1947 में हिन्दू-सिक्ख अल्पसंख्यकों का नरसंहार और नागरिक संसोधन बिल की आवश्यकता – 1

इन दिनों नागरिकता संशोधन विधेयक चर्चा का विषय है. हो भी क्यों ना बंटवारे का दर्द सबसे ज्यादा तो पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं, सिक्खों ने झेला है. पाकिस्तान में मजबूरन रह गए हिन्दू, सिक्ख, पारसी, और बौद्धों ने दशकों तक पाकिस्तान में जुल्म और बर्बरियत झेली, लेकिन अब उनका धैर्य जवाब दे गया है. मजबूरन पाकिस्तान गए या रह गए अल्पसंख्यक अब भारत की ओर रुख कर रहे हैं, उनके अस्तित्व पर ही संकट आने की वजह से अब पाकिस्तानी अल्पसंख्यक हिन्दू, सिक्ख एवं अन्य, भारत से नागरिकता की गुहार लगा रहे हैं.

1947 में हिन्दुओं – सिक्खों का कत्लेआम

सन् 1947 में महज नौ महीनों के भीतर करीब 14 से 15 लाख हिन्दुओं, सिक्खों को जबरन अपने घर छोड़कर जाने को मजबूर होना पड़ा ताकि खून की प्यासी भीड़ से बचा जा सके. इसी दौरान लगभग 60 लाख लोग मारे गए. इनकी हत्या महज हत्या नहीं, बल्कि एक तरह से नरसंहार था. अगर भीड़ ने बच्चों को पकड़ा तो उनके सिर को अपने पैरों से कुचल दिया, लड़कियों, बच्चियों का रेप किया और अगर महिलाएं मिलीं तो ना सिर्फ उनका रेप किया गया, बल्कि उनके स्तनों को काट दिया गया. इतना बर्बर पलायन और कत्लेआम शायद ही दुनिया में किसी ने कहीं भी देखा होगा.

1947 में सिक्खों का सुनियोजित नरसंहार

भारत और पाकिस्तान दोनों पक्षों ने 20 जुलाई को माउंटबेटन के इशारे पर अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान करने संबंधित दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. पाकिस्तानियों की सिक्ख नीति पहले से स्पष्ट थी. इनकी नजर धनी सिक्खों के खेतिहर जमीनों पर थी. जो सिक्ख आसानी से जमीं छोड़कर चले गए उन्हें जाने दिया और जिन्होंने जमीनों को पकड़ कर रखा, उनका नरसंहार कर दिया गया. (लियोनार्ड मोस्ली, द लास्ट डेज़ ऑफ़ द ब्रिटिश राज, बॉम्बे: जाको, 1960, पी, 280)

02 सितंबर, 1947 को सरदार पटेल का प्रधानमंत्री नेहरू को पाकिस्तान में हिन्दुओं, सिक्खों के नरसंहार के बारे में पत्र

इन दिनों सुबह से लेकर रात तक, मेरा समय पूरी तरह से हिन्दू और सिक्ख शरणार्थियों पर बरपे कहर को सुनने में बीत रहा है, जो पश्चिमी पाकिस्तान से हिन्दू और सिक्ख शरणार्थियों के माध्यम से मुझ तक पहुंचता है. (दुर्गा दास (सं.) सरदार पटेल का पत्राचार, खंड 4, अहमदाबाद: नवजीवन, 1972, पृष्ठ 314) “सिंध में बढ़ रहे अत्याचार और नरसंहार के मद्देनजर हिन्दू और सिक्ख आबादी को हटाना जरूरी हो गया है.” (भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार, विदेश मंत्रालय, 51-6 / 48) प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा बी.जी. खेर को टेलीग्राम 8 जनवरी, 1948

“आज भी सिंध में स्थिति खराब है और मुझे डर है कि हमें एक बड़े पलायन का सामना करना पड़ेगा, हम उन्हें सिंध में नहीं छोड़ सकते.” (जवाहरलाल नेहरू के चयनित कार्य, खंड 15, पृष्ठ 136) पंडित नेहरु का 9 जनवरी, 1948 को बी.जी.खेर को लिखा पत्र.

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