मिकीजी भी दलित समाज से ही थे, उस कालखंड में इन संतो और ऋषिओ को समाज द्वारा खुब आदर-सन्मान दिया जाता था. शम्भुनाथजी ने संत परंपरा समझाते हुए कहा कि भगवान रणछोड़रायजी द्वारका से भक्त बोडाना के साथ डाकोर जाते समय उनके निवास पर भोजन किया था. इसप्रकार भगवन ने कभी भी भक्तो के साथ भेदभाव नहीं रखा. हिन्दू समाज को एक होकर समरस समाज का निर्माण कर राष्ट्र का विकास करना चाहिए.
समरस महोत्सव में इस्कोन मंदिर के श्री बसुघोष दासजी ने संस्कृत में प्रवचन करते हुए कहा कि राष्ट्र के सरल संचालन के लिए चार वर्णों कि व्यवस्था कि गई थी, इस वेद विचार में दूषण आने के साथ धर्म क्षीण होता गया. उन्होंने कहा कि पश्चिम का अन्धा अनुकरण करने के बदले रामायण, महाभारत के मूल्यों का जतन करना चाहिए.
इस अवसर पर विशाल कलश यात्रा तथा बाइक रैली का आयोजन किया गया.