भारत में विधर्मी आक्रमणकारियों ने बड़ी संख्या में हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस किया. स्वतन्त्रता के बाद सरकार ने मुस्लिम वोटों के लालच में ऐसी मस्जिदों, मजारों आदि को बना रहने दिया. इनमें से श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर (अयोध्या), श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) और काशी विश्वनाथ मन्दिर के सीने पर बनी मस्जिदें सदा से हिन्दुओं को उद्वेलित करती रही हैं. इनमें से श्रीराम मन्दिर के लिये विश्व हिन्दू परिषद् ने देशव्यापी आन्दोलन किया, जिससे 6 दिसम्बर, 1992 को वह बाबरी ढाँचा धराशायी हो गया.
श्रीराम मन्दिर को बाबर के आदेश से उसके सेनापति मीर बाकी ने 1528 ई. में गिराकर वहाँ एक मस्जिद बना दी. इसके बाद से हिन्दू समाज एक दिन भी चुप नहीं बैठा. वह लगातार इस स्थान को पाने के लिये संघर्ष करता रहा. 23 दिसम्बर, 1949 को हिन्दुओं ने वहाँ रामलला की मूर्ति स्थापित कर पूजन एवं अखण्ड कीर्तन शुरू कर दिया. ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ द्वारा इस विषय को अपने हाथ में लेने से पूर्व तक 76 हमले हिन्दुओं ने किये; जिसमें देश के हर भाग से तीन लाख से अधिक व्यक्तियों का बलिदान हुआ; पर पूर्ण सफलता उन्हें कभी नहीं मिल पायी.
विश्व हिन्दू परिषद ने लोकतान्त्रिक रीति से जनजागृति के लिये श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन कर 1984 में श्री रामजानकी रथयात्रा निकाली, जो सीतामढ़ी से प्रारम्भ होकर अयोध्या पहुँची. इसके बाद हिन्दू नेताओं ने शासन से कहा कि श्री रामजन्मभूमि मन्दिर पर लगे अवैध ताले को खोला जाये. न्यायालय के आदेश से 1 फरवरी, 1986 को ताला खुल गया.
इसके बाद वहाँ भव्य मन्दिर बनाने के लिये 1989 में देश भर से श्रीराम शिलाओं को पूूजित कर अयोध्या लाया गया और बड़ी धूमधाम से 9 नवम्बर, 1989 को श्रीराम मन्दिर का शिलान्यास कर दिया गया. जनता के दबाव के आगे प्रदेश और केन्द्र शासन को झुकना पड़ा. पर मन्दिर निर्माण तब तक सम्भव नहीं था, जब तक वहाँ खड़ा ढांचा न हटे. हिन्दू नेताओं ने कहा कि यदि मुसलमानों को इस ढाँचे से मोह है, तो वैज्ञानिक विधि से इसे स्थानान्तरित कर दिया जाये; पर शासन मुस्लिम वोटों के लालच से बँधा था. वह हर बार न्यायालय की दुहाई देता रहा. विहिप का तर्क था कि आस्था के विषय का निर्णय न्यायालय नहीं कर सकता. शासन की हठधर्मी देखकर हिन्दू समाज ने आन्दोलन और तीव्र कर दिया.
इसके अन्तर्गत 1990 में वहाँ कारसेवा का निर्णय किया गया. तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी. उन्होंने घोषणा कर दी कि बाबरी परिसर में एक परिन्दा तक पर नहीं मार सकता; पर हिन्दू युवकों ने शौर्य दिखाते हुए 29 अक्तूबर को गुम्बदों पर भगवा फहरा दिया. बौखला कर दो नवम्बर को मुलायम सिंह ने गोली चलवा दी, जिसमें कोलकाता के दो सगे भाई राम और शरद कोठारी सहित सैकड़ों कारसेवकों का बलिदान हुआ.
इसके बाद प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी. एक बार फिर 6 दिसम्बर, 1992 को कारसेवा की तिथि निश्चित की गयी. विहिप की योजना तो केन्द्र शासन पर दबाव बनाने की ही थी; पर युवक आक्रोशित हो उठे. उन्होंने वहाँ लगी तार बाड़ के खम्भों से प्रहार कर बाबरी ढाँचे के तीनों गुम्बद गिरा दिये. इसके बाद विधिवत वहाँ श्री रामलला को भी विराजित कर दिया गया. इस प्रकार वह बाबरी कलंक नष्ट हुआ और तुलसी बाबा की यह उक्ति भी प्रमाणित हुई – होई है सोई, जो राम रचि राखा.
-विजय कुमार
साभार – विश्व संवाद केंद्र, भारत